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हिमपात के कारण घरों में कैद हुए ग्रामीण, बाहरी दुनिया से कटा संपर्क, नून-रोटी का भी संकट

देश के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के ग्रामीणों के लिए हर बार की तरह बर्फबारी इस बार भी आफत बनकर आई है। तकरीबन पांच दर्जन संकट गांव दिक्‍कतों से कराह रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 05:11 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 10:02 AM (IST)
हिमपात के कारण घरों में कैद हुए ग्रामीण, बाहरी दुनिया से कटा संपर्क, नून-रोटी का भी संकट

पिथौरागढ़/मुनस्यारी, जेएनएन : जिस बर्फबारी का पर्यटक सालभर इंतजार करते हैं वही स्‍थानीय लोगों के लिए मुसीबत बन जाती है। यही कारण है कि देश के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के ग्रामीणों के लिए हर बार की तरह बर्फबारी इस बार भी आफत बनकर आई है। तकरीबन पांच दर्जन संकट गांव दिक्‍कतों से कराह रहे हैं। बर्फ के कारण इन गांवों से निकलना और यहां पहुंचना बेहद मुश्किल हो गया है। बिजली पानी का भी संकट है। बर्फ पिघलाकर पानी की व्यवस्था हो रही है तो रात-दिन आग सेंकने के लिए गीली लकडिय़ों का सहारा है। बाजारों तक पहुंचना संभव नहीं है, खेत-खलिहानों में उगी सब्जी दो फीट बर्फ में दब चुकी है। ग्रामीण नमक -मिर्च के साथ रोटी खाने को मजबूर हो चुके हैं। मार्ग बंद होने से गांवों का शेष जगत से संपर्क भंग है, तो बीते चार दिनों से बिजली न होने से मोबाइल फोन चार्ज नहीं हो पाने से संचार संपर्क भी भंग है।

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सामान का संग्रहण न करना भी लोगों के लिए बना मुसीबत

पिथौरागढ़ में मुनस्यारी और धारचूला का उच्च मध्य हिमालयी क्षेत्र प्रतिवर्ष हिमपात की मार झेलता है। जिसके चलते इस क्षेत्र में रहने वाले लोग इसे समझते हैं और इन परिस्थितियों में जीने की कला भी जानते हैं। कुछ वर्षों पूर्व तक सड़क सहित अन्य संसाधन सीमित होने से ग्रामीण शीतकाल के लिए सबकुछ पूर्व से ही संग्रह कर रख लेते थे। बीच में वर्षों में अधिकांश गांवों तक सड़क पहुंचने और दुकानें खुलने से ग्रामीण अब पूर्व की भांति सामान संग्रह करने की प्रवृति त्याग चुके हैं। दूसरा बीच के वर्षों में औसत हिमपात होने से लोग भी बेफ्रिक हो गए थे। इस वर्ष प्रकृति ने जो कर दिखाया है, उससे लोग परेशान हैं।

नमक और मिर्च का ही आसरा

इस मौसम में गांवों में खेतों में राई, पालक, मेथी आदि तैयार रहती है। अमूमन ग्रामीण इन साग-सब्जियों का प्रयोग करते हैं। इधर खेत बर्फ से पटे हैं बर्फ हटाकर साग, सब्जी निकाल पाना संभव नहीं है। घरों पर रखी साग, सब्जी समाप्त हो चुकी है। ऐसे में अधिकांश घरों में अब मिर्च के साथ पीसा नमक ही साग, सब्जी का पर्याय बना है।

आग जलाना भी चुनौती बना है

क्षेत्र में किरोसिन तेल नहीं है। ऐसे में आग सुलगाने का भी संकट बना हुआ है। मुनस्यारी आदि क्षेत्रों में तो लोग डीजल जलाकर आग सुलगा रहे हैं दूरस्थ गांवों में कागज जला कर आग सुलगाई जा रही है। ऊपर से घरों के आगे रखी गई सूखी लकडिय़ों के ढेर में बर्फ जमी होने से ग्रामीण गीली लकड़ी जलाने को मजबूर हो चुके हैं।

मुनस्यारी में मोबाइल फोन चार्ज कराने को लगी है लाइन

विगत पांच दिनों से बिजली आपूर्ति ठप होने से मुनस्यारी नगर में भी मोबाइल फोन चार्ज कराने की समस्या हो गई थी। शनिवार की रात को मदकोट से होते हुए आपूर्ति बहाल की गई परंतु वोल्टेज कम होने से मोबाइल फोन चार्ज नहीं हो पा रहे हैं। जहां पर जनरेटर लगे हैं उन स्थानों पर मोबाइल फोन चार्ज कराने को लाइन लगी है।

डीजल डाल कर कराना पड़ रहा शवदाह

मुनस्यारी जैसे स्थान पर आज तक लकड़ी का टाल नहीं है। जिसके चलते लोगों को लकड़ी तक नहीं मिल पा रही है। शवदाह के लिए गोरी नदी किनारे पहुंच रहे शवों को जलाने के लिए आसपास के गांवों के ग्रामीणों से लकड़ी मांग कर शवदाह करना पड़ रहा है और डीजल डालकर सुलगाना पड़ रहा है।

बर्फबारी से प्रभावित गांव

मुनस्यारी : घोरपट्टा, बूंगा, सरमोली, जैंती, बर्नियागांव, तल्ला घोरपट्टा,जलथ, दरकोट, सुङ्क्षरग, हरकोट, क्वीरी, जीमिया, साई , पोलू, ढीलम, कुलथम, बसंतकोट, उच्छैती, ढीलम, बौना, तौमिक, झापुली, गोल्फा, राप्ती, बुई, पांतू, जिमिघाट, नामिक,गिनी, गिरगांव , समकोट और नामिक ।

धारचूला: पांगू, रोतों , तंतागांव, हिमखोला, छलमा छिलासों, सौसा, नारायणआश्रम, सिर्खा, सिर्दांग , रूं ग,  गाला, जिप्ती, सिमखोला, बुंगबुंग, सुमदुंग, उमच्या, दर , तीजम  आदि ।

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