हल्द्वानी: आस्था की छांव में फैला पर्यटन का समृद्ध पैकेज, लुभाते हैं श्यामखेत के सुंदर चाय बागान
उत्तराखंड में कैंची धाम में बाबा नीब करौरी के दर्शन कर मुक्तेश्वर व भीमताल में लीजिए पैराग्लाइडिंग-ट्रेकिंग का रोमांच। रामगढ़ में महादेवी वर्मा की स्मृतियों से करें साक्षात्कार। अगर आप दिल्ली-मुंबई से आ रहे हैं तो सीधे पंतनगर हवाई अड्डे तक हवाई जहाज से आ सकते हैं।
गणेश जोशी, हल्द्वानी। विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नैनीताल का नाम तो हर कोई जानता ही है। इसी नैनीताल जिले में अद्भुत व अलौकिक स्थल है कैंची धाम।
भक्तों की आस्था में हनुमान जी के अवतार माने जाने वाले बाबा नीब करौरी महाराज के इस धाम में आकर आपको शांति व दिव्यता की अनुभूति होगी।
आध्यात्मिकता के संग आप प्राकृतिक सौंदर्य का भी भरपूर लुत्फ उठा सकेंगे। यह स्थल नैनीताल से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर है।
इतना ही नहीं समीप ही घोड़ाखाल भी है, जहां सैनिक स्कूल और न्याय के देवता गोल्ज्यू का मंदिर है।
आसपास वनों से आच्छादित रामगढ़, श्यामखेत, भवाली, सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल आदि रमणीक स्थल हैं। जहां से आप हिमालय दर्शन के साथ ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग, बोटिंग आदि का भी आनंद उठा सकते हैं।
मेले में जुटते हैं लाखों भक्त, राजनेता-अभिनेता भी अनुयायी
सन 1900 में उप्र के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में जन्मे लक्ष्मीनारायण शर्मा हनुमान के भक्त थे। गृहस्थ जीवन जीते हुए खुद को आध्यात्म से जोड़ा तो उनका नाम नीब करौरी महाराज हो गया।
देश भर में भ्रमण के दौरान जब बाबा कैंची आए तो यहां उन्होंने धूनी रमा ली। वर्ष 1960 के आसपास कैंची में शिप्रा नदी किनारे हनुमान मंदिर की नींव पड़ी थी।
1973 में उन्होंने वृंदावन में प्राण त्याग दिए। बताया जाता है कि बाबा जी ने ही 15 जून 1976 को कैंची धाम की प्रतिष्ठा के लिए दिन निश्चित किया था।
वर्षों से यहां हर साल 15 जून को विशाल मेला लगता है। इसमें देश-विदेश से दो से चार लाख अनुयायी यहां पहुंचते हैं। माना जाता है कि बाबा बड़े सिद्ध पुरुष थे।
1974 से 1976 के बीच भारत की आध्यात्मिक यात्रा पर आए एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स भी कैंची धाम पहुंचे थे। बाद में उन्होंने फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग को भी यहां आने की सलाह दी थी।
क्रिकेटर विराट कोहली, अभिनेत्री अनुष्का शर्मा, अभिनेता शक्ति कपूर समेत देश भर से नेता-अफसर यहां आते रहते हैं। अनुयायियों की आस्था है कि बाबा के दर पर आकर हर मनोकामना पूरी होती है।
यह वजह है कि अब हर रोज सैकड़ों भक्त यहां सुबह से लेकर शाम तक पहुंचते हैं। जिला प्रशासन इस जगह को धार्मिकस्थल के रूप में विकसित कर रहा है।
भवाली, श्यामखेत, रामगढ़ में ठहकर लें आनंद
विश्व प्रसिद्ध नैनीताल से भवाली की दूरी आठ किमी है। पहाड़ों के बीच बसा यह छोटा सा नगर है। यहां आसपास कई रिसार्ट व होटल भी हैं।
यहां से कैंची धाम की दूरी नौ किलोमीटर है। भवाली से पांच किलोमीटर दूर श्यामखेत में नान्तिन महाराज का आश्रम और चाय का बागान है।
कुमाऊं में न्याय के देवता कहे जाने वाले घोड़ाखाल में गोल्ज्यू मंदिर और सैनिक स्कूल स्थित है। भवाली से ही करीब 11 किलोमीटर आगे गागर व रामगढ़ क्षेत्र में सेब बागानों के साथ ही हिमालय दर्शन भी कर सकते हैं।
भवाली से 10 से 20 किमी के दायरे में भीमताल, नौकुचियाताल, सातताल आदि का भ्रमण किया जा सकता है। सभी जगह बोटिंग के अलावा भीमताल में आप पैराग्लाइडिंग का भी लुत्फ उठा सकते हैं।
रबींद्रनाथ टैगोर व महादेवी वर्मा की यादें
नोबेल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार रबींद्रनाथ टैगोर ने अपनी प्रसिद्ध रचना गीतांजलि के कुछ अंश रामगढ़ में लिखे थे। यहां अब विश्वभारती विश्वविद्यालय का परिसर बनाए जाने की तैयारी है।
छायावाद की प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा भी रामगढ़ में ठहरी थीं। उनकी स्मृति में रामगढ़ में महादेवी सृजन पीठ स्थापित है। शांत एवं सुरम्य पहाड़ी में आप यहां उनके साहित्य से जुड़ सकते हैं।
ऐसे पहुंचें धाम व पर्यटक स्थल
अगर आप दिल्ली-मुंबई से आ रहे हैं तो सीधे पंतनगर हवाई अड्डे तक हवाई जहाज से आ सकते हैं। वहां से टैक्सी के माध्यम से आप हल्द्वानी-काठगोदाम होते हुए भवाली पहुंच सकते हैं।
ट्रेन से आने पर आप सीधे काठगोदाम तक पहुंचेंगे। वहां से 28 किलोमीटर दूर भवाली व अन्य जगहों पर टैक्सी व बस के जरिये यात्रा की जा सकती है।
ठहरने के लिए सभी जगह सस्ते-महंगे हर तरह के होटल व रिसार्ट हर समय उपलब्ध रहते हैं। वैसे तो वर्ष भर कभी भी यात्रा कर सकते हैं।
खासकर जब मैदानी क्षेत्र भीषण गर्मी से तपने लगता है तो बाबा के धाम व पहाड़ की यात्रा का आनंद दोगुना हो जाता है।
पारंपरिक व जैविक भोजन का स्वाद
अगर आप देवभूमि में हैं तो देव दर्शन, हिम दर्शन के साथ ही लजीज व्यंजनों का स्वाद लेना न भूलें। नैनीताल व आसपास के हिल स्टेशनों के रेस्टोरेंट व रिसार्ट में पारंपरिक भोजन बनता ही है।
आप आर्डर देकर परंपरागत भोजन का स्वाद ले सकते हैं। इसमें भट्ट की चुड़कानी, मडुवे की रोटी, मडुवे का हलवा, पहाड़ी रायता संग आलू के गुटके, गहत की दाल, गहत के डुबके, भट का जौला, सिसूंण की चाय आदि व्यंजन शामिल हैं।