पहले पिता रामलीला में बनते थे रावण अब फौजी बेटा, 63 सालों से अनवरत जारी है सिलसिला
हल्द्वानी का राणा परिवार सालों से रामलीलर करता आ रहा है। 35 साल तक ग्राम प्रधान पिता ने रावण का किरदार निभाया तो 1991 से फौजी बेटा रावण बनता है।
हल्द्वानी, भानु जोशी : बात जब रामलीला की हो तो भला किस्से-कहानियां क्यों न सुनाई दे। कुछ छोटी उम्र में बड़े-बड़े पात्रों का अभिनय कर खूब तालियां बटोरते हैं तो किसी का पूरा परिवार ही एक तरह से रामलीला के एक-एक किरदार को दशकों से जीवंत बनाता आया है। हल्द्वानी का राणा परिवार भी इनमें से एक है। 35 साल तक ग्राम प्रधान पिता ने रावण का किरदार निभाया तो 1991 से फौजी बेटा रावण का किरदार निभाने के लिए छुट्टी लेकर घर आता रहा। परम्परा अब भी चल रही है। 2012 से तीसरी पीढ़ी यानी पौत्र अब विरासत आगे बढ़ा रहा है। राणा परिवार और काठगोदाम की रामलीला के इस साथ को 63 साल पूरे हो चुके हैं। इस परिवार की कहानी वाकई दिलचस्प है।
सबसे पुरानी रामलीला का ध्वजवाहक है परिवार
हल्द्वानी में रामलीला मैदान और काठगोदाम में होने वाली रामलीला को सबसे पुराना माना जाता है। काठगोदाम की रामलीला 1956 में शुरू हुई। काठगोदाम के प्रतापगढ़ी के ग्राम प्रधान रूप सिंह राणा ने पहली रामलीला में रावण का किरदार निभाया। जिसके बाद उन्हें लोगों ने इतना पसंद किया कि वे अगले 35 साल (1991) तक रावण के किरदार को अपने अभिनय से जीवंत करते रहे।
बेटे ने संभाली कमान
पिता रूप सिंह के निधन के बाद बेटे महेश राणा ने रावण का किरदार निभाना शुरू किया। रामलीला से ठीक पहले वे सेना से छुट्टी लेकर घर आया करते। उन्हें इस किरदार में ढले हुए अब 28 साल हो चुके हैं। इतना ही नहीं 1967 में पिता के साथ रामलीला में उन्होंने कई अन्य किरदार भी निभाए।
सूबेदार भाई कुम्भकर्ण तो भतीजा मेघनाथ
राणा परिवार परंपरा को आगे बढ़ाता रहा। महेश के छोटे भाई संतोष जो कि सेना में सूबेदार थे उन्हें भी रामलीला में कुम्भकर्ण का किरदार मिला। संतोष भी बड़े भाई की तरह साल में एक बार केवल रामलीला में अभिनय के लिए ही छुट्टी पर घर आया करते। संतोष के बेटे संदीप ने भी 2012 से रामलीला मंचन शुरू किया। वे मेघनाथ का किरदार निभाते हैं।
ट्रेक्टर में आते थे दर्शक
महेश ने बताया कि काठगोदाम रामलीला का अपना ही अलग महत्व है। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब से रामलीला शुरू हुई तब से करीब एक दशक तक रुद्रपुर, भवाली, भीमताल, नैनीताल, रामनगर से लोग ट्रैक्टर ट्रॉली में बैठकर यहां पहुंचते थे।