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कश्मीर में कैंसर, डायबीबटीज रोधी पहाड़ी राजमा की 104 परंपरागत उन्नत किस्माें के बीज तैयार

हिमालयी राज्यों में विलुप्त होती राजमा का राज फिर लौटेगा। इस दलहन प्रजाति की विभिन्न किस्मों के परंपरागत बीजों के संरक्षण व औषधीय गुणों को अवसर में बदलने के लिए शुरू हुअस प्रयोग सफल हो गया है। कश्मीरी में पहाड़ी राजमा के 104 परंपरागत बीज तैयार क‍िए गए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 10:26 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 10:26 AM (IST)
कश्मीरी वादियों में पहाड़ी राजमा की 104 परंपरागत उन्नत किस्में के बीज तैयार

अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : हिमालयी राज्यों में विलुप्त होती 'राजमा' का राज फिर लौटेगा। इस दलहन प्रजाति की विभिन्न किस्मों के परंपरागत बीजों के संरक्षण व औषधीय गुणों को अवसर में बदलने के लिए शुरू हुअस प्रयोग सफल हो गया है। खास बात कि कश्मीर अन्य पर्वतीय प्रदेशों में खत्म होती जा रही विविध प्रजातियों के संरक्षण में बड़ी भूमिका निभाएगी। वहां अब तक राजमा की 104 पुरानी किस्मों के बीज विकसित कर लिए गए हैं। इनमें उन्नत प्रजातियों का राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो में पंजीकरण कराया जा रहा।

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दरअसल, उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों में राजमा की अनगिनत किस्में हैं। मगर मौजूदा दौर में अधिक उपज की होड़ में स्थानीय पौष्टिक परंपरागत प्रजातियों का वजूद संकट में है। राजमा की इन दुर्लभ किस्मों को संरक्षित करने के मकसद से जीबी पंत संस्थान कोसी कटारमल (अल्मोड़ा) ने राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय (कश्मीर) को चुना। वर्ष 2017 में उसे राजमा पर शोध परियोजना दी गई। तीन साल बाद सार्थक परिणाम मिलने लगे हैं।

पैदावार सामान्य पर पुरानी नस्ल ज्यादा ताकतवर

शेर ए कश्मीर विवि में पौध जैव प्रौद्योगिकी के प्राध्यापक एवं परियोजना प्रमुख डा. साजिद एम जरगर की अगुवाई में कश्मीर, गुरेज व कारगिल क्षेत्रों में राजमा की विभिन्न स्थानीय प्रजातियां उगाई गईं। शोध में पता लगा है कि वर्तमान सामान्य राजमा से इन पुरानी व परंपरागत किस्मों में प्रोटीन की मात्रा कहीं ज्यादा है। हालांकि पैदावार सामान्य ही है पर इनमें मधुमेह, कैंसर व हृदयरोग से लडऩे की ताकत अधिक है। विज्ञानी औषधीय उपयोगिता को नए अवसर में बदलने के लिए भी शोध में जुट गए हैं।

उत्तराखंड में बनेंगे 70 जैविक राजमा माॅडल गांव

मुनस्यारी (कुमाऊं), हर्षिल, चकराता व देवाल (गढ़वाल) की राजमा देश दुनिया में मशहूर है लेकिन यहां भी उत्पादन लगातार घट रहा है। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत जीबी पंत कृषि विवि पंतनगर व विवेकानंद पर्वतीय अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा उत्तराखंड में राजमा के संरक्षण को शोध व अध्ययन में जुटे हैं। इसके लिए उत्तरकाशी व चमोली जिले चुने गए हैं। कुमाऊं व गढ़वाल के राजमा उत्पादक 15 गांवों में 70 जैविक राजमा के माडल ग्राम विकसित किए जाएंगे। वर्तमान में उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में करीब चार हजार हेक्टेयर में राजमा उगाई जाती है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 6.75 कुंतल है जो बीते डेढ़ दशक से कम हो गया है।

कई उच्च नस्लें चयनित करने में सफलता मिली

शेर ए कश्मीर विवि के परियोजना प्रमुख डाॅ. साजिद मजीद जरगर ने कहा कि राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के सहयोग से हमें यह सफलता मिली है। हमने दूरस्थ हिमालयी क्षेत्रों में जाकर परंपरागत बीज जुटाए। पहली बार इन दलहन नस्लों की डीएनए प्रोफाइलिंग व आणविक चित्रण कर अध्ययन किया जा रहा। नस्लीय व पोषकीय अध्ययन कर वर्गीकरण और बीजों का संरक्षण भी करेंगे। हमें कई उच्च नस्लें चयनित करने में सफलता मिली है। उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों की किस्मों पर प्रयोग जारी हैं।

राजमा के परंपरागत बीजों को बचाना मकसद

राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अधिकारी प्रो. किरीट कुमार ने बताया कि इस शोध परियोजना का मकसद राजमा के पुराने परंपरागत बीजों को बचाना है। हिमालयी राज्यों में राजमा का उत्पादन राष्ट्रीय औसत से कम है। पैदावार बढ़ाने व बीजों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी। कश्मीर में विकसित इन उन्नत बीजों को अन्य पर्वतीय राज्यों में प्रमोट करेंगे। उत्तराखंड में भी 70 जैविक माडल गांव बनाए जा रहे हैं। 


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