नैनीताल में अतिक्रमण का फैला जाल, बरसात के बाद भी सूखा रह गया सूखाताल
एक तरफ बारिश से नैनी झील पानी से भरा हुआ है वहीं इसका सबसे बड़ा स्रोत सूखताल सूखा पड़ा है।
नरेश कुमार, नैनीताल : एक तरफ बारिश से नैनी झील पानी से भरा हुआ है, वहीं, इसका सबसे बड़ा स्रोत सूखाताल भारी बरसात के बाद भी सूखा ही हुआ है, जबकि अमूमन बरसात में यह झील भी पानी से भरा रहता था। झील के सूखे रहने से जहा पर्यावरणविद् चिंता में है, वहीं नैनी झील के लिए भी यह शुभ संकेत नहीं है।
सूखाताल में भरे पानी के रिसाव से ही नैनी झील को वर्ष भर 40 फीसदी से अधिक जलापूर्ति होती है, लेकिन यह अब अपना अस्तित्व खोने लगी है। इस वर्ष शीतकाल में भारी बर्फबारी के बाद से ही बारिश का दौर जारी है। बरसात में भी अच्छी खासी बारिश से प्राकृतिक जलस्त्रोत भी पुराने स्वरूप में दिखे, जिसका सीधा असर नैनी झील पर देखने को मिला। सूखाताल झील के भी पुराने स्वरूप में लौटने की उम्मीद थी, लेकिन बर्फबारी, भारी बारिश और रिचार्ज प्राकृतिक जलस्त्रोत भी इसे भर नहीं पाए। आलम यह है कि झील के रूप में नजर आने वाले सूखाताल क्षेत्र में सूखा गढ्डा नजर आ रहा है। कभी चलती थी नौकाएं, अब सूखी है झील
सूखे की मार झेल रही सूखाताल झील में कभी बरसात शुरू होने के साथ ही झील में पानी भरना शुरू हो जाता था, जो शीतकाल तक रहता था। एक दौर ऐसा भी था जब झील में नौकाएं चला करती थीं। पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत बताते हैं कि 70-80 के दशक में स्थानीय लोग मनोरंजन के लिए यहां नौकायन करते थे, जो शीतकाल तक चलता था। अनियोजित निर्माण और नालों का डायवर्जन कारण
सूखाताल झील के अस्तित्व खोने का सबसे मुख्य कारण यहा किए गए अनियोजित निर्माणकार्य और झील को पानी देने वाले नालों का डायवर्जन है। शहर की बसासत के 30 वर्ष बाद तक क्षेत्र में महज 29 भवन थे। आजादी के समय इनकी संख्या करीब 120 पहुंच गई। लेकिन 70-80 के दशक में क्षेत्र में बेतहाशा भवन निर्माण हुए। वर्तमान में यहां करीब 600 से अधिक भवन खड़े हैं। दूसरी ओर झील को पानी की आपुर्ति के लिए ब्रिटिश काल मे यहां छह नालों का निर्माण किया गया था, लेकिन अब ये भी निर्माणकार्यो की भेंट चढ़ गए हैं। निर्माण कार्यो के दौरान या तो इन नालों को पाट दिया गया, या फिर इन्हें डायवर्ट कर दिया गया। ठंडे बस्ते में डूब क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने की मुहिम
हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन में सूखाताल डूब क्षेत्र में अवैध रूप से बनाए गए भवनों को ध्वस्त किया जाना था, लेकिन प्रशासन की यह मुहिम परवान नहीं चढ़ सकी। इस साल भी फरवरी में डीडीए और पालिका ने भवन स्वामियों को स्वयं भवनों को ध्वस्त करने के नोटिस थमाए थे, अतिक्रमण ध्वस्त करने की तिथि भी पांच मार्च निर्धारित की गई थी, लेकिन कार्रवाई नहीं हो सकी। हालांकि विभागीय अधिकारी मामला फिर न्यायालय में चले जाने की बात कह रहे हैं।