शहीद गोकर्ण की शहादत से गमजदा हुआ नापड़ गांव, भाई बोले- मेरा सहारा चला गया
उरी सेक्टर में पाक सेना के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद 21 कुमाऊं रेजीमेंट के 40 वर्षीय हवलदार गोकर्ण सिंह चुफाल के गांव में मनहूस खबर के बाद खामोशी छाई है।
थल, जेएनएन : उरी सेक्टर में पाक सेना के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद 21 कुमाऊं रेजीमेंट के 40 वर्षीय हवलदार गोकर्ण सिंह चुफाल के गांव में मनहूस खबर के बाद खामोशी छाई है। शहीद के घर पर उसका छोटे भाई का परिवार है। भाई के शहीद होने की खबर के बाद वह बदहवास है। लोग गोकर्ण के शहीद होने की खबर पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। थल कस्बे से 16 किमी की दूरी पर स्थित अति दुर्गम नापड़ गांव के लाल ने देश की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया है। थल से लेकर नापड़, मूर्ति व नाचनी तक का क्षेत्र शोक में है। गोकर्ण कारगिल युद्ध 1999 के समय थल के गोचर में सेना की कुमाऊं रेजीमेंट की 21 बटालियन में भर्ती हुए थे।
सेना स्कूल में बढ़ते हैं बच्चे
शहीद के बच्चों की पढ़ाई के लिए उसका परिवार विगत छह साल से बरेली में किराए के मकान में रहता है। पत्नी गोदावरी देवी बरेली में रहकर अपने पुत्र मनीष 16 वर्ष और पुत्री चांदनी 14 वर्ष को सेना स्कूल में पढ़ा रही है। शहीद के पिता स्व. गंगा सिंह भी पूर्व सैनिक थे। दो साल पूर्व ही उनका निधन हुआ है। शहीद की मां जशोदा देवी का 15 साल पूर्व निधन हो गया था। घर पर छोटे भाई नरेश सिंह का परिवार रहता है। गोकर्ण की शहादत की खबर मिलते ही बेरोजगार भाई नरेश सिंह और उनकी पत्नी बदहवास हैं। नरेश सिंह रोते हुए बताता है कि उसका एकमात्र आश्रयदाता नहीं रहा। ग्रामीण बताते हैं कि गोकर्ण ने अपने भाई की शादी धूमधाम से कराई थी। गांव के ग्रामीण नरेश सिंह को सांत्वना दे रहे हैं।
पहली सूचना शहीद के जिगरी दोस्त को मिल
शुक्रवार देर शाम गोकर्ण के शहीद होने की खबर गांव में सबसे पहले उसके जिगरी दोस्त कुंदन सिंह को मिली। खबर मिलने के बाद दोस्त खुद सदमे में आ गया। देर रात को उसने ग्रामीणों को जानकारी दी। शहीद का परिवार बरेली से चल चुका है। शनिवार देर शाम तक परिवार के गांव पहुंचने की संभावना है।
गांव में संचार की कोई सुविधा नहीं
देश की रक्षा के लिए शहादत देने वाले गोकर्ण सिंह के गांव नापड़ में संचार की सुविधा नहीं है। जिसके चलते ग्रामीणों और परिजनों को शहीद के पार्थिव शरीर के पहुंचने की कोई स्पष्ट सूचना नहीं मिल पा रही है। ग्रामीण अपने लाल के अंतिम दर्शनों के लिए आतुर हैं।
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