मेघालय की गुफा में छिपा है हजार साल के मौसम का इतिहास, देखें क्या कहता है भूवैज्ञानिकों का यह शोध
नैनीताल निवासी सियांग जोटांग यूनिवर्सिटी चीन में एसोसिएट प्रोफेसर गायत्री कठायत के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी आफ कैलीफोर्निया अमेरिका ब्रिटेन यूराेप व आष्ट्रिया के वैज्ञानिकों के दल ने भारत में मानसून को लेकर ऐतिहासिक दस्तावजों और मौसम विज्ञान केंद्रों के डेटा पर आधारित शोध अध्ययन किया है।
किशोर जोशी, नैनीताल: भूवैज्ञानिकों के दल ने पिछले डेढ़ सौ साल के भारतीय मानसून के शोध अध्ययन के आधार पर देश में सूखे काे लेकर नया दावा किया है। कहा है कि देश के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में गुफा से एक हजार साल पुराने स्टैलेग्माइट दिखाते हैं कि भारतीय मानसून इतना विश्वसनीय नहीं है।
देश में था घातक सूख का इतिहास
नए अध्ययन से पता चला है कि देश में घातक सूखे का इतिहास रहा है। पूर्वोत्तर भारत की एक सुदूर गुफा में, एक ही स्थान पर एक हजार से अधिक वर्षों से वर्षा का पानी धीरे-धीरे छत से टपक रहा है। प्रत्येक बूंद के साथ, पानी में खनिज नीचे की मंजिल पर जमा होते हैं। धीरे-धीरे कैल्शियम कार्बोनेट टावरों में बढ़ते हैं, जिन्हें स्टैलेग्माइट्स कहा जाता है। ये स्टैलेग्माइट भूगर्भीय चमत्कारों से कहीं अधिक हैं। जैसे पेड़ के छल्ले, उनकी परतें क्षेत्र के वर्षा इतिहास को रिकार्ड करती हैं। यह भविष्य में विनाशकारी बहुवर्षीय सूखे की आशंका के बारे में चेतावनी भी देते हैं।
स्टैलेग्माइट्स से हुआ अध्ययन
प्रोसीडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज में 19 सितंबर 2022 को प्रकाशित एक नए अध्ययन में इन स्टैलेग्माइट्स के भू-रसायन का विश्लेषण कर पिछली सहस्राब्दी के भारतीय मानसून के अभी तक का सबसे सटीक अध्ययन किया गया है। अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि कैसे भारतीय उपमहाद्वीप ने पिछले 150 वर्षों के मानसून वर्षा अवलोकन में अक्सर लंबे, गंभीर सूखे का अनुभव नहीं किया। शोध करने वाले वैज्ञानियों के दल में शामिल प्रो. गायत्री कठायत ने बताया 1870 के आसपास भारत की मानसूनी वर्षा को व्यवस्थित रूप से मापना शुरू किया गया। तब से देश में लगभग 27 बार सूखे का अनुभव किया है। केवल 1985 से 1987 लगातार तीन साल का सूखा पड़ा था। अध्ययन लम्बी कमजोर मानसून की अवधि के दौरान गंभीर और सालों तक सूखे के रिकार्ड को उजागर करता है।
नैनीताल निवासी प्रोफेसर ने किया नेतृत्व
नैनीताल निवासी प्रो. गायत्री कठायत जीयांग जीयोटांग यूनिवर्सिटी चायना की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्हीं के नेतृत्व में अमेरिका, चीन, यूरोप , आस्ट्रिया आदि देशों के अंतरराष्ट्रीय दल की शोध किया है। इस शोध की रिपोर्ट में महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। पिछले 1,000 सालों में वर्षों में लंबे समय तक गंभीर सूखे के सबूत एक अलग तस्वीर पेश करते हैं। जिन सूखे की अवधि का पता लगाया है, वह अकाल सामूहिक मृत्यु घटनाओं और क्षेत्र में भू-राजनीतिक परिवर्तनों के ऐतिहासिक खातों के साथ की तालमेल बैठाने में सक्षम हैं।
मुगल काल में सूखे से हुआ उद्योगों का पतन
अध्ययन के अनुसार लिखित दस्तावेजों दिखाते हैं कि कैसे 1780 और 1790 के दशक में मुगल साम्राज्य और भारत के कपड़ा उद्योगों का पतन सहस्राब्दी में सूखे की सबसे गंभीर 30 वर्ष की अवधि के साथ हुआ। इन दस्तावेजों में सूखे की गहराई और अवधि ने व्यापक रूप से फसल की विफलता और उस समय अकाल के स्तर का विवरण किया गया है।
फसल खराब होने से लाखों की मौत
प्रो. कठायत के अनुसार 17वीं शताब्दी के लंबे सूखे में 1630-1632 डेक्कन और चालीसा अकाल शामिल है, जिसने 11 मिलियन लोगों की जान ली। यह भारत के इतिहास में सबसे विनाशकारी सूखे में से एक है। फसल खराब होने से लाखों लोगों की मौत हो गई।
मुगल काल में 25 साल लंबा सूखा पड़ा, हटानी पड़ी राजधानी
वैज्ञानिकों को मुगल काल में 1595 से 1820 के बीच 25 साल लंबे सूखे की अवधि के रासायनिक सबूत मिले, जो बादशाह अकबर के फतेहपुर सीकरी के परित्याग के साथ मेल खाता था। फतेहपुर सीकरी अपने समय के सबसे बड़े शहरों में है। 14 साल तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। इसे अत्यधिक सूखे और पानी की आपूर्ति के नुकसान के कारण त्याग दिया गया था। लगभग इसी समय में पश्चिमी तिब्बत में गौगु साम्राज्य का भी पतन हो गया।
हर दूसरे साल पड़ा सूखा
स्टैग्माइट रिकार्ड 17वीं ईसवीं के आसपास पश्चिमी भारत के दुर्गा देवी अकाल के दौरान सूखे की पुष्टि करते हैं। मुगल काल के बाद भारत के गैर-औद्योगीकरण की शुरुआत में, 17वीं शताब्दी के मिंग राजवंश के सूखे और भारत में 30 साल तक मानसून की विफलता को दिखाता है। निष्कर्ष निकला कि हर दूसरा साल सूखा रहा होगा।
लंबे समय तक सूखे की अाशंका नहीं
निष्कर्षों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग में जल नियोजन के लिए विशेष रूप से भारत के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। देश में 70 प्रतिशत खेती मानसून पर निर्भर है। भारतीय मानसून परिवर्तनशीलता की पूरी शृंखला पर स्पष्ट जानकारी नहीं देती है। देश में जल संसाधनों, स्थिरता और शमन नीतियों के बारे में भी सवाल उठाता है, जो भविष्य में लंबे समय तक सूखे की आशंका को शामिल नही करता है।