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पैंतीस साल की मेहनत के बाद जमीन से फूटा पानी का श्रोत, सन्याशी की तपस्या व प्रकृति का संरक्षण कारगर हुआ

पिथौरागढ़ जिले में डीडीहाट के ग्राम पंचायत कांडे की पहाड़ी पर स्थित बैकुंठधाम में 35 साल की मेहनत के बाद जमीन से पानी के स्रोत जागृत होने लगे हैं। यदि पहाड़ों पर पेड़ लगाए जाएं तो जरूर पानी के स्रोत बढ़ेंगे।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2020 10:28 AM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2020 10:28 AM (IST)
पैंतीस साल की मेहनत के बाद जमीन से फूटा पानी का श्रोत!

पिथौरागढ़, जेएनएन : पिथौरागढ़ जिले में डीडीहाट के ग्राम पंचायत कांडे की पहाड़ी पर स्थित बैकुंठधाम में 35 साल की मेहनत के बाद जमीन से पानी के स्रोत जागृत होने लगे हैं। यदि पहाड़ों पर पेड़ लगाए जाएं तो जरूर पानी के स्रोत बढ़ेंगे। बैकुंठ धाम में 1982 में गुजरात के एक साधू भास्कर स्वामी ने इस प्रयास को शुरू किया और इस प्रयास का फल 35 साल बाद लोगों को मिलने लगा है। बैकुंठधाम में साधू की इस पहल को संरक्षित करने के लिए बैकुंठधाम ट्रस्ट के लोग बेहद संजीदा हैं। उस इलाके में रोपे गए पौधों को काटने की अनुमति नहीं है। पेड़ों तथा अन्य प्रकार की वनस्पति की सुरक्षा के लिए एक चौकीदार भी तैनात किया गया है।

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बताया गया कि 1982 में गुजरात के संन्यासी भास्कर स्वामी अचानक ग्राम कांडे की वीरान पहाड़ी पर रहकर तपस्या करने लगे। उस समय पूरे इलाके में पानी का कोई स्रोत नहीं था। भास्कर स्वामी ने सबसे पहले बंजर जमीन पर बांज, रिंगाल के पौधों का रोपण किया। उनको स्थानीय लोगों ने जानकारी दी थी कि बांज की जड़ों में पानी के स्रोतों को रिचार्ज करने की क्षमता होती है। वह खुद ही पेड़ों की रक्षा करने लगे और पेड़ों के आसपास उगने वाली अन्य प्रकार की वनस्पति एवं घास को भी नहीं काटा। कुछ ही वर्षों में कांडे की यह वीरान पहाड़ी हरीभरी हो गई।

लोग बताते हैं कि सिर्फ छह साल बाद 1988 में मानसून सीजन में धाम की पहाड़ी पर जंगलों के बीच पानी का एक स्रोत फूट गया। ट्रस्ट के लोग इससे उत्साहित हो गए। 2005 में इस स्थान पर एक कुआं खोदने का निर्णय लिया गया। कुएं को 15 फुट तक खोदा था कि उसमें पानी की धार निकल आई। भास्कर स्वामी के निधन के बाद स्थानीय लोगो ने पौधरोपण की मुहिम को ज्यादा तेज किया गया। हर साल वन विभाग, आईटीबीपी की मदद से इस इलाके में 500 पौधों का रोपण किया जाता है। गर्मी के मौसम में भी धाम के कुएं में लगातार पानी मिलता है। जाड़ों और बारिश के मौसम में यह कुआं पानी से लबालब भर जाता है।

बैकुंठ धाम के एमडी दुष्यंत पांगती कहते हैं कि धाम आने वाले पर्यटकों के लिए अब पेयजल की कोई समस्या नहीं है। सिर्फ 35 साल की मेहनत से ही पानी का नया स्रोत प्राप्त करने में कामयाबी मिली है। इस मुहिम को रुकने नहीं दिया जाएगा। कुएं और स्रोत के पानी को संग्रह कर बनाया गया टैंक अब लोगो की प्यास बुझा रहा है। श्री पांगती का कहना है कि जिस तरह का प्रयोग वैकुंठ धाम में हुआ है वैसा ही अन्य स्थानों पर भी किया जा सकता है। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के सेवानिवृत प्राचार्य श्री पांगती का कहना है कि जिन स्थानों पर बांज के उगने लायक जलवायु हो वहां पर इसका रोपण करना चाहिए। ऐसा करने से पहाड़ पर पानी के संकट से मुक्ति मिल जाएगी।


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