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चार साल से बनी नियमावली, अफसर काम करने को तैयार नहीं

हाई कोर्ट में यहां तक स्वीकार किया गया है कि रानीखेत के झालोड़ी गांव के स्वैच्छिक चकबंदी के प्रस्ताव को 2016 में बोर्ड आफ रेवेन्यू को भेजा गया था। 2020 में चकबंदी एक्ट एक्ट व नियमावली भी बन गई लेकिन अब तक गांव का सर्वे तक नहीं हुआ है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 07 Dec 2021 05:58 PM (IST)Updated: Tue, 07 Dec 2021 05:58 PM (IST)
चार साल से बनी नियमावली, अफसर काम करने को तैयार नहीं
सर्वे के लिए ही राजस्व अफसरों के आगे न आने से यह महत्वपूर्ण काम अधूरा रह गया है।

किशोर जोशी, नैनीताल: राज्य में अनिवार्य तो दूर स्वैच्छिक चकबंदी को लेकर ग्रामीणों के प्रस्ताव पर भी शासन विचार करने को तैयार नहीं है। चकबंदी अधिनियम व नियमावली बनने के बाद भी राच्य में चकबंदी शुरू नहीं हो सकी। हाई कोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल शपथपत्र में यहां तक स्वीकार किया गया है कि रानीखेत के झालोड़ी गांव के स्वैच्छिक चकबंदी के प्रस्ताव को 2016 में बोर्ड आफ रेवेन्यू को भेजा गया था। 2020 में चकबंदी एक्ट एक्ट व नियमावली भी बन गई लेकिन अब तक गांव का सर्वे तक नहीं हुआ है। सर्वे के लिए ही राजस्व अफसरों के आगे न आने से यह महत्वपूर्ण काम अधूरा रह गया है। 

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राज्य में कृषि उत्पादन में कमी और पहाड़ में खेती-किसानी के प्रति रुझान कम होने की प्रमुख वजह बिखरी हुई जोत भी है। कृषि विशेषज्ञ लंबे समय से राच्य में चकबंदी लागू करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि चकबंदी नहीं हुई तो पूरा पहाड़ी इलाका अन्न समेत अन्य उत्पादों के मामले में पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो जाएगा। इस बीच 2016 में रानीखेत के झालोड़ी गांव निवासी केवलानंद तिवारी ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि उनका गांव पूरी तरह स्वैच्छिक चकबंदी के लिए तैयार है, लेकिन डिमांड के बाद भी सरकार की सर्वे नहीं किया जा रहा है। अब सरकार कह रही है कि 2016 में एक्ट बनने केबाद ही यह मामला बोर्ड आफ  रेवेन्यू को भेजा गया है।

कोर्ट में आया मामला तो जारी हुई अधिसूचना 

2016 में चकबंदी को लेकर किसानों की इच्छा के बाद भी कवायद शुरू नहीं हो सकी। हाई कोर्ट ने मामले में जवाब मांगा और याचिका में तत्कालीन कृषि मंत्री को पक्षकार बनाया तो शासन ने 28 अगस्त 2020 को चकबंदी एक्ट व नियमावली बनाई गई। अब अब इस मामले में सुनवाई 16 दिसंबर को तय है।

बिखरी जोत है ने रोका किसानों की उन्नति का रास्ता

17 अगस्त 2016 को हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में ओखलकांडा के किसान रघुवर दत्त भट्ट की जनहित याचिका में आदेश पारित हुआ। इसमेंकोर्ट ने कहा कि पहाड़ में कृषि भूमि की एक समान जोत नहीं होने की वजह से पलायन बढ़ रहा है। इससे किसानों की आर्थिक उन्नति के रास्ते भी अवरुद्ध हो गए हैं। राज्य में बनाए गए पलायन आयोग की रिपोर्ट में भी कहा है कि पौड़ी समेत अल्मोड़ा व अन्य इलाकों में पलायन का मुख्य कारण बिखरी जोत है।  


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