Uttarakhand Political Crisis : अनुषांगिक संगठनों की नाराजगी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से हुई त्रिवेंद्र की विदाई
प्रचंड बहुमत के साथ राज्य की सत्ता पर काबिज त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुख्यमंत्री पद से विदाई से भले ही सियासी पंडित भौचक हों मगर भाजपा संगठन में अजीब खामोशी है। खासकर वरिष्ठ होने के बाद उपेक्षित किए गए कार्यकर्ता बदलाव को संगठन के लिए सुखद करार दे रहे हैं।
नैनीताल, किशोर जोशी : प्रचंड बहुमत के साथ राज्य की सत्ता पर काबिज त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुख्यमंत्री पद से विदाई से भले ही सियासी पंडित भौचक हों मगर भाजपा संगठन में अजीब खामोशी है। खासकर वरिष्ठ होने के बाद उपेक्षित किए गए कार्यकर्ता इस बदलाव को संगठन के लिए सुखद करार दे रहे हैं। पुराने व वरिष्ठ नेताओं के फीडबैक ने ही इस बदलाव की पटकथा लिख डाली थी और विधायकों के माध्यम से कार्यकर्ता असंतोष की आहट हाईकमान तक पहुंची तो मुख्यमंत्री रावत को कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देना पड़ा।
दरअसल, सालों तक संगठन में रहे त्रिवेंद्र 2017 में प्रचंड बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने तो कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ। आरएसएस के अनुषांगिक संगठन भी बेहद उत्साहित थे। समय बीतने के साथ जब कार्यकर्ताओं की उपेक्षा शुरू हुई, दशकों पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की मुख्यमंत्री के जिलों में दौरों के दौरान सुध नहीं ली गई तो असंतोष की लपटें उठने लगीं। दायित्वधारियों की नियुक्ति हुई तो उसका आधार संगठन की नहीं बल्कि व्यक्तिगत पसंद रहा। इससे पुराने नेता और नाराज हो गए और उन्होंने अपने संपर्कों के माध्यम से हाईकमान तक अपनी बात पहुंचाई। साफ संदेश भी दे दिया कि यदि प्रदेश नेतृत्व का यही रवैया रहा तो वह आगामी चुनाव में संगठन के लिए काम नहीं करेंगे।
अनुषांगिक संगठन भी रहे नाराज
सरकार की कार्यप्रणाली से अनुषांगिक संगठनों में नाराजगी रही। मसलन बागेश्वर निवासी भारतीय मजदूर संघ के प्रांतीय अध्यक्ष रहे 80 साल के बुजुर्ग रमेश जोशी की शिक्षिका बहू गंभीर बीमार थी तो तबादले के लिए जोशी सीएम तक पहुंचे। संघ के तमाम पदाधिकारियों ने भी गुहार लगाई। बड़ी मुश्किल से सीएम ने मामला मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी को अग्रसारित किया तो कमेटी के आदेश को बागेश्वर के जिलास्तर के अधिकारी ने नहीं माना। ऐसे अनेक मामले रहे, जिससे अनुषांगिक संगठनों में मुख्यमंत्री को लेकर नाराजगी बढ़ती गई। ऐसे में सीएम के खिलाफ विधायक एकजुट हुए तो अनुषांगिक संगठनों ने भी मामले में चुप्पी साध ली।
विरोधियों को अहमियत ने बढ़ाई विधायकों में नाराजगी
पिछले चार साल के कार्यकाल में विधायकों को सरकार में इतनी भागीदारी नहीं मिली, जितनी अपेक्षा थी। सीएम दरबार के चहेते अफसरों ने विधायकों के कामों में रोड़े अटकाए। डीडीहाट के वरिष्ठ विधायक बिशन सिंह चुफाल ने तो खुला आरोप लगाया कि उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए अधिकारियों के माध्यम से तथा पार्टी में उनके विरोधियों को दायित्व देकर कमजोर करने की साजिश रची जा रही हैै। चुफाल इसकी शिकायत लेकर राष्टï्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक मिले थे।
सर्वे रिपोर्ट ने खोली हाईकमान की आंख
मुख्यमंत्री के इस्तीफे की बड़ी वजह भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उत्तराखंड की सर्वे रिपोर्ट भी है। सूत्रों के अनुसार दो एजेंसियों की ओर से कराए गए सर्वे रिपोर्ट ने हाईकमान को भी परेशान कर दिया। रिपोर्ट में 2022 के चुनाव में 24 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी।
विपक्ष के कमजोर हमलों ने भी दी हवा
राज्य में खासकर कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पर सियासी हमले कम किए गए। कांग्रेस की बैठकों तक में वरिष्ठ नेता यह कहते सुने गए कि मुख्यमंत्री को टारगेट मत करो, यदि मुख्यमंत्री पांच साल बने रहे तो सरकार के खिलाफ आक्रोश ही कांग्रेस को 2022 की सत्ता में वापसी की राह आसान बना देगी। कांग्रेस का यह फीडबैक भी हाईकमान तक पहुंच गया था। पार्टी में उनके विरोधियों को दायित्व देकर कमजोर करने की साजिश रची जा रही है। चुफाल इसकी शिकायत लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक मिले थे।
सर्वे रिपोर्ट ने खोली हाईकमान की आंख
मुख्यमंत्री के इस्तीफे की बड़ी वजह भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उत्तराखंड की सर्वे रिपोर्ट भी है। सूत्रों के अनुसार दो एजेंसियों की ओर से कराए गए सर्वे रिपोर्ट ने हाईकमान को भी परेशान कर दिया। रिपोर्ट में 2022 के चुनाव में 24 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी।
विपक्ष की यह रणनीति भी पहुंचे हाईकमान के पास
राज्य में खासकर कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पर सियासी हमले कम किए गए। कांग्रेस की बैठकों तक में वरिष्ठ नेता यह कहते सुने गए कि मुख्यमंत्री को टारगेट मत करो, यदि मुख्यमंत्री पांच साल बने रहे तो सरकार के खिलाफ आक्रोश ही कांग्रेस को 2022 की सत्ता में वापसी की राह आसान बना देगी। कांग्रेस का यह फीडबैक भी हाईकमान तक पहुंच गया था।
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