Sanskarshala Haldwani : माता-पिता को अपने बच्चों के लिए रोल माडल बनना होगा
बच्चों में तो मोबाइल की लत आम बात हो गई है। यदि डिजिटल मीडिया के उपयोग को नियंत्रित नहीं किया गया तो व्यक्ति में आत्मसुख की ओर बढऩे की प्रवृत्ति तेजी से विकसित होगी। एक स्वस्थ व संस्कारित परिवार एवं समाज के विकास के लिए इसे हानिकारक कहा जाएगा।
हल्द्वानी : बचपन व किशोरावस्था स्वस्थ व्यवहार अपनाने के लिए महत्वपूर्ण आयु होती है। आज बच्चे दुनियाभर में उपलब्ध डिजिटल मीडिया की एक विस्तृत व बढ़ती सीमा के वातावरण में पल-बढ़ रहे हैं। जीवन में स्क्रीन का एक्स्पोजर तेजी से बढ़ रहा है। मोबाइल ने हमारे शरीर के अहम अंग के रूप में अपनी जगह बना ली है।
बच्चों व किशोरों में तो मोबाइल की लत आम बात हो गई है। यदि डिजिटल मीडिया के उपयोग को नियंत्रित नहीं किया गया तो व्यक्ति में आत्मसुख की ओर बढऩे की प्रवृत्ति तेजी से विकसित होगी। एक स्वस्थ व संस्कारित परिवार एवं समाज के विकास के लिए इसे हानिकारक कहा जाएगा।
मोबाइल मनोरंजन का साधन नहीं
स्क्रीन टाइम को नकारात्मक स्वास्थ्य जैसे गतिविधि का कम होना, संवाद में कमी, मोटापा, अवसाद, नींद में कमी व चिंता से जोड़ा गया है। जैसे जैसे स्क्रीन टाइम बढ़ रहा है उसी प्रकार से मानसिक बीमारियां भी बढ़ रही हैं। अब यह आम सहमति बनती जा रही है कि बच्चों में स्क्रीन टाइम को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। यह समझने की जरूरत है कि मोबाइल केवल मनोरंजन का साधन नहीं है।
संज्ञानात्मक कौशल की कमी
जहां तक संभव हो आठ वर्ष तक की आयु वाले बच्चों से मोबाइल दूर रखें। इस आयु तक बच्चों में संज्ञानात्मक निर्णय लेने की क्षमता अविकसित होती है। बच्चों में मार्केटिंग संदेशों के उद्देश्य को समझने के लिए संज्ञानात्मक कौशल की कमी होती है। बच्चे आनलाइन गतिविधि व नकारात्मक परिणामों के बारे में जागरूक नहीं होते और न उनमें नियंत्रण रख पाते हैं। विज्ञापन संदेश को संदेहपूर्ण पहचान विशेष रूप से बच्चों को कमजोर बनाती है। अत: बच्चे को इससे सुरक्षित रखना बहुत जरूरी है।
बचपन को भूल रहे बच्चे
बच्चे हमेशा बड़ों की तरह दिखने का प्रयास करते हैं। उनकी नकल करते हैं। डिजिटल मीडिया के प्रयोग से वह तेजी से ऐसे वातावरण में संलग्न हो रहे हैं जो युवाओं के लिए तैयार किया गया है। डिजिटल मीडिया में उपलब्ध गेम्स, खिलौने युवाओं की आवश्यकताओं को दर्शाते हैं न कि बच्चों की। जिस वजह से बच्चे अपना बचपन व बचपन की गतिविधियों को भूलते जा रहे हैं। डिजिटल मीडिया का बच्चे पर सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते हैं। इन परिणामों के बारे में माता-पिता व कार्यक्रम निर्माताओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता है। इसके खतरों से बच्चों को अवगत कराना भी जरूरी है।
सार्थक उपाय अपनाने होंगे
शैक्षणिक संस्थानों, अभिभावकों ने बच्चों व किशोरों को डिजिटल मीडिया से संबंधित जोखिमों से बचाने के प्रयास करने चाहिए। राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा में डिजिटल तकनीक का सुरक्षित रूप से उपयोग करने की दक्षता, प्रशिक्षण, ज्ञान व कौशल को शामिल किया जाए। अभिभावकों व शिक्षकों को अपने बच्चों के लिए रोल माडल बनने की जरूरत है। इसके लिए मीडिया फ्र ी टाइम को बढ़ावा दें। जैसे सामूहिक आतंरिक व वाह्य गतिविधियां करना। मोबाइल के स्थान पर प्रत्यक्ष रूप से मित्रों व रिश्तेदारों से मिलकर बात करना।
पहले खुद पर नियंत्रण रखें
इससे बच्चों में अप्रत्यक्ष रूप से संस्कारों का हस्तांतरण होता है। समय-समय पर डिजिटल मीडिया से सम्बंधित चर्चा में किशोरों को शामिल करें। बच्चों पर नियंत्रण से पहले बड़ों को खुद पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों को डिजिटल मीडिया के प्रयोग की समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए। बचपन में ही सही आदतों का निर्माण संभव है, ताकि किशोरावस्था में वह तनाव मुक्त, दबाव मुक्त जीवन जी सकें।
-डा. सीता, असिस्टेंट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी