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    अस्सी के दशक में बना सिलौटी पंत का हैलीपैड खंडहर में तब्दील

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 03 Mar 2019 08:20 PM (IST)

    अस्सी के दशक में जंगलों की आग बुझाने वाला सिलौटी पंत का हैलीपैड अब खंडहर होते जा रहा है। यह हैलीपेड इन दिनों असमाजिक तत्वों का अड्डा बनते जा रहा है।

    अस्सी के दशक में बना सिलौटी पंत का हैलीपैड खंडहर में तब्दील

    राकेश सनवाल, भीमताल : अस्सी के दशक में जंगलों की आग बुझाने वाला सिलौटी पंत का हैलीपैड अब खंडहर होते जा रहा है। ऊंची चोटी में लगभग 22 हजार वर्ग फिट में बना यह हैलीपेड इन दिनों असमाजिक तत्वों का अड्डा बनते जा रहा है। जहां हैलीपेड स्थान स्थान से टूट गया है तो वहीं पूरा क्षेत्र एक तरह से कूड़े खड्डे में तब्दील है। जहां पूर्व में लोग इस स्थान को देखने के लिये दूर दूर से आते थे और घंटों यहां से उडऩे वाली हैलीकाप्टर को नौकुचियाताल से गर्मियों में पानी ले जाते देखते थे वहीं अब इस स्थान में अब केवल दिन में असमाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है। पूरे स्थान में शराब की बोतलें, चिप्स और अन्य वस्तुएं फैली हैं इतना ही नहीं यहां तक पहुंचने वाला मार्ग भी झाड़ी से पटा है। अस्सी के दशक में जंगलों में भीषण आग लगने पर यहां से वन विभाग का अग्निशमन विभाग का हेलीकाप्टर उड़ान भरता था और लगभग पूरा कुमाऊं में आग बुझाता था। बाद में विभाग के समाप्त हो जाने पर यहां का रखरखाव भी समाप्त हो गया। जहां यहां उस समय लाखों की लागत से हेलीकाप्टर उतराने के लिये वन विभाग ने पूरे नियम मुताबिक हेलीपेड का निर्माण किया वही वहां से उड़ान भरने के बाद यहां असमाजिक तत्वों ने पूरी संपत्ति ही खराब कर डाली।

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    वर्तमान में हालत यह है कि पूरे क्षेत्र में गंदगी का अंबार है। स्थानीय कारोबारियों ने नगर पंचायत से इस क्षेत्र में सौंर्दयकरण कराने की मांग की है। शिष्ट मंडल ने नगर पंचायत अध्यक्ष देवेन्द्र चनौतिया से भेंट की और हेलीपेड को नगर पंचायत के अधीन लेते हुए यहां पर्यटन से संबधित किसी योजना को क्रियान्वित करने की मांग की। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि ऊंचाई में होने के कारण यहां से नौकुचियाताल का सुंदर दृश्य तो है ही इसके साथ ही साथ यहां से करकोटक की पहाड़ी और ऊंचाई वाली पहाड़ी के भी दर्शन होते हैं। शिष्टमंडल में मिलने वालों में अनिल चनौतिया, रामपाल सिंह गंगोला आदि हैं।

    उप प्रभागीय वनाधिकारी नैनीताल दिनकर तिवारी ने बताया कि जहां तक मुझे जानकारी है।जिस समय यह बना था उस समय वन विभाग के अन्तर्गत ही अग्निशमन विभाग भी था। जिसका मुख्यालय हल्द्वानी में था। उस समय कर्मचारियों को कनाड़ा में आग बुझाने का प्रशिक्षण आदि भी दिया गया था। विभाग में हैलीकाप्टर भी आये थे। बाद में वह योजना बंद हो गयी।

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