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रामपुर तिराहा कांड: हाई कोर्ट ने यूपी व उत्‍तराखंड सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा

हाईकोर्ट ने रामपुर तिराह कांड मामले में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार से चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के आदेश पारित किए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 10:56 AM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 11:32 AM (IST)
रामपुर तिराहा कांड: हाई कोर्ट ने यूपी व उत्‍तराखंड सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा
रामपुर तिराहा कांड: हाई कोर्ट ने यूपी व उत्‍तराखंड सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा

नैनीताल, [जेएनएन]: हाईकोर्ट ने राज्य आंदोलन के दौरान एक अक्टूबर की रात राज्य आंदोलनकारियों और महिलाओं के साथ हुई बर्बता के मामले में सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार से चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के आदेश पारित किए हैं। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह को याचिका में पक्षकार बनाते हुए पूछा है इस मामले के जिम्मेदार पुलिस व प्रशासनिक अफसरों पर क्या कार्रवाई हुई और तमाम अदालतों में रामपुर तिराहा कांड से संबंधित मुकदमों का स्टेटस क्या है। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता परेश त्रिपाठी मौजूद रहे।

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राज्य आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिलने व फायरिंग के आरोपितों पर कार्रवाई नहीं होने के मामले का हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार सूचीबद्ध किया है।

मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में हुई । 23 साल बाद कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है जिससे शहीद, घायल आंदोलकारियों के साथ ही अस्मत लुटा चुकी महिलाओं को न्याय की उम्मीद जगी है। जागरण ने दो अक्टूबर के अंक में 23 साल बाद भी मुजफ्फरनगर कांड के जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई नहीं होने का मामला प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता में अभी तक किसी को सजा नहीं 

दो अक्टूबर 1994 को देश जब गांधी-शास्त्री जयंती मना रहा था तो उत्तर प्रदेश के पर्वतीय अंचल (अब उत्तराखंड) में मातम पसरा था। आंदोलन के बाद वर्ष 2000 में उत्तराखंड तो बन गया, लेकिन रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर में आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता, महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म व अभद्रता के दर्ज मामलों में अब तक किसी भी आरोपित को सजा नहीं हुई। 24 साल बाद भी इस जघन्य कांड के पीड़ितों के जख्म नहीं भरे हैं।

वह काली रात याद कर कांप जाती है रूह   

पहली अक्टूबर की रात इतिहास में दर्ज वह काली रात है, जिसका जिक्र आते ही उत्‍तराखंड के लोगों की रूह कांप जाती है। उस रात रामपुर तिराहा पर पुलिस ने दिल्‍ली जा रहे उत्‍तराखंड राज्‍य आंदोलनकारियों पर कहर ढाया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में राज्य आंदोलन के दौरान खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर कांड के मामले में पांच-अलग जनहित याचिकाएं दायर की गईं तो सीबीआइ को जांच के आदेश दिए गए। सीबीआइ ने पांच आरोप पत्र सीबीआइ मजिस्ट्रेट मुजफ्फरनगर, दो सीबीआइ जज मुजफ्फरनगर तथा पांच सीबीआइ देहरादून में दाखिल किए। इसमें आरोपी तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह, आइजी नसीम, डीआइजी बुआ सिंह तथा दो दर्जन अन्य पुलिस अफसर शामिल थे। छह अप्रैल 1996 को देहरादून में सीबीआइ ने पांच केस दर्ज किए। इसमें डीएम अनंत कुमार सिंह, एसपी राजपाल सिंह, एएसपी एनके मिश्रा, सीओ जगदीश सिंह व सीओ का गनर सुभाष गिरी के खिलाफ धारा-304, 307, 324 व 326 के तहत केस दर्ज किया गया। सीबीआइ देहरादून ने 22 अप्रैल 1996 को इस मुकदमे में हत्या की धारा जोड़ दी। छह मई को पांचों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद निजी मुचलके में रिहा कर दिया गया। राज्य आंदोलन में खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर व अन्य स्थानों पर 35 आंदोलनकारियों ने शहादत दी।

राज्य बनने के बाद हाई कोर्ट आया मामला 

आरोपी डीएम अनंत कुमार सिंह ने 2003 में नैनीताल हाई कोर्ट में रिट दायर की। 22 जुलाई को जस्टिस पीसी वर्मा व जस्टिस एमएम घिल्डियाल की कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए सीबीआइ दून के हत्या की धारा जोड़ने संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया। इस आदेश के खिलाफ आंदोलनकारियों ने पुनर्विचार याचिका दायर की। 22 अगस्त 2003 को डबल बेंच ने ही आदेश को रिकॉल कर लिया, साथ ही मामले को दूसरी बेंच के लिए स्थानांतरित कर दिया। 28 सितंबर 2004 में जस्टिस राजेश टंडन व जस्टिस इरशाद हुसैन की खंडपीठ ने अनंत कुमार सिंह की याचिका खारिज कर दी। इधर, सीबीआइ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के केस ट्रांसफर से संबंधित दस मामलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। साल 2005 में सीबीआइ की अपीलें खारिज कर दी। 

दून जिला जज से मांगी जांच रिपोर्ट 

उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच के अधिवक्ता रमन साह की ओर से हाई कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया। जस्टिस लोकपाल सिंह की कोर्ट ने जिला जज देहरादून को इस मामले की जांच रिपोर्ट मांगी, जबकि जस्टिस मनोज तिवारी की कोर्ट ने जांच रिपोर्ट में आपत्ति दाखिल करने के निर्देश दिए। याचिकाकर्ता रमन साह का कहना है कि जो मुकदमा 1996 में इलाहाबाद हाई कोर्ट से ट्रांसफर नहीं हुआ, उसकी सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं हो सकती। यहां यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस मामले में हाजिर माफी गवाह तत्कालीन सीओ के गनर सुभाष गिरि की 1996 में हत्या कर दी गई। मामले में सीबीसीआइडी ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी। 

इन आंदोलनकारियों ने दी थी आंदोलनकारी

अजबपुर कलां, 22 वर्षीय, ग्रीश कुमार भंडारी, दून के राजेश लखेड़ा, सतेंद्र सिंह चौहान सेलाकुई, सूर्यप्रकाश शर्मा निवासी मुनि की रेती, 21 वर्षीय रवींद्र रावत निवासी नेहरू कॉलोनी, अशोक कुमार निवासी ऊखीमठ चमोली, उपचार के दौरान मौत। 18 आंदोलनकारी बंदूक की गोली से जख्मी हुए। उस रात दिल्ली जा रही सात आंदोलनकारी महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म, जबकि 17 के साथ अभद्रता व छेड़खानी की गई। 

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