कब तक हाईकोर्ट की फटकार सुनते रहोगे सरकार, हद हो गई, अब तो चेत जाओ
जब किसी बिगड़ैल बच्चे को कोई काम दिया जाता है और बार-बार टोकने पर भी नहीं करता तो वह जिद्दी भी बन जाता है। यानी उसे बातें सुनने की आदत सी पड़ जाती है। वह फटकार मार सब सहते रहता है।
जेएनएन, गणेश जोशी : जब किसी बिगड़ैल बच्चे को कोई काम दिया जाता है और बार-बार टोकने पर भी नहीं करता तो वह जिद्दी भी बन जाता है। यानी उसे बातें सुनने की आदत सी पड़ जाती है। वह फटकार, मार सब सहते रहता है। समझदार अभिवावक उसे नए-नए टास्क देकर सुधारने में लगे रहते हैं कि कभी तो सुधरेगा। ठीक यही हाल है उत्तराखंड सरकार का। 20 साल के उत्तराखंड में न जाने हाईकोर्ट में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कितना क्या कुछ नहीं कह दिया है। कई बार तल्ख टिप्पणी भी की जा चुकी है। इसके बावजूद जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों को फर्क पड़ता नहीं दिखता। एक बार फिर आठ अक्टूबर को हाई कोर्ट ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए राज्य सरकार से स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति पर फिर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। देखते हैं, सरकार अब इससे कितना चेतती है।
यूं ही बर्बाद न करें जीवन
माना कि इस समय घोर संकटकाल है। जीवन की तमाम चुनौतियों से घिरे हुए हैं, लेकिन जीवन को यूं ही व्यर्थ गंवा देना या खत्म कर देना उचित नहीं। जीवन अनमोल है। इस संकट व धैर्य के बीच उम्मीद तो रखनी ही है। लाकडाउन के समय से और इसके बाद बेरोजगारी, अनिश्चितता, अकेलापन, बंदिशें, भावनात्मक संकट, चिंता तमाम ऐसी परिस्थितयां पैदा हुई हैं, जिनकी वजह से कुमाऊं में ही आठ महीने में 328 लोगों ने अपनी जीवनलीला खत्म कर ली। नौ अक्टूबर को ही रामनगर क्षेत्र में आॢथक तंगी के शिकार व्यक्ति ने परिवार को ही खत्म करने की ठान ली। न खुद जहर खाया, बल्कि तीन बच्चों व बैलों को भी खिला दिया। डिप्रेशन का स्तर किस हद तक पहुंच गया होगा, राज्य की इस गंभीर घटना से अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
उम्र के बंधन में फंसा युवा मोर्चा
राज्य में सत्तारूढ़ दल भाजपा की युवा टीम अभी नहीं बन सकी है। कभी दावेदारों की संख्या अधिक तो कभी कुछ और मामलों को लेकर घमासान। जब दल सत्ता में होता है तो संगठन में शामिल होने की होड़ भी ज्यादा ही बढ़ जाती है। ऐसे में संगठन के मुखिया के लिए युवा मोर्चा की कार्यकारिणी का विस्तार करना आसान नहीं होता। जबकि सभी मोर्चों में पदाधिकारी तय करने से भी दावेदारों की छटपटाहट बढ़ गई है। पार्टी के भीतर चर्चा आम है कि मामला उम्र के बंधन पर अटका है। हालांकि स्पष्ट तौर पर कुछ भी सामने नहीं हैं, लेकिन जिला स्तर पर 30 और प्रदेश स्तर पर 35 वर्ष के युवाओं को ही शामिल करने को लेकर ऊहापोह बना हुआ है। उम्र का यह बंधन तमाम तेजतर्रार युवाओं को पसंद नहीं। जिनकी पहुंच ऊंची है, उन्हेंं भी यह रास नहीं आ रहा है।
परंपरगत फसलें ऐसे कैसे देंगी रोजगार
मंडी एक्ट लागू होने से परंपरागत फसलों को और बेहतर बाजार मिलना चाहिए था, लेकिन ठीक उल्टा हो रहा है। कुमाऊं में सबसे बड़ी हल्द्वानी मंडी समिति ने आमदनी में गिरावट के चलते परंपरागत फसलें नहीं खरीदने का निर्णय लिया है। जबकि पिछली बार 124 क्विंटल फसलें खरीदी थी, जिसमें 62.40 क्विंटल तो मडुवा ही था। इस तरह के हालात में परंपरागत फसलों को आगे बढ़ाने के दावे कैसे पूरे होंगे? जबकि कोरोनाकाल में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ी है। स्वरोजगार को लेकर भी इसे बेहतर विकल्प बताया जा रहा है। अगर सरकार की एजेंसियां ही हाथ खड़े कर देंगी, तो किसान कैसे प्रोत्साहित होंगे? अच्छी खबर यह भी है कि कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर की शोध छात्रा आयुषी जोशी ने मडुवे का डोनट केक तैयार कर लिया है। त्रिवेंद्र सरकार को इन उत्पादों को बाजार देने के लिए सिर्फ बात नहीं बल्कि माहौल तो बनाना ही चाहिए।