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जागेश्वर धाम के मंदिरों के अस्तित्व को खतरा, मरम्‍मत नहीं करा रहा पुरातत्‍व विभाग

विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम के मंदिर समूहों के अस्तित्व को पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण लगातार खतरा पैदा हो रहा है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 07:11 PM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 06:07 PM (IST)
जागेश्वर धाम के मंदिरों के अस्तित्व को खतरा, मरम्‍मत नहीं करा रहा पुरातत्‍व विभाग

जागेश्वर (अल्मोड़ा), जेएनएन : विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम के मंदिर समूहों के अस्तित्व को पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण लगातार खतरा पैदा हो रहा है। कई मंदिर जर्जर होकर गिरने की हालत में पहुंच चुके हैं तो मंदिर परिसर में तोड़े गए प्राचीन मंडपों का निर्माण भी अभी तक नहीं हो पाया है।  

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जागेश्वर धाम में श्री दंडेश्वर महादेव मंदिर काफी पौराणिक और प्रसिद्ध मंदिर समूहों में एक है। यह मंदिर समूह जागेश्वर से पश्चिम की ओर एक किमी की दूरी पर है। पुराणों के अनुसार इसी स्थान पर भगवान शिव ने पूजा और तप किया था और सप्तऋषियों के श्राप के कारण यहां शिवलिंग पतित हुआ था। जिसके बाद इसी स्थान से लिंग पूजा का विधान आरंभ हुआ। यही कारण है कि पुराणों में भी इस स्थान को भगवान शिव के प्रमुख स्थानों में गिना जाता है, लेकिन पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण अब इस मंदिर समूह का अस्तित्व खतरे में है। दंडेश्वर मुख्य मंदिर व द्वादश ज्‍योतिर्लिंग के आगे सालों पुराने मंडपों को पुरातत्व विभाग ने तुड़वा तो दिया, लेकिन उनका आज भी पुनर्निर्माण नहीं हो पाया है। समूह के कई मंदिरों में लगे पत्थर गल चुके हैं। जिस कारण कई मंदिर धराशायी होने की स्थिति में हैं। पुरातत्व विभाग ने जागेश्वर धाम मंदिर के प्राचीन नक्काशी युक्त मुख्य द्वार को तोड़कर वहां सीमेंट से गेट का निर्माण कराया है। 

स्थानीय पुजारियों का कहना है कि पुरातत्व विभाग ने पौराणिक धरोहरों को संजो कर रखने के बजाय उन्हें तोड़कर नष्ट करने का काम किया है। जबकि मंदिर परिसर की साफ सफाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी धाम के मंदिरों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। पुजारियों ने कहा है कि अगर मंदिर के संरक्षण के लिए गंभीरता से काम नहीं किया गया तो इनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। 

नागर शैली में निर्मित हैं जागेश्वर के मंदिर समूह

जागेश्वर धाम के अधिकांश मंदिर समूह उत्तर भारतीय नागर शैली में निर्मित हैं। जिसमें मंदिर की संरचना में उसके ऊंचे शिखर को प्रधानता दी जाती है। मंदिर के शिखर के ऊपर लकड़ी की छत का निर्माण किया जाता है। इन मंदिरों पर नेपाली और तिब्बती प्रभाव भी प्रतीत होता है। कुछ मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में भी बने हैं, लेकिन आज इन मंदिरों के संरक्षण की जरूरत महसूस होने लगी है। 

2500 साल पुराने हैं मंदिर 

जागेश्वर समूह के मंदिरों का निर्माणा एएसआई के अनुसार गुप्तकालीन और पूर्व-मध्य युग के हैं। बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग 2,500 साल पुराने है जिनका निर्माण 8 वीं शताब्दी (प्रारंभिक कात्युरी राजवंश) से 18 वीं शताब्दी (चंद राजवंश) तक की अवधि में हुआ है। कत्यूरी राजा शालिवाहनदेव के शासनकाल के दौरान इन मंदिरों का नवीनीकरण किया गया था। यहां मंदिर के मुख्य परिसर में मल्ला राजाओं का एक एक शिलालेख स्थित है जो उनकी जागेश्वर के प्रति भक्ति को दर्शाता है। कत्यूरी राजाओं ने मंदिर के रख रखाव के पुजारियों को गाँव भी दान में दिए थे और कुमायूँ के चाँद राजा भी जागेश्वर मंदिर के संरक्षक थे। जगरेश्वर मंदिरों की दीवारों और स्तंभों पर विभिन्न अवधियों के 25 शिलालेख देखने को मिलते हैं, जिनमे से ज्यादातर 7 वीं शताब्दी ईस्वी से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच के हैं। इन शिलालेखों भाषा संस्कृत और ब्राह्मी है।

दो छोटे मंदिरों की होगी मरम्‍मत  

मनोज जोशी, अस्सिटेंट सुपरिटेंडेंट आर्कोलॉजिस्ट, जागेश्वर ने बताया कि जागेश्वर मंदिर समूह के मंदिरों के संरक्षण के लिए विभाग गंभीर है। दो छोटे मंदिरों को मरम्मत के लिए लिया गया है। जबकि भोगशाला की जर्जर हालत में सुधार लाए जाने की योजना है। शीघ्र ही कार्य पूरा कर लिया जाएगा।


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