ब्रितानी हुकूमत के समय घने जंगलों के बीच शोर मचाते हुए गुजरता था ट्रॉमवे NAINITAL NEWS
जंगल से लकड़ी निकालने के लिए वन निगम बड़े ट्रकों का इस्तेमाल करता है। बरसात में कीचड़ से काम रुक जाता है।
हल्द्वानी, जेएनएन : जंगल से लकड़ी निकालने के लिए वन निगम अब बड़े ट्रकों का इस्तेमाल करता है। बरसात के दिनों में कीचड़ की वजह से यह काम अटक भी जाता है, लेकिन 95 साल पहले अंग्रेज ट्रॉमवे की मदद से जंगल से बाहर लकड़ी का ढुलान करवाते थे। सात से दस बुग्गियां अटैच कर काम किया जाता था। इंजन का शोर आसपास के लोगों को भी जगा देता था। जंगल के अंदर यह ट्रॉमवे सात मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ा करता था।
रामपुर रोड स्थित वानिकी परिसर में पिछले तीस साल से पड़ा इंजन अब भी जस का तस है। इसमें एक खरोंच तक नहीं है। अकादमी में आने वाला हर प्रशिक्षु वनकर्मी इस पर नजर दौड़ाकर जंगल के इतिहास को जानने की कोशिश करता है। बाहर लगे बोर्ड के मुताबिक 1926 में वन विभाग ने लीड्स (इंग्लैड) की मैसर्स जॉन फाउलर एंड कंपनी से इसे 14 हजार 12 रुपये 50 पैसे में खरीदा था। खरीद के बाद नंधौर घाटी के जंगल में इसका इस्तेमाल किया गया। यानी चोरगलिया से लालकुआं के बीच इसे चलाया गया। बताया जाता है कि चोरगलिया के पास लाखनमंडी पर बड़ा लकड़ी डिपो होता था। जहां से ट्रॉमवे के पीछे लगी बुग्गियों में कटान हो चुकी लकड़ियों को लादकर चोरगलिया लाया जाता था। साठ के दशक में इस ट्रॉमवे का इस्तेमाल बंद कर दिया गया। दरअसल, ट्रकों की संख्या बढ़ाकर उनमें माल लाया जाने लगा। जिसके बाद सालों तक इंजन लालकुआं में पड़ा रहा। दस अगस्त 1989 को इसे वहां से लाकर एफटीआइ में खड़ा कर दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि 95 साल बाद भी भाप से चलने वाला यह ट्रॉमवे आज तक उसी हालत में है।
ट्रॉमवे की शक्ति 40 हॉर्स
इंग्लैंड से लाया गया यह ट्रॉमवे 40 हॉर्स पावर का है। सात घंटे प्रति मील की रफ्तार से चलने वाला यह इंजन एक बार में 70 क्विंटल लकड़ी लेकर जंगल से निकलता था।
दो फीट लंबी पटरी अब गायब
24 इंच दूरी के बीच चलने वाला यह इंजन दो रूटों पर चलता था। पुराने जानकारों के मुताबिक पहला रूट लालकुआं, हेराई होकर चोरगलिया व दूसरा हंसपुर (जौलासाल) होकर था। वर्तमान में अतिक्रमण व आबादी की वजह से दो फीट दूरी की यह पटरियां लगभग गायब हो चुकी हैं।