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केदारनाथ जैसी त्रासदी से बचने के लिए हिमालय के संवेदनशील भू-भागाें का अध्ययन शुरू

ग्लेशियरों व भूस्खलन से बनने वाली झीलों और उनके विस्फोट से होने वाली व्यापक क्षति पर अध्ययन तो किया ही जा रहा हिमालय में पिछले 200 वर्षों में आई बड़ी आपदाओं पर भी तुलनात्मक अध्ययन तेज कर दिया गया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 06:58 AM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 01:46 PM (IST)
केदारनाथ जैसी त्रासदी से बचने के लिए हिमालय के संवेदनशील भू-भागाें का अध्ययन शुरू
केदारनाथ जैसी त्रासदी से बचने के लिए हिमालय के संवेदनशील भू-भागाें का अध्ययन शुरू

अल्मोड़ा, जेएनएन : भूगर्भीय लिहाज से अतिसंवेदनशील हिमालयी भूभाग में केदारनाथ जैसी त्रासदी इतिहास न दोहराए, इससे बचने को शोध व अध्ययन शुरू हो गया है। ग्लेशियरों व भूस्खलन से बनने वाली झीलों और उनके विस्फोट से होने वाली व्यापक क्षति पर अध्ययन तो किया ही जा रहा, हिमालय में पिछले 200 वर्षों में आई बड़ी आपदाओं पर भी तुलनात्मक अध्ययन तेज कर दिया गया है। अनुसंधान के जरिए यह भी पता लगेगा कि कौन से भूभाग भूस्खलन व जल प्रलय के लिहाज से घातक हैं। विज्ञानियों की मानें तो इस शोध के आधार पर हिमालयी राज्य में मानव बस्तियां, शहर व कस्बे या बड़े निर्माण कार्य या विकास योजनाओं का भविष्य तय करने में सहायक होगा।

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दरअसल, जलवायु परिवर्तन के दौर में हिमालयी भूभाग हमेशा अतिसंवेदनशील माना जाता रहा है। वर्ष 2013 में केदारनाथ की त्रासदी ने तो मानवजगत के साथ नीति नियंताओं व योजनाकारों को चिंतन के लिए मजबूर कर दिया था। इसी के मद्देनजर राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत एक शोध परियोजना को मंजूरी दी गई। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत नेशनल जीयोलाजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट हैदराबाद को दो वर्ष पूर्व इस शोध का जिम्मा मिला। परियोजना में गढ़वाल हिमालय के ऊपरी गंगा क्षेत्र को अध्ययन के लिए चुना गया।

परखेंगे झीलों की संवेदनशीलता

केंद्रीय वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के माध्यम से चल रही शोध परियोजना में भू-विज्ञानी व जल विशेषज्ञ मिलकर काम कर रहे हैं। केदारनाथ आपदा व बाद के हालात पर अध्ययन के लिए पहले चरण में ऊपरी गंगा क्षेत्र (गढ़वाल) को चुना गया है। वहां भूकटाव, भूस्खलन व ग्लेश्यिरों से बनने वाली झीलों की स्थिति तथा संवेदनशीलता को परखा जा रहा है। साथ ही पूर्व में यहां हुई प्राकृतिक हलचलों के इतिहास को भी परखा जा रहा है।

ये हैं शोध के अहम बिंदू

  • भूस्खलन, जल जनित झीलों निर्माण व बादल फटने से बनने वाली झीलों के कारण
  • भविष्य में बड़ी आपदाओं से बचने को तलाशेंगे वैकल्पिक राह
  • भूमि, जल निकासी, भू कटाव, निर्माण, स्थलाकृतियों की बनावट आदि के दशकों पुराने व मौजूदा आंकड़े जुटा विश्लेषण करेंगे।
  • संवेदनशील क्षेत्रों का चयन कर मानव बस्तियों को सुरक्षित भूभाग पर ले जाने में मिलेगी मदद

जल विस्फोट वाले छह क्षेत्र चिह्नित

विज्ञानियों ने मंदाकिनी, केदारनाथ घाटी, खिरोही गंगा व लक्ष्मण गंगा जलागम क्षेत्रों के भौगोलिक मानचित्र तैयार कर लिए हैं। महामंडलवेश्वर व विरही गंगा क्षेत्र में झीलों से जुड़े घटनाओं के इतिहास की थाह ली जा रही। खास बात कि अब तक ऐसे छह बड़ी भूस्खलन आधारित झील तथा झीलजनित जल विस्फोट प्रभावित क्षेत्र चिह्नित कर लिए गए हैं, जहां अतीत में बढ़ी आपदाएं आई थी। विज्ञानियों ने अध्ययन को नई तकनीक भी विकसित की है। ताकि संवेदनशीलता की जड़ तक पहुंचने में मदद मिल सके।

कई दृष्ट से महत्वपूर्ण होगा शोध

नोडल अधिकारी राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन प्रो. किरीट कुमार ने बताया कि हिमालय में जल निकासी कैसे हो। भविष्य में यहां नगरीकरण व विकास योजनाओं को किसी भूमि पर किस संवेदनशीलता से किया जाए, इसके लिए यह अध्ययन अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो सकता है। भूकटाव व जल आधारित बढ़ी झीलों के बनने की दृष्टि से हिमालय का कौन सा भाग संवेदनशील है यह भी बताने के लिए वैज्ञानिक इस अध्ययन से सक्षम होंगे।


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