पंचायत चुनाव ने कराया छात्रनेताओं का रिवर्स पलायन, अब गांवों में दावेदारी ठोकने पहुंचे
पंचायत चुनाव ने लोगों को अपने गांव लौटने को मजबूर कर दिया है। खासकर हल्द्वानी के छात्रनेताओं को। एमबीपीजी डिग्री कॉलेज में सक्रिय रहे करीब दस छात्रनेता चुनाव लडऩे पहाड़ पहुंचे हैं।
हल्द्वानी, गोविंद बिष्ट : पहाड़ की बड़ी समस्या के तौर पर अक्सर पलायन का जिक्र होता है। आबादी के शहरों की तरफ बढऩे से गांव खाली हो रहे हैं। कई जगहों पर तो सिर्फ बुजुर्ग ही बचे हैं, लेकिन पंचायत चुनाव ने लोगों को फिर अपने गांव लौटने को मजबूर कर दिया है। खासकर हल्द्वानी के छात्रनेताओं को। एमबीपीजी डिग्री कॉलेज में सक्रिय रहे करीब दस छात्रनेता चुनाव लडऩे पहाड़ पहुंच चुके हैं। अधिकांश का फोकस क्षेत्र पंचायत सीट पर है, ताकि जीतने पर ब्लॉक प्रमुख पद पर दावेदारी की जा सके।
पंचायत चुनाव को लेकर प्रथम चरण का मतदान पूरा हो चुका है। दूसरे चरण में 11 को रामगढ़, धारी, कोटाबाग व 16 अक्टूबर को अंतिम चरण में ओखलकांडा व बेतालघाट ब्लॉक में मतदान होना है, जबकि सभी विकासखंड में मतगणना 21 अक्टूबर को होगी। छात्रसंख्या के लिहाज से एमबीपीजी कुमाऊं का सबसे बड़ा कॉलेज है। छात्रसंघ पदाधिकारी बनने के लिए यहां हर बार रोचक मुकाबला होता है। अब हल्द्वानी की छात्र राजनीति में सफल और असफल दोनों तरह के छात्रनेता हाथ जोड़कर पहाड़ की पगडंडियों में वोट मांगते नजर आ रहे हैं। हालांकि, विरोध में खड़े स्थानीय उम्मीदवार इनके ज्यादातर बाहर रहने को चुनाव में मुद्दा भी बना रहे हैं।
एनएसयूआइ व एबीवीपी में भी सक्रिय रहे
गांव में चुनाव लडऩे पहुंचे छात्रनेता हल्द्वानी में अध्यक्ष, उपसचिव और विवि प्रतिनिधि के पद पर पूर्व में चुनाव लड़ चुके हैं। इसमें कुछ जीते तो कुछ हारे भी। एनएसयूआइ व एबीवीपी जैसे छात्र संगठनों में भी इन्होंने काम किया।
घर और कारोबार दोनों हल्द्वानी में
शुरुआत में उच्च शिक्षा के लिए हल्द्वानी पहुंचने वाले इन छात्रनेताओं ने बाद में यहां आशियाना भी बना लिया। रोजगार के लिए छोटा-मोटा बिजनेस भी चालू किया। साथ ही छात्रसंघ व संगठनों की राजनीति में भी वर्चस्व बनाए रखा।
ठेकेदार भी चुनावी मैदान में
पहाड़ में लीसा और लकड़ी का कारोबार रोजगार का बड़ा साधन है। पंचायत चुनाव में इन कारोबार से जुड़े कई ठेकेदार भी ताल ठोंक रहे हैं। हल्द्वानी में बतौर सामाजिक कार्यकर्ता चर्चा में रहने वाले कुछ लोग भी पंचायत चुनाव में पहाड़ का रुख कर चुके हैं।