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    नैनीताल हाई कोर्ट का फैसला, पत्नी नेट-पीएचडी है... फिर भी भरण पोषण की हकदार

    Updated: Sun, 27 Jul 2025 06:09 PM (IST)

    नैनीताल हाई कोर्ट ने हरिद्वार के परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि पत्नी नेट-पीएचडी होने के बावजूद भरण-पोषण की हकदार है। कोर्ट ने पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पत्नी की योग्यता के बावजूद उसे भरण-पोषण मिलना चाहिए क्योंकि निचली अदालत ने सभी पहलुओं पर विचार किया है। पति ने पत्नी को 10-10 हजार रुपये मासिक देने के आदेश को चुनौती दी थी।

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    हरिद्वार के दंपती के मामले में हुई सुनवाई। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने हरिद्वार के परिवार न्यायालय के पति को पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने के निर्णय को बरकरार रखते हुए आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। हरिद्वार निवासी सुनील रावण ने परिवार न्यायालय के पत्नी व बेटी को दस-दस हजार मासिक मासिक देने के आदेश को याचिका दायर कर हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

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    न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ ने सुनील के इस तर्क के बाद भी अपना फैसला बरकरार रखा कि उनकी पत्नी के पास पीएचडी और नेट योग्यता है, ऐसे में उपयुक्त रोजगार पा सकती है। सुनील की पत्नी ने अंतरिम भरण-पोषण राशि बढ़ाने के लिए जबकि सुनील ने अपनी पत्नी और बेटी की ओर से दायर आवेदन खारिज करने के लिए आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।

    सुनील की पत्नी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पारिवारिक न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि उनके पति की आय अच्छी खासी है और उसने गलत तरीके से अंतरिम भरण-पोषण राशि 20 हजार रुपये प्रति माह तय कर दी, जो कि जीवनयापन के लिए बहुत कम और अपर्याप्त है। सुनील ने अपने हलफनामे में स्वीकार किया था कि वह अपनी नौकरी से 92,805 रुपये कमा रहा है, फिर भी भरण-पोषण उसकी आय का एक तिहाई निर्धारित नहीं किया गया था।

    वहीं, सुनील के अधिवक्ता ने कहा कि पत्नी पीएचडी डिग्री धारक है और सहायक प्रोफेसर के पद के लिए यूजीसी-नेट उत्तीर्ण है, लेकिन उच्च शिक्षित होने के बावजूद जानबूझकर बेकार बैठी है, इसलिए उसे भरण-पोषण का कोई अधिकार नहीं है। यह भी तर्क दिया कि पत्नी ने अपनी आय और अपने खाता विवरण के बारे में तथ्य छिपाए थे, इसलिए वह किसी भी राहत की हकदार नहीं है।

    दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने पाया कि पत्नी की आर्थिक स्थिति पर विचार नहीं करने के संबंध में दिए गए तर्क पूरी तरह से निराधार हैं। ट्रायल कोर्ट ने इस मुद्दे पर विस्तार से विचार कर आदेश पारित किया। राशि काफी उचित है, इसलिए किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। निचली अदालत ने केवल अंतरिम भरण-पोषण का आदेश दिया है, मुख्य याचिका पर अंतिम निर्णय अभी बाकी है।