जनरल-ओबीसी आंदोलन पर सरकार-विपक्ष दोनों मौन, चलिए समझते हैं पूरा मामला nainital news
प्रमोशन में रिजर्वेशन के खिलाफ शुरू हुआ जनरल-ओबीसी कर्मचरियों के आंदोलन का स्वरूप दिनों-दिन व्यापक रूप ले रहा है।
नैनीताल, स्कंद शुक्ल : प्रमोशन में रिजर्वेशन के खिलाफ शुरू हुआ जनरल-ओबीसी कर्मचरियों के आंदोलन का स्वरूप दिनों-दिन व्यापक हो रहा है। आंदोलन के विरोध या समर्थन में अभी तक किसी मंत्री, सांसद या विधायक का कोई सार्वजनिक तौर पर बयान नहीं आया है। विपक्ष भी पूरे मसले पर मौन साधे हुए है। दरअसल आरक्षण जैसे संवेदनशील मसला हमेशा से ही सत्ता के लिए चुनौती भरा रहा है और विपक्ष के लिए एक अवसर की तरह। वहीं उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी गेंद पूरी तरह से सरकार के पाले में डाल दी है। सरकार के सामने स्थिति ऐसी बन गई है कि न उगलते बन रहा है न निगलते। चलिए फिर समझने की कोशिश करते हैं कि पूरा मामला है क्या। क्याें इसको लेकर सरकार और विपक्ष अपना रुख स्पष्ट नहीं कर रही है।
आखिर आंदोलन क्यों कर रहे हैं जनरल-ओबीसी कर्मचारी
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने यानी सात फरवरी को दिए अपने फैसले में उत्तराखंड होइकोर्ट के एक आदेश को पलट दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया है कि प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य को इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही यह भी टिप्पणी की कि एसटी-एसटी समुदाय का सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह नौकरियों एवं प्रमोशन में आरक्षण देने का कानून बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी-एसटी कर्मचारी उग्र हो गए और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया। सरकार के आश्वासन के बाद वे शांत हुए तो अब जानरल-ओबीसी कर्मचारी उग्र हो गए। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बाद भी सरकार प्रामोशन में आरक्षण कैसे दे सकती है। इसको लेकर वे विगत 12 दिनों से कार्य बहिष्कार कर आंदोलन पर हैं। उनका कहना है कि सरकार जब तक इस संदर्भ में लिखित आदेश जारी नहीं करती है, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
चलिए शुरू से बताते हैं पूरी कहानी
दरअसल उत्तराखंड सरकार ने पांच सितंबर, 2012 को एक नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें एसटी-एसटी को बिना आरक्षण दिए राज्य में सभी सरकारी पदों को भरने का आदेश दिया गया। नोटिफिकेशन में स्पष्ट कहा गया था कि उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विसेज (रिजर्वेशन फॉर शिड्यूल्ड कास्ट्स, शिड्यूल्ड ट्राइब्स ऐंड अदर बैकवर्ड क्लासेज) ऐक्ट, 1994 के सेक्शन 3(7) का लाभ भविष्य में राज्य सरकार द्वारा प्रमोशन दिए जाने के फैसलों के वक्त नहीं दिया जा सकता है।
नोटीफिकेशन रद्द करने को असिस्टेंट कमिश्नर ने दायर की याचिका
सरकार के नोटीफिकेशन के खिलाफ टैक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में तैनात उधमसिंह नगर निवासी ज्ञानचंद ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अनुसूचित जाति के ज्ञानचंद तब उधम सिंह नगर के खटीमा में तैनात थे। उन्होंने उत्तराखंड सरकार के इस नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट के 10 जुलाई, 2012 के एक फैसले को ही आधार बनाया । उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यह आदेश 2011 में दाखिल एक याचिका की सुनवाई के बाद दिया था। इसमें याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विसेज (रिजर्वेशन फॉर शिड्यूल्ड कास्ट्स, शिड्यूल्ड ट्राइब्स ऐंड अदर बैकवर्ड क्लासेज) ऐक्ट, 1994 के सेक्शन 3(7) को चुनौती दी थी। उत्तराखंड के निर्माण के बाद सरकार ने इस ऐक्ट को नए राज्य में भी अपनाया था। सेक्शन 3(7) को चुनौती एम. नागराज एवं अन्य बनाम भारत सरकार एवं अन्य मामले में साल 2006 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर दी गई थी।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को रद्द किया
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 2019 में राज्य सरकार के 2012 के नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए सरकार को वर्गीकृत श्रेणियों का आरक्षण देने का आदेश दिया। उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन और जस्टिस एनएस प्रधान ने नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए कहा था कि अगर राज्य सरकार चाहे तो वह संविधान के अनुच्छेद 16 (4A) के तहत कानून बना सकती है।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर हुईं एसएलपी
हाईकोर्ट के फैसले से कई पक्ष प्रभावित हुए और कुल सात पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन (एसएलपी) दायर की। पूरा विवाद संविधान के अनुच्छेद 16 की व्याख्या को लेकर हुआ। आर्टिकल 16 का विषय 'लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता' है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 26 सितंबर, 2018 को फैसला दिया था जिसमें उसने स्पष्ट शब्दों में आर्टिकल 16 (4A) और 16 (4B) को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं माना। संविधान पीठ ने प्रमोशन देने में इन दोनों अनुच्छेदों को लागू करने का निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा उत्तराखंड हाईकोर्ट का फैसला
उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16(4-A) में इस आशय के कोई प्रस्ताव नहीं हैं और आरक्षण किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सात फरवरी 2020 को उत्तरांखड सरकार की इस दलील को मानते हुए कहा कि संविधान के ये दोनों अनुच्छेद सरकार को यह अधिकार देते हैं कि अगर उसे लगे कि एसटी-एसटी समुदाय का सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वह नौकरियों एवं प्रमोशन में आरक्षण देने का कानून बना सकती है। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितंबर, 2012 के उत्तराखंड सरकार के नोटिफिकेशन को वैध बताते हुए हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। किसी का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह प्रमोशन में आरक्षण का दावा करे। कोर्ट इसके लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता कि राज्य सरकार आरक्षण दे।
अब आंदोलन पर सरकार और विपक्ष दोनों खामोश
वहीं अब जबकि जनरल-ओबीसी कर्मचारी सड़क पर उतर आए हैं तो सरकार और विपक्ष दोनों खामोश हैं। दफ्तरों में कामकाज प्रभावित है, ऐसे में आम लोगों को प्रभावित होना पड़ रहा है। वहीं अब हड़ताली कर्मचारियों ने काम कर रहे लोगों को भी रोकना शुरू कर दिया है। जिस कारण टकराव की स्थिति बन रही है। हालांकि खुफिया एजेंसियां और प्रुलिस-प्रशासन ने हालाल पर नजर बनाए रखा है। देखने वाली बात ये होगी कि आंदोलन का हासिल क्या होता है।
गोलमाल जवाब दे रहे सरकार व विपक्ष के जिम्मेदार
कर्मचारियों की हड़ताल के बाबत जब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत से पूछा गया तो उन्होंने गोलमोल जवाब दिया। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों से बात हुई, मुख्यमंत्री से भी उनकी बात कराई गई है। लोकतंत्र है हर किसी को विरोध-प्रदर्शन करने का अधिकार है। लेकिन जनहित को देखते हुए कर्मचारियों को हड़ताल वापस ले लेनी चाहिए। हालांकि उन्होंने हड़ताली कर्मचारियों की मांगों को लेकर पक्ष या विपक्ष में अपना रुख स्पष्ट नहीं किया। वहीं पिछले दिनों जब नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश से मिलने जनरल-ओबीसी कर्मचारी पहुंचे तो उन्होंने मुलाकात तो की लेकिन अपना रुख साफ करने से इन्कार कर दिया।
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