विश्व मृदा दिवस : पहाड़ से टूट रहा अनमोल माटी का नाता, वनाग्नि और आपदा से मिट्टी को पहुंच रहा नुकसान
हर वर्ष लपटों में खाक होते 2200 से 3200 हेक्टेयर वन क्षेत्रों से बरसात में 70 से 80 टन उपजाऊ मिट्टी अतिवृष्टि से बह जा रही है। उसके साथ जैवविविधता को जिंदा रखने वाले पोषक तत्व भी खत्म हो रहे हैं।
दीप सिंह बोरा, अल्मोड़ा : चौतरफा चुनौतियों वाले पहाड़ की माटी अब पराई होने लगी है। इसके जुदा होने की बड़ी वजह मानवजनित वनाग्नि है। हर वर्ष लपटों में खाक होते 2200 से 3200 हेक्टेयर वन क्षेत्रों से बरसात में 70 से 80 टन उपजाऊ मिट्टी अतिवृष्टि से बह जा रही है। उसके साथ जैवविविधता को जिंदा रखने वाले पोषक तत्व भी खत्म हो रहे हैं। विज्ञानी आगाह कर रहे हैं कि वनाग्नि पर नियंत्रण की कारगर नीति न बनी तो नदियों, उनके सहायक जलस्रोतों व धारों को बचाना मुश्किल होगा। वनाग्नि से जंगलात की उर्वरा मिट्टी का स्वरूप बिगड़ रहा है तो उसके पोषक तत्व भी तेजी से खत्म होते जा रहे हैं। मृदा क्षरण का सीधा असर जलस्रोतों व नदियों पर पडऩे लगा है। असल में मिट्टी में जलधारण की ताकत घटने से भूगर्भीय जल भंडार तक पर्याप्त वर्षाजल नहीं पहुंच पा रहा। इससे जलस्रोतों का प्रवाह कम होने लगा है।
लगातार गिर रहा भूजल स्तर
जीवनदायिनी कोसी को बचाने के लिए 30 वर्षों से शोध में जुटे वरिष्ठ विज्ञानी एवं पूर्व नेशनल जीयोस्पेशल चेयरप्रोफेसर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भारत सरकार) प्रो. जीवन सिंह रावत कहते हैं कि ऊपरी सतह जलने से मिट्टी कमजोर होकर बारिश में बह जा रही है। वनाग्नि से पर्वतीय जमीन की जलधारण क्षमता भी कमजोर पड़ रही है। इस कारण स्रोत सूखने लगे हैं।
आग से इस तरह से होता है नुकसान
वन क्षेत्रों का अपना प्राकृतिक विज्ञान होता है। चौड़ी पत्ती वाले जंगल, नीचे छोटी-छोटी झाडिय़ां व लताएं। झड़ी-सड़ी पत्तियों की परत। सबसे नीचे घास। तेज बारिश हुई भी तो ये परत मोटी बूंदों को अपने में समेट लेती हैं, जो भूजल भंडार तक धीरे-धीरे पहुंचती हैं। आग से इस अहम परत के नष्ट होने से अतिवृष्टि में कमजोर पड़ चुकी मिट्टी तेज बहाव में बह जाती है। अकेले कुमाऊं में 65 से 70 फीसद चीड़ बहुल जंगलात वनाग्नि से बेजार हैं।
कुमाऊं विश्वविद्यालय एसएसजे परिसर के पूर्व भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. जीवन सिंह रावत ने बताया कि आग से उत्तराखंड के वनों की उपजाऊ मिट्टी व पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं। यही भूस्खलन के कारण बन रहे हैं। मिट्टी बचाने के लिए वनाग्नि नियंत्रण को प्रभावी कदम व कारगर नीति बनानी होगी। आग की घटनाएं नहीं रुकीं तो नदियों को पुनर्जीवित करने का सपना साकार नहीं हो सकेगा।