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तकनीक से समस्या हटाई, फुलवारी महकाई

जागरण संवाददाता, पौड़ी: खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय जबलपुर ने गाजर घास से कंपोस्ट खाद तैयार करन

By Edited By: Published: Thu, 22 Jan 2015 09:27 PM (IST)Updated: Thu, 22 Jan 2015 09:27 PM (IST)
तकनीक से समस्या हटाई, फुलवारी महकाई

जागरण संवाददाता, पौड़ी: खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय जबलपुर ने गाजर घास से कंपोस्ट खाद तैयार करने की जो तकनीक इजाद की उसने जीबी पंत इंजीनिय¨रग कॉलेज के सुंदरता ने चार चांद लगा दिए। आज कॉलेज परिसर की फूलवारी महक रही है और परिसर पूरी तरह गाजर घास से मुक्ति की ओर कदम बढ़ा चुका है। अब विशेषज्ञ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की ओर भी इस अभियान के कदम बढ़ा रहे हैं।

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पहाड़ों में नासूर बन चुके गाजर घास की समस्या को दूर करने के लिए जीबी पंत इंजीनिय¨रग कॉलेज घुड़दौड़ी एक अच्छा उदाहरण साबित हुआ है। जिस स्थान में कभी गाजर घास उगती थी वहां आज फुलवारी है। अप्लाईड सांइस एंड ह्यूमनिटीज के विभागाध्यक्ष डॉ. एच गोयल के मुताबिक कुछ माह पूर्व ही गाजर घास से 400 किलो कंपोस्ट खाद बनाई गई जिसे कॉलेज में बनाए गए प्लांटेशन में प्रयोग किया गया। इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले। उत्साहित होकर अब उद्यान विभाग से लाए जाने वाले सेब, पालम सहित विभिन्न प्रजाति के 1500 पौध को इसी माह कॉलेज तथा इसके आस-पास के क्षेत्रों में लगाया जाएगा। इस सारी प्रक्रिया में कॉलेज के भावी इंजीनियरों की मेहनत भी रही। आज गाजर घास कॉलेज परिसर से पूरी तरह समाप्ति की ओर है।

क्या है गाजर घास:

गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। इसे चटक चांदनी, कांग्रेस घास, कड़वी घास के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस खरपतवार को मानव, पशुओं, पर्यावरण व जैव विविधता के लिए काफी नुकसान दायक माना जाता था।

अब नहीं लगता गाजर घास से डर

किसान गाजर घास से कंपोस्ट बनाने में इस लिए डरता है कि यदि खेतों में गाजर घास की कंपोस्ट को डालेंगे तो इससे ज्यादा गाजर घास पैदा हो जाएगी। ऐसा नहीं है। यदि वैज्ञानिक तरीके से गाजर घास की कंपोस्ट खाद बनाई जाए तो यह एक सुरक्षित कंपोस्ट है।

गाजर घास से ऐसे बनाएं कंपोस्ट

कॉलेज की भूमि पर ऊंचाई वाले स्थान में जहां पानी न हो गढड़ा बनाया गया। इसकी गहराई तीन फीट से अधिक रखी गई। गढ्डा सीमेंट से बनाया गया ताकि कंपोस्ट के पोषक तत्व जमीन न सोख पाए। गाजर घास को जड़ से उखाड़कर गढडे की पूरी लंबाई-चौड़ाई में सतह तक फैलाया गया। पांच से सात किग्रा. गोबर को बीस लीटर पानी में घोल बनाकर उसका गाजर घास की परत पर छिड़काव किया गया। यूरिया आदि मिलाकर गढ़डे को गोबर, मिट्टी, भूसा आदि के मिश्रण लेप से अच्छी तरह बंद किया। पांच से छह माह के बाद अच्छी कंपोस्ट तैयार हो जाती है।

जबलपुर में विषय विशेषज्ञों के बीच गाजर घास के उन्मूलन को लेकर काफी मंथन हुआ। पहले चरण में कॉलेज को गाजर घास फ्री बनाने की कवायद शुरु की गई। इसके लिए आस-पास के ग्रामीणों को भी इसके लिए जागरुक किया गया। आज सफलता देखने को मिल रही है।

डॉ. एच गोयल, विभागाध्यक्ष, अप्लाईड सांइस एंड ह्यूमनिटीज, जीबी पंत इंजीनिय¨रग कॉलेज पौड़ी


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