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एक और मानवजनित आपदा की ओर बढ़ रहा उत्तराखंड, सेटलाइट की तस्वीरें हैं चेतावनी

उत्तराखंड की निगरानी के लिए मुस्तैद लैंड सेट डाटा थिमेटिक मैपर सेटेलाइट ने पर्वतीय भूभाग में अनियोजित अवैज्ञानिक और अनियंत्रित विकास की जो तस्वीर पेश की है वह बड़े आपदा की चेतावनी है। यह आपदा केदारनाथ त्रासदी से भी बड़ी हो सकती है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 07:20 AM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 07:20 AM (IST)
एक और मानवजनित आपदा की ओर बढ़ रहा उत्तराखंड, सेटलाइट की तस्वीरें हैं चेतावनी
एक और मानवजनित आपदा की ओर बढ़ रहा उत्तराखंड, सेटलाइट की तस्वीरें हैं चेतावनी। प्रतीकात्मक फोटो

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : विषम भौगोलिक हालात व भूगर्भीय लिहाज से अतिसंवेदनशील हिमालयी राज्य एक और मानवजनित आपदा की ओर बढ़ रहा है। उत्तराखंड की निगरानी के लिए मुस्तैद 'लैंड सेट डाटा थिमेटिक मैपर सेटेलाइट' ने पर्वतीय भूभाग में अनियोजित, अवैज्ञानिक और अनियंत्रित विकास की जो तस्वीर पेश की है वह बड़े आपदा की चेतावनी है। यह आपदा केदारनाथ त्रासदी से भी बड़ी हो सकती है। मगर नीतिनियंता और योजनाकार बेफिक्र हैं। बगैर मास्टर प्लान व भूगर्भीय सर्वे के ही खतरे के मुहाने पर बसासत ने जहां विकट हालात पैदा कर दिए हैं। वहीं तराई भाबर में उर्वर कृषि भूमि पर तेजी से कंक्रीट का जंगल तैयार हो रहा।

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दरअसल, भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के विशेषज्ञों ने 2010 की आपदा से पूर्व व बाद, पर्वतीय राज्य में अनियोजित विकास पर सवाल खड़े किए थे। साथ ही सूबे में मास्टर प्लान के तहत बेहतर प्रबंधन एवं भूगर्भीय सर्वे की पुरजोर वकालत की थी। मगर इसकी अनदेखी जानलेवा बन गई। बीते वर्ष जून में केदारघाटी में प्राकृतिक कम अनियोजित एवं अनियंत्रित विकास से उपजी मानवजनित आपदा ने कहर बरपाया। वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने इसकी तस्दीक भी की।

हैरत की बात है, इतना सब भुगतने के बावजूद तंत्र चेता नहीं है। उत्तराखंड में आपदा प्रभावित इलाकों की निगरानी को भेजे गए 'लैंड सेट डाटा थिमेटिक मैपर सेटेलाइट' ने जो तस्वीर पेश की है, वह बेहद चिंतनीय है। भूकंपीय लिहाज से जोन-5 में शामिल अल्मोड़ा, नैनीताल व भीमताल का बिल्ट एरिया बगैर मास्टर प्लान व भूग्रभीय सर्वे दो से चार गुना बढ़ चुका है। यानी भूकंप का एक झटका सब कुछ तबाह करने को पर्याप्त है।

सेटेलाइट के आंकड़ों पर नजर

अल्मोड़ा

1990 में बिल्ट एरिया 2.3 वर्ग किमी, 2010 में 4.34 वर्ग किमी बढ़ा। यानी दो दशक में बगैर भूगर्भीय सर्वे व मास्टर प्लान खतरे के मुहाने पर दो गुने भवन तैयार। अब एक दशक बाद आंकड़ा चार गुना से ज्यादा।

नैनीताल

1990 के दशक में सरोवर नगरी 2.43 वर्ग किमी में बसी थी। दो दशक बाद 2010 तक 4.38 वर्ग किमी भूभाग बेतहाशा निर्माण से पट गया। प्रतिबंध के बावजूद यहां बिल्ट एरिया 1.95 वर्ग किमी बढ़ चुका है। अब वर्ष 2020 में हालात और विकट।

भीमताल

सबसे घातक हालात भीमताल के हैं। 90 के दशक में यहां का बिल्ट एरिया 0.79 वर्ग किमी था। 2010 तक आंकड़ा 4.11 वर्ग किमी जा पहुंचा। बिल्ट एरिया में 3.32 वर्ग किमी की वृद्धि। अब यहां दस वर्ष बाद चार गुना बढ़ा कंक्रीट का जंगल।

हल्द्वानी

90 के दशक में 7.07 वर्ग किमी में बसासत। 2010 तक निर्माण क्षेत्र बढ़कर 32.06 वर्ग किमी पहुंचा। यानी 20 वर्ष में 24.98 वर्ग किमी कृषि भूमि कंक्रीट के जंगलों में तब्दील। अब हालात और विकट।

रामनगर

राम की नगरी भी अनियोजित विकास से अछूती नहीं रही। 1990 में 1.25 वर्ग किमी बिल्ट एरिया। 2010 में बढ़कर 4.08 वर्ग किमी हुआ। यानी 20 साल में 2.83 वर्ग किमी में फैली कृषि भूमि विकास की भेंट चढ़ी। वर्ष 2020 में आंकड़ा चार गुना बढ़ा।

(आंकड़े कुमाऊं विवि में जीआईएस केंद्र को लैंड सेट डाटा थिमेटिक मैपर सेटेलाइट से हासिल हुए हैं)

अनियोजित व अनियंत्रित व‍िकास खतरनाक  

नेशनल जीयो स्पेशल चेयरप्रोफेसर प्रो. जीवन सिंह रावत ने बताया कि अनियोजित व अनियंत्रित नगरीय विकास ही मानवजनित आपदा है। इसमें प्रकृति उतना कहर नहीं ढाती जितना अवैज्ञानिक तौर तरीके हमें आपदा के मुंह में धकेल देते हैं। केदारघाटी त्रासदी की पुनरावृत्ति से बचना है तो उत्तराखंड में मास्टर प्लान पर अमल करना ही होगा। पहाड़ में भवन निर्माण से पूर्व ईमानदारी से भूगर्भीय सर्वे करा हम खतरा टाल सकते हैं।


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