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जो जीते हैं हिंदी, उनकी तादाद गुम हो गई...,हिंदी पखवाड़े में एमबीपीजी कालेज में विचार गोष्ठी

नैनीताल की नाट्य संस्थाएं व कलाकारों के उन्नयन विषय पर मुंबई से मुख्य वक्ता के रूप में सिने अभिनेता व कवि गोपाल तिवारी ने विचार व्यक्त किए। कहा कि नैनीताल की युगमंच नाट्य संस्था ने ही उन्हेंं एक कलाकार के रूप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय पहुंचाया।

By Prashant MishraEdited By: Published: Mon, 13 Sep 2021 11:46 PM (IST)Updated: Mon, 13 Sep 2021 11:46 PM (IST)
जो जीते हैं हिंदी, उनकी तादाद गुम हो गई...,हिंदी पखवाड़े में एमबीपीजी कालेज में विचार गोष्ठी
मुख्य अतिथि के रूप में रामनगर महाविद्यालय के प्राचार्य व साहित्यकार प्रोफेसर एमसी पांडे ने कविता और गजल प्रस्तुत की।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: एमबीपीजी कालेज में हिंदी पखवाड़े में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें हिंदी भाषा की स्थितियों पर चर्चा हुई। इस दौरान कविता व नाट्य कला के संदर्भों में बात की गई।     एमबीपीजी के हिंदी विभाग में सोमवार सुबह 10 बजे से विचार गोष्ठी का आयोजन आनलाइन व आफलाइन मोड में हुआ। नैनीताल की नाट्य संस्थाएं व कलाकारों के उन्नयन विषय पर मुंबई से मुख्य वक्ता के रूप में सिने अभिनेता व कवि गोपाल तिवारी ने विचार व्यक्त किए। कहा कि नैनीताल की युगमंच नाट्य संस्था ने ही उन्हेंं एक कलाकार के रूप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय पहुंचाया। आज मुंबई में बॉलीवुड के माध्यम से अपनी अदाकारी से जनसामान्य का मनोरंजन कर रहे हैं। गोपाल तिवारी ने नैनीताल के दिनों की याद करते हुए महत्वपूर्ण नाटकों की चर्चा की, जिसमें उन्होंने कई चरित्र निभाए थे। नाटक जारी है और जिन लाहौर नहीं देख्या में अलीमुद्दीन की भूमिका प्रमुख है। अभिनेता गोपाल तिवारी ने हल्द्वानी के प्रबुद्ध नागरिकों से अपील की कि शहर में नाट्य संस्थाओं को पुनजीॢवत करें, ताकि स्थानीय कलाकारों को प्रतिभा दिखाने व संवारने का मौका मिल सके। मुख्य अतिथि के रूप में रामनगर महाविद्यालय के प्राचार्य व साहित्यकार प्रोफेसर एमसी पांडे ने कविता और गजल प्रस्तुत की।

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उनकी कविता, हर किसी के सामने एक लक्ष्य है, जिंदगी भी क्या एक परीक्षा कक्ष है, सराही गई। कुछ तो फरमाइए, संवाद बनाए रखिए। भूल मत जाइएगा, याद बनाए रखिए गजल भी लोगों ने पसंद की। राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक व कवि डा. भुवन ने नाटक की कुछ पंक्तियों का वाचन किया और एक कविता प्रस्तुत की। उससे करनी थी जो बात वो गुम हो गई, जो देती थी उनको सौगात वो गुम हो गई। हिन्दी जो बोल भी न सकें, वो मंचों पर, जो जीते हैं हिन्दी, उनकी तादाद गुम हो गई। जो भी दिखेगा दौड़ता ही दिखेगा भुवन, ठहरा वही है जिसकी सांस गुम हो गई। कार्यक्रम का संचालन डा. जगदीश चन्द्र जोशी ने और धन्यवाद ज्ञापन डा. चन्द्रा खत्री ने किया। इस अवसर पर डा. सन्तोष मिश्र, डा. आशा हर्बोला, डा. जयश्री भण्डारी, डा. विमला सिंह, डा. दीपा गोबाड़ी, डा. देवयानी भट्ट आदि मौजूद थे।


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