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तंत्र की बेरुखी से बेजार शहीद चंदन का गांव

कारगिल की जंग में लांस नायक चंदन सिंह भंडारी शहीद हो गए। मगर तंत्र ने इनके गांव कोई सुध न ली। उपेक्षा से आहत दो वर्ष पूर्व पार्वती देवी भी चल बसी।

By Edited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 01:37 AM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 02:35 PM (IST)
तंत्र की बेरुखी से बेजार शहीद चंदन का गांव

गरमपानी, नैनीताल [जेएनएन]: देश की खातिर जिस जांबाज ने जान की बाजी लगा दी, तंत्र शहादत का ऋण न चुका सका। बलिदानी बेटे की मां ने कुछ मांगा भी नहीं। बस सड़क, इंटर कॉलेज या एलोपैथिक अस्पताल को शहीद का नाम दिए जाने की इच्छा जरूर जाहिर की थी। मगर मुराद पूरी न हो सकी। सिमलखा गांव (बेतालघाट ब्लॉक) के लांसनायक चंदन सिंह भंडारी (28) ने 19 अगस्त 1999 को कारगिल की जंग में कई दुश्मन घुसपैठियों को मार गिराया। पाकिस्तानी विमानों की बमबारी के दौरान बंकर से मुंहतोड़ जवाब दे रहा यह सपूत शहीद हो गया। 1986 में भर्ती इस बहादुर सैनिक की मां पार्वती देवी ने एक सड़क, इंटर कॉलेज या एलोपैथिक अस्पताल का नाम शहीद बेटे की याद में रखने की मंशा जताई थी। मगर तंत्र ने कोई सुध न ली। उपेक्षा से आहत दो वर्ष पूर्व पार्वती देवी भी चल बसी।

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और छलक आई आंखें 

शौर्य दिवस पर शहीद चंदन सिंह के गांव सिमलखा के तोक भराड़ी में पहुंची 'जागरण टीम' के जिक्र छेड़ने पर शहीद के भाई पूरन सिंह की आखें छलक आई। भाई की शहादत पर उसे गर्व है, लेकिन शासन प्रशासन की उपेक्षा की पीड़ा भी कम नहीं। उसने कहा कि उसकी याद में स्कूल का नाम ही रख दिया जाता तो सुकून मिलता। मां की इच्छा भी पूरी हो जाती।

गरीबी से ज्यादा व्यवस्था से दुखी

जाबाज चंदन के भाई भूपाल सिंह व पूरन सिंह की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। दोनों भाई बेरोजगार हैं। खेतीबाड़ी से गुजारा कर रहे हैं। वह गरीबी से दुखी नहीं हैं पर तंत्र का शहीद सैनिक को भूलने की पीड़ा खूब है। आलम यह है कि शहीद के गांव को जोड़ने वाला मार्ग तक नहीं बन सका है।

गांव में देना चाहता था युवाओं को प्रशिक्षण

शहीद चंदन सेना से अवकाश पर आने के बाद गांव के युवाओं को फौज में भर्ती के लिए ट्रेनिंग देने की इच्छा रखता था। उसने पुलिस की परीक्षा भी पास कर ली थी। मगर फौज को ही चुना और आखिरी सांस तक देशसेवा में जान झोंकता रहा।

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