Move to Jagran APP

Rock Eagle Owl : रानीखेत के चिलियानौला जंगल में मिला अतिदुर्लभ उल्लू, तांत्रिक करते हैं इसका सबसे ज्यादा शिकार

Rock Eagle Owl यह उल्लू अतिदुर्लभ राक ईगल आउल प्रजाति का है जो बाजार से सटे जंगलात में घायल अवस्था में पड़ा था। अंधाधुंध शिकार के कारण भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम- 1972 की चौथी अनुसूची में इस उल्लू को शामिल किया गया है।

By JagranEdited By: Rajesh VermaPublished: Sat, 24 Sep 2022 08:48 PM (IST)Updated: Sat, 24 Sep 2022 08:48 PM (IST)
Rock Eagle Owl : रानीखेत के चिलियानौला जंगल में मिला अतिदुर्लभ उल्लू, तांत्रिक करते हैं इसका सबसे ज्यादा शिकार
Rock Eagle Owl : डीएफओ की निगरानी में राक ईगल आउल को अल्मोड़ा स्थित रेस्क्यू सेंटर भेज दिया गया है।

जागरण संवाददाता, रानीखेत : Rock Eagle Owl : पर्यटन क्षेत्र रानीखेत के चिलियानौला क्षेत्र में एक अतिदुर्लभ उल्लू पाया गया है। जानकारों के मुताबिक, यह उल्लू अतिदुर्लभ राक ईगल आउल प्रजाति का है, जो बाजार से सटे जंगलात में घायल अवस्था में पड़ा था। वहीं से इसका रेस्क्यू किया गया।

loksabha election banner

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की चौथी अनुसूची में है शामिल

अंधाधुंध शिकार के कारण भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम- 1972 की चौथी अनुसूची में इस उल्लू (Rock Eagle Owl) को शामिल किया गया है। हिमालयी राज्य में उल्लू की यह प्रजाति डेढ़ हजार मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है, जो अब मुश्किल से ही दिखती है। डीएफओ भूमि संरक्षण उमेश तिवारी की निगरानी में राक ईगल आउल को अल्मोड़ा स्थित रेस्क्यू सेंटर भेज दिया गया है।

डिग्री कॉलेज के प्राध्यापकों ने पहले देखा

घटना शनिवार की है, जब चिलियानौला बाजार से सटे वन क्षेत्र में राजकीय महाविद्यालय (Government degree college) में असिस्टेंट प्रोफेसर डा. दीपक उप्रेती व डा. शंकर कुमार को सामान्य से हटकर उल्लू नजर आया। वह घायल था और उड़ने में सक्षम नहीं था। प्राध्यापकों की सूचना पर डीएफओ उमेश तिवारी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए। इसके बाद महाविद्यालय में ही एनसीसी के सीनियर अंडर अफसर चेतन मनराल ने भी उसे रेस्क्यू करने में मदद दी।

शिकार के चलते अतिदुर्लभ श्रेणी में पहुंचा

डीएफओ के अनुसार दुलर्भ उल्लू (Rock Eagle Owl) की लंबाई 56 सेमी तक है। राक ईगल आउल सांप, चूहे, खरगोश आदि के बच्चों का भी शिकार करता है। इसे हिरण के छोटे बच्चों का शिकार करते भी देखा गया है। तंत्र- मंत्र जनित अंधविश्वास के चलते इस प्रजाति का सर्वाधिक शिकार किया जाता है। इससे यह अतिदुर्लभ श्रेणी में पहुंच गया है। प्राचार्य डा. पुष्पेश पांडे तथा सूबेदार मेजर अवकाश प्राप्त सुरेंद्र साह ने महाविद्यालयों के प्राध्यापकों, एनसीसी कैडेट व वन विभाग की पहल को सराहनीय बताया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.