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harish rawat sting case स्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले बन गए सीबीआइ के हथियार

विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त के कथित स्टिंग मामले में एफआइआर की अनुमति के लिए सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को हथियार बनाया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 08:37 AM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 10:16 AM (IST)
harish rawat sting case स्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले बन गए सीबीआइ के हथियार
harish rawat sting case स्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले बन गए सीबीआइ के हथियार

नैनीताल, किशोर जोशी : विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त के कथित स्टिंग मामले में एफआइआर की अनुमति के लिए सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को हथियार बनाया। जबकि कपिल सिब्बल ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की ओर से देश के संघीय ढांचे, राष्‍ट्रपति शासन को निरस्त करने संबंधी फैसले व संसद की वैधता का विशेष तौर पर जिक्र किया।

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दरअसल, सीबीआइ बिना राज्य की संस्तुति के किसी मामले की जांच नहीं कर सकती है। राष्‍ट्रपति शासन के दौरान, 31 मार्च 2016 को राज्यपाल ने इसकी संस्तुति की, जिसके बाद दो अप्रैल को ही केंद्र ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी। सोमवार को कोर्ट ने सीबीआइ की तरफ से पेश स्टिंग मामले की अंतरिम जांच की सीलबंद रिपोर्ट भी खोली और उसका अवलोकन भी किया। रिपोर्ट में सीबीआइ ने क्या कहा है, यह सामने नहीं आ सका है। 

ललिता कुमारी केस बहस का हिस्सा बना

सीबीआइ की ओर से असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी बनाम सरकार से संबंधित मामले में दिए फैसले की दलील दी। कहा कि जांच एजेंसी के पास कोई मामला आए तो उसे दर्ज करना उसका कर्तव्य है। ऐसा नहीं करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई होगी। वरिष्ठ अधिवक्ता थपलियाल ने दोरजी वाला केस के फैसले का भी हवाला देते हुए कहा कि जब किसी मामले की सीबीआइ ने जांच संबंधी नोटिफिकेशन जारी कर दिया तो उसके बाद लिए फैसलों का जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने राष्‍ट्रपति शासन की अधिसूचना रद करने के हाई कोर्ट के फैसले के पैरा-73 का विशेष तौर पर उल्लेख किया, जिसमें कोर्ट ने स्टिंग मामले को गंभीर करार दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि इतना गंभीर भी नहीं है कि राष्‍ट्रति शासन का आधार बन जाए। राज्य में 18 मार्च 2016 की सियासी अस्थिरता के बाद 27 मार्च को राष्‍ट्रति शासन लगा था, जबकि स्टिंग मामला 26 मार्च को सामने आया था। सरकार व सीबीआइ की ओर से अधिवक्ता संदीप टंडन, शासकीय अधिवक्ता जीएस संधू, अधिवक्ता संजय भट्ट, पूर्व मंत्री हरक सिंह की ओर से विकास बहुगुणा थे। 

सिब्बल ने बोम्मई केस का दिया हवाला

स्टिंग मामले में पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने दमदार दलीलों से सरकार व जांच एजेंसी को असहज करने के साथ ही कोर्ट का भी ध्यान खींचा। सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के सीएम रहे एसआर बोम्मई केस में राष्‍ट्रपति शासन खारिज करने के साथ ही उस दौरान लिए गए फैसलों को भी गैरकानूनी करार दिया था। इसी आधार पर उत्तराखंड में भी राष्‍ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल द्वारा स्टिंग मामले की सीबीआइ जांच की संस्तुति की अधिसूचना भी निरस्त हो जाती है। बाद में कैबिनेट ने भी सीबीआइ जांच हटाकर मामले की एसआइटी जांच कराने का निर्णय किया, जो कानूनी तौर पर सही था। उन्होंने कहा कि जब इस मामले की जांच के लिए एसआइटी बनी है तो दो जांच एजेंसी एक ही मामले की जांच कैसे कर सकती हैं। सीबीआइ ने इसका कड़ा प्रतिवाद करते हुए कहा कि जिस पर आरोप हो, उसे जांच एजेंसी तय करने का अधिकार नहीं है। 

सिब्बल ने दिया बातचीत का ब्यौरा

सिब्बल ने बहस के दौरान वन मंत्री हरक सिंह रावत व स्टिंग करने वाले उमेश शर्मा के बीच बातचीत का ब्यौरा कोर्ट को दिया। बातचीत इस प्रकार है- 'हरीश भैया पहुंचने वाले हैं..., कुछ चीजें होनी हैं..., उन्हें ध्यान में रखो। आप आप आप बोलना, जो भी तय होगा उमेश से तय करना है, वहीं मंजूर होगा...। मैने बता दिया है उमेश को कि मुझे क्या चाहिए...।' सिब्बल ने एक ही दिन में स्टिंग मामले की सेंट्रल फॉरेंसिक लैब चंडीगढ़ से जांच रिपोर्ट आने पर भी सवाल उठाया तो थपलियाल ने भी पलटवार किया कि एसआइटी जांच कराने का फैसला भी आनन-फानन में सीएम के बजाय कैबिनेट मंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक कर दिया गया। पूर्व सीएम की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डीडी कॉमथ, पूर्व महाधिवक्ता वीबीएस नेगी, वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत, अधिवक्ता रवींद्र बिष्ट थे।

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