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आकाश गंगा में ब्लैक होल ढूढ़ने वाली नोबल विनर प्रो. एंड्रिया की खोज को आगे बढ़ाएगा भारत

इस साल भौतिकी का नोबेल प्राइज जीतने वाली प्रो. एंड्रिया घेज की खोज को भारत अब आगे बढ़ाएगा। भारत के साथ मिलकर अमेरिका जापान कनाडा और चीन थर्टी मीटर टेलीस्कोप यानी टीएमटी परियोजना पर काम कर रहे हैं।

By Edited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 06:13 AM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 10:01 AM (IST)
आकाश गंगा में ब्लैक होल ढूढ़ने वाली नोबल विनर प्रो. एंड्रिया की खोज को आगे बढ़ाएगा भारत
आकाश गंगा में ब्लैक होल ढूढ़ने वाली नोबल विनर प्रो. एंड्रिया की खोज को आगे बढ़ाएगा भारत

नैनीताल, जेएनएन : इस साल भौतिकी का नोबेल प्राइज जीतने वाली प्रो. एंड्रिया घेज की खोज को भारत अब आगे बढ़ाएगा। भारत के साथ मिलकर अमेरिका, जापान, कनाडा और चीन थर्टी मीटर टेलीस्कोप यानी टीएमटी परियोजना पर काम कर रहे हैं। इस परियोजना के महत्वपूर्ण उपकरणों के माॅडल व विज्ञान की भावी संभावनाओं को लेकर प्रो. घेज ने अहम योगदान दिया है।

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एरीज के विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडे भी टीम में शामिल होकर परियोजना में अन्य विज्ञानियों की मदद कर रहे हैं। डाॅ. शशिभूषण बताते हैं कि सुदूर अंतरिक्ष के रहस्यों का जानने के लिए लिए 30 मीटर ऑप्टिकल दूरबीन अमेरिका के हवाई द्वीप में बनाई जा रही है। इस परियोजना की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि प्रो. एंड्रिया घेज ने हमारी आकाशगंगा के केंद्र में सुपर मैसिव कांपेक्ट आब्जेक्ट यानी ब्लैकहोल की खोज की है।

इसी खोज के लिए उन्हें नोबेल प्राइज दिया गया है। अब इस खोज को टीएमटी से ही आगे बढ़ाया जाएगा। यह 30 मीटर व्यास की दूरबीन होगी। उन्होंने बताया कि 2007 से शुरू परियोजना को 2014 में भारत सरकार से स्वीकृति मिली थी। भारत इसमें 10 फीसदी का हिस्सेदार है। टीएमटी के उपयोग में लाए जाने वाले उपकरणों के डिजाइन व विज्ञान की भावी संभावनाओं के मूल्याकंन टीम में प्रो. एंड्रिया 2014-16 के बीच टीएमटी का हिस्सा रही थीं। जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सुझाव दिए थे।

अपने जिम्मे का कार्य बखूबी निभा रहा देश 

डाॅ. शशिभूषण पांडे ने बताया कि उनके द्वारा किया जा रहा सिग्मेंट सपोर्ट एसेंबली का काम पूरा हो चुका है, जबकि मिरर पॉलिसिंग कार्य प्रगति पर है। अपने जिम्मे का कार्य एरीज बखूबी निभा रहा है।

15 हजार करोड़ से बनाई जा रही दूरबीन 

डाॅ. पांडे ने बताया कि यह परियोजना 15 हजार करोड़ रुपये की है, जिसमें भारत 12 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। दूरबीन बनाने में अभी दस साल का समय लगेगा। दुनिया की यह बड़ी दूरबीन हवाई द्वीप समूह में स्थापित की जाएगी।


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