गड्ढे में व्यवस्थाएं, जूझ रही जनता, जिम्मेदार मौन
कोटद्वार को नगर निगम तो बना दिया लेकिन अगर ढाई लाख की आबादी वाले इस नगर निगम में एक अदद पार्किंग की बात की जाए तो जनप्रतिनिधियों के साथ ही सरकारी सिस्टम के पास भी कोई जवाब नहीं। नगर की यातायात व्यवस्था को लेकर सवाल तमाम उठते हैं लेकिन व्यवस्था को ढर्रे पर लाने वाले स्वयं पार्किंग का रोना रोते नजर आते हैं।
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: कोटद्वार को नगर निगम तो बना दिया, लेकिन अगर ढाई लाख की आबादी वाले इस नगर निगम में एक अदद पार्किंग की बात की जाए तो जनप्रतिनिधियों के साथ ही सरकारी सिस्टम के पास भी कोई जवाब नहीं। नगर की यातायात व्यवस्था को लेकर सवाल तमाम उठते हैं, लेकिन व्यवस्था को ढर्रे पर लाने वाले स्वयं पार्किंग का रोना रोते नजर आते हैं। उधर, आधुनिक बस अड्डे के नाम पर निगम की भूमि पर बना गड्ढा आज भी सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहा है।
व्यावसायिक वाहनों की बात करें तो उत्तराखंड परिवहन निगम के पास कोटद्वार क्षेत्र में 55 बसें व गढ़वाल मोटर्स आनर्स यूनियन के पास करीब 300 बसों का बेड़ा है। इसके अलावा करीब 400 जीप-टैक्सियां और 800 से अधिक तिपहिया वाहन सड़कों पर दौड़ते नजर आते हैं। लेकिन, अगर बात इन वाहनों की पार्किंग की करें तो वर्ष 2013 के बाद से आज तक आमजन को पार्किंग स्थल का इंतजार है। 23 मार्च 2013 को तत्कालीन नगर पालिका ने पीपीपी मोड पर मोटर नगर में आधुनिक बस टर्मिनल बनाने का कार्य एक निजी संस्था को सौंपा। संस्था ने मोटर नगर में बस अड्डे का निर्माण शुरू किया। पालिका ने मोटर नगर की 1.838 हेक्टेयर भूमि में से 1.5034 हेक्टेयर भूमि कंपनी को मुहैया करा दी। शर्तों के अनुरूप मार्च 2015 तक बस अड्डे का निर्माण पूर्ण कर नगर पालिका को सौंपा जाना था, लेकिन विभिन्न कारणों के चलते ऐसा न हो सका। अनुबंध में खामियों का ही परिणाम रहा कि कार्यदायी संस्था ने कार्य अधूरा छोड़ चलती बनी। आठ वर्ष हो गए हैं, लेकिन न तो जन प्रतिनिधियों ने इस अधूरे निर्माण की सुध ली और न ही सरकारी तंत्र इस ओर ध्यान दे रहा है।
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कार्यदायी संस्था और नगर निगम के बीच वार्ता कराई गई थी। इसके बाद नगर निगम को कार्यदायी संस्था से तालमेल बनाकर कार्य करवाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक बार फिर शासन स्तर से कार्यदायी संस्था से वार्ता की जाएगी।
डा. हरक सिंह रावत, वन एवं पर्यावरण मंत्री, उत्तराखंड