सीएम की घोषणा में शामिल काठगोदाम से एचएमटी पुल पार तक प्रस्तावित बाइपास की क्या प्रगति है
Kathgodam to HMT bridge bypass काठगोदाम गौला पुल के पास से अमृतपुर की तरफ को एक नया बाइपास बनाने की कवायद नवंबर 2019 में हुई थी। करीब पांच किमी लंबे इस बाइपास से अक्सर लगने वाले जाम से निजात मिलने के साथ रानीबाग पुल का लोड भी खत्म होता।
गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी : विकास से जुड़ी किसी भी योजना के मुख्यमंत्री घोषणा का हिस्सा बनने पर उम्मीदें दोगुनी हो जाती है। संबंधित विभाग से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी समय-समय पर समीक्षा और निगरानी करते हैं। लेकिन काठगोदाम से एचएमटी पुल पार तक प्रस्तावित मुख्यमंत्री घोषणा से जुड़े बाइपास की स्थिति इन सभी संभावनाओं से बिलकुल अलग है।
इस अहम प्रोजेक्ट के लिए वनभूमि की जरूरत थी। जिसके लिए लोक निर्माण विभाग भवाली खंड ने करीब डेढ़ साल पहले आवेदन भी किया। लेकिन यह आवेदन वन महकमे की वेबसाइट पर नजर नहीं आ रहा। ऐसे में अधिग्रहण की प्रक्रिया भी अटक चुकी है।
काठगोदाम गौला पुल के पास से अमृतपुर की तरफ को एक नया बाइपास बनाने की कवायद नवंबर 2019 में हुई थी। रानीबाग पुल पार करने के बाद भीमताल रोड पर एक जलधारा निकलती है। काठगोदाम से निकलने के बाद यह सड़क वहीं तक पहुंचती है। तत्कालीन डीएम सविन बंसल ने इसका खाका तैयार किया था। जिसके बाद प्रोजेक्ट को मुख्यमंत्री घोषणा में भी शामिल किया गया।
करीब पांच किमी लंबे इस बाइपास से काठगोदाम और गुलाबघाटी में अक्सर लगने वाले जाम से निजात मिलने के साथ रानीबाग पुल का लोड भी खत्म होता। बाइपास की जद में करीब चार हेक्टेयर वनभूमि भी आ रही थी। जिसका अधिकांश हिस्सा नैनीताल डिवीजन की मनोरा रेंज का था। महज 50 मीटर क्षेत्र हल्द्वानी डिवीजन की छकाता रेंज में आ रहा था।
नियमानुसार वनभूमि पाने को आनलाइन आवेदन करना पड़ता है। डीएफओ, वन संरक्षक, नोडल के माध्यम से यह केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास स्वीकृति के लिए पहुंचता है। डेढ़ साल पहले लोनिवि ने आनलाइन आवेदन भरने के बाद उसे विभागीय पोर्टल भी अपलोड भी किया।
यह आवेदन हल्द्वानी डिवीजन तो पहुंचा लेकिन नैनीताल वन प्रभाग के पास अब तक नहीं आया। ऐसे में असमंजस की स्थिति बन गई है। क्योंकि, आनलाइन पारूप में ही आवेदन भारत सरकार तक पहुंचता है। उसके बाद ही सीएम घोषणा में शामिल इस बाइपास की पैरवी हो सकेगी।
2020 में 64.85 लाख भी मिले थे
सीएम घोषणा में शामिल होने की वजह से 2020 में शासन से 64.85 लाख रुपये भी मिले थे। यह प्रथम चरण का बजट था। इससे निजी जमीन अधिग्रहण यानी ग्रामीणों को मुआवजा मिलता। इसके अलावा डीपीआर के लिए चयनित कंपनी को भुगतान भी किया जाता। लेकिन वन विभाग की वेबसाइट पर आवेदन नजर न आने से दिक्कत आ रही है।
ईई लोनिवि भवाली मदन मोहन पुंडीर ने बताया कि वनभूमि अधिग्रहण के लिए आनलाइन आवेदन किया गया था। लेकिन वन विभाग के पोर्टल पर यह अब भी शो नहीं कर रहा। जमीन हस्तांतरण के बाद ही डीपीआर तैयार करने का काम शुरू किया जाएगा।
मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं पीके पात्रो का कहना है कि केस नंबर की मदद से आवेदन की स्थिति को जाना जा सकता है। एनआइसी आथॉरिटी को पत्र भेजकर भी पता चल जाएगा। उसके बावजूद दिक्कत आती है तो लोनिवि अधिकारी मिल सकते हैं। मदद की जाएगी।