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बापू से प्रभावित होकर इंग्लैड से आ गई थीं सरला बहन, पहाड़ में पर्यावरण के प्रति विकसित की चेतना

इंग्लैंड से आकर भारत को अपनी कर्मभूमि बनाने वाली समाजसेवी सरला बहन ने पर्यावरण संरक्षण महिला सशक्तीकरण और बालिकाओं को बुनियादी शिक्षा देने के लिए व्यापक अभियान चलाया। पर्यावरण संरक्षण शब्द की रचियता तो वह थी ही वहीं वह पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने जंगल बचाने के लिए अभियान चलाया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 07:06 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 11:34 PM (IST)
सात समंदर पार इंग्लैंड से आकर सरला बहन ने भारत को बनाया कर्मभूमि

बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विवेदी : सात समुंदर पार से आकर भारत को अपनी कर्मभूमि बनाने वाली समाजसेवी सरला बहन ने पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तीकरण और बालिकाओं को बुनियादी शिक्षा देने के लिए व्यापक अभियान चलाया। वह पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने पहाड़ में जंगल बचाने के लिए अभियान चलाया। बाद में चिपको आंदोलन हुए। अपने जीवन को प्रकृति में आत्मसात करके जीने वाली थी सरला बहन। आज भी उनके विचार प्रासंगिक है।

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मूलरूप से इंग्लैंड निवासी कैथरीन मैरी हैलीमन महात्मा गांधी के विचारों से इतनी प्रभावित हुईं कि 1932 में वह उनसे मिलने भारत पहुंचीं। महात्मा गांधी की सलाह पर उन्होंने अपना नाम सरला बहन रख लिया। 1941 में वह अल्मोड़ा आ गईं। कौसानी के निकट चनौदा गांधी आश्रम में रहकर उन्होंने सामाजिक कार्यों के साथ ही भारत की आजादी के लिए हुए आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर भागीदारी की।

उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा। गांधीवादी विचारधारा और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने 1946 में कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल (लक्ष्मी आश्रम कौसानी) की स्थापना की। वर्ष 1975 में धरमघर में हिमदर्शन कुटीर की स्थापना की। उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए सरकार ने 1978 में उन्हें जमुना लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया।

उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण, ग्राम स्वराज के साथ ही सामाजिक कुरीतियों से समाज को जागरुक करने में सरला बहन का अहम योगदान रहा। उन्होंने ‘संरक्षण और विनाश’ किताब के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन की वास्तविक स्थिति बताई। पांच अप्रैल 1901 को इंग्लैंड में जन्मी और आठ जुलाई 1982 को अल्मोड़ा उनका देहांत हो गया। सरला बहन की स्मृति में अनासक्ति आश्रम के समीप संग्रहालय का निर्माण कराया गया है।

सरला बहन की शिष्या व गांधी शांति प्रतिष्ठान की पूर्व अध्यक्ष राधा बहन ने बताया कि वह निर्भीक प्रतिबद्ध भारतीय थी। पर्वतीय महिलाओं के आगे बढ़ाने के लिए और पर्यावरण संरक्षण को अपना जीवन समर्पित कर दिया। पहली महिला थी जिन्होंने जंगल बचाने के लिए काम किया और बाद में चिपको आंदोलन आदि हुए।

नदी बचाओ आंदोलन के सक्रिय सदस्य सदन मिश्रा ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण हो या सामाजिक कुरीतियों को खत्म करना। सरला बहन का योगदान अतुलनीय है। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। आज भी लोग उनके बताए मार्ग पर चल रहे हैं।


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