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swami vivekananda jayanti : उत्‍तराखंड आए थे स्‍वामी विवेकानंद, उनके विचारों का साकार कर रहा मायावती आश्रम

युगपुरुष स्‍वामी विवेकानंद का उत्‍तराखंड से गहरा नाता रहा है। प्रकृति की शांत वादियां और हिमालय की आध्‍यात्मिक शक्ति उन्‍हें कुमाऊं उन्‍हें कुमाऊं खींच लाई थी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 12 Jan 2020 08:53 AM (IST)Updated: Sun, 12 Jan 2020 08:53 AM (IST)
swami vivekananda jayanti : उत्‍तराखंड आए थे स्‍वामी विवेकानंद, उनके विचारों का साकार कर रहा मायावती आश्रम

अल्मोड़ा, जेएनएन : युगपुरुष स्‍वामी विवेकानंद का उत्‍तराखंड से गहरा नाता रहा है। प्रकृति की शांत वादियां और हिमालय की आध्‍यात्मिक शक्ति उन्‍हें कुमाऊं उन्‍हें कुमाऊं खींच लाई थी। स्‍वामी उनका मत था कि हिमालय की ओर बढ़ता मानव मन स्वत: ही आध्यात्म में डूब जाता है। यही वजह रही कि वे चाहते थे हिमालय की शांति व निर्जनता में एक ऐसा मठ स्‍थापित हो जहां अद्वैत की शिक्षा व साधना दोनों हो सके। वह मानते थे कि देवभूमि होकर भी यहां अद्वैत अर्थात जीवात्मा एवं परमात्मा में कोई फर्क नहीं। इसी उद्देश्य को ध्‍यान में रखते हुए उनके अनुयाइयों द्वारा एक शताब्दी पूर्व चम्‍पावत जिले में लोहाघाट के निकट घने जंगलों के बीच मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना की गई। स्वामी जी के शिष्य सेवियर दंपत्ति द्वारा इस आश्रम का निर्माण 19 मार्च 1899 में कराया गया।

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तीन जनवरी 1901 को पधारे थे स्‍वामी विवेकानंद

मायावती आश्रम में स्वामी विवेकानंद का पदार्पण तीन जनवरी 1901 को हुआ था। तब स्वामी जी काठगोदाम से वाया देवीधुरा होते हुए लगभग 173 किमी की दुर्गम पैदल यात्रा कर अपने अनुयायियों के साथ मायावती पहुंचे थे। दो सप्ताह के प्रवास के दौरान स्वामी जी ने यहां ध्यान एंव वेदांत की रसधारा प्रवाहित करते हुए इस आश्रम को अद्वैत भाव से जोड़ा। तभी से यह आश्रम एक तीर्थ के रूप में विख्यात हो गया। स्‍वामी जी ने सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में भी चिंतन किया। वहीं कोसी, सिरौत व उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी की त्रिवेणी पर अलौकिक अध्यात्मिक शक्ति के केंद्र काकड़ीघाट में ध्यान लगाया।

श्री रामकृष्ण मठ एवं मिशन बेल्लूर करता है आश्रम का संचालन

नर रूप में नारायण की सेवा के लिए स्थापित यह आश्रम आज भी अपने उद्देश्यों पर खरा उतर रहा है। आश्रम द्वारा गरीबों, असहाय व दलितों के उत्थान के लिए समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रम व शिविर संचालित कर उनकी सेवा की जा रही है। शिक्षा के प्रचार प्रसार के साथ लोगों को बेहतर स्वास्थ सुविधा दिलाने के लिए यह आश्रम मील का पत्थर साबित हो रहा है। आश्रम की स्थापना के बाद पहले अध्यक्ष के रूप में स्वामी स्वरूपानंद महाराज ने कार्यभार संभाला। आश्रम का संचालन श्री रामकृष्ण मठ एवं मिशन बेल्लूर द्वारा किया जाता है।

आज भी देश-विदेश से पहुंचते हैं स्‍वामी जी के अनुयायी

आज भी स्वामी जी के अनुयाई अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, जापान, आस्ट्रेलिया सहित देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों से यहां पहुंचकर आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करते हैं। आश्रम स्थल से दिखने वाली हिमालय की लम्बी पर्वत श्रृखंलाएं व शांत वादियां बरबस ही लोगों को अपने ओर खींच लेती हैं। आश्रम में प्रतिवर्ष देश-विदेश के ख्याति प्राप्त चिकित्सकों को बुलाकर आश्रम के धर्मार्थ अस्पताल में चिकित्सा शिविर आयोजित कर हजारों मरीजों का निशुल्क उपचार करवाया जा रहा है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों व विभिन्न शिक्षण संस्थानों में शिविर आयोजित कर स्वामीजी के आदर्शो पर चलने की प्रेरणा दी जा रही है।

मजबूत हो रही एकात्मवाद की जड़ें

जुलाई 1890 में स्वामी विवेकानंद अयोध्या से अखंडानंद जी के साथ पैदल यात्रा कर नैनीताल पहुंचे। छह दिन प्रसन्न भट्टाचार्य के घर रुकने के बाद अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे पर काकड़ीघाट के पास पीपल वृक्ष के नीचे आत्मज्ञान की प्राप्ति में लीन हो गए।

विवेकानंद के पथ पर चल रहे युवा

युग पुरुष के 'दरिद्र सेवा नारायण सेवा' के संदेश को आगे बढ़ाने के लिए जुलाई 2018 में नौगांव के युवा हरीश सिंह परिहार ने स्वामी विवेकानंद सेवा समिति बनाने का निर्णय लिया। इसमें उनके सहभागी बने पश्चिम बंगाल निवासी स्वामी विवेकानंद के अनन्य अनुयायी शांतिकुमार घोष। उन्होंने उस बोधि वृक्ष का क्लोन तैयार कराने को जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि (पंतनगर) के वैज्ञानिकों की मदद का रास्ता निकाला, जिसकी छांव तले स्वामी विवेकानंद ने ध्यान लगाया। अब उसी वृक्ष से तैयार दो क्लोन परिसर में बड़े हो रहे हैं।

शारदा मां की रसोई से जल रहे गरीबों के चूल्हे

स्वामी विवेकानंद जयंती समारोह पर उनकी तपोस्थली काकड़ीघाट से गरीबों की सेवा का कार्य सालभर चलता है। समिति अध्यक्ष हरीश सिंह परिहार की पहल पर युग पुरुष को आशीर्वाद देने वाली मां शारदा के नाम पर अप्रैल 2019 में 'शारदा मां की रसोई' का श्रीगणेश किया गया। यहां से अब तक 25 गरीब परिवारों को हर माह निश्शुल्क राशन मुहैया कराया जा रहा है। आसपास के गांवों के 250 निर्धन परिवारों के विद्यार्थियों को पाठ्य सामग्री, गणवेश बांट शिक्षा से जोडऩे की मुहिम शुरू की गई। वहीं काकड़ीघाट में ध्यान योग केंद्र कक्ष का निर्माण किया गया है। पुस्तकालय तैयार है और बेल्‍लूर मठ से किताबें व महत्वपूर्ण साहित्य मंगाई गई हैं। इसके अलावा ब्राइट एंड कॉर्नर अल्मोड़ा में जहां स्वामी ठहरे थे, वहां स्थापित रामकृष्ण कुटीर के अध्यक्ष स्वामी दुर्गेशानंद की अगुवाई में गरीब व असहाय को कंबल वितरण तथा निर्धन छात्रों को पाठ्य सामग्री व  फीस आदि दी जा रही है।

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