बुरे दौर से गुजर रहे नैनीताल के ऐतिहासिक रैमजे अस्पताल के आने वाले हैं अच्छे दिन
सरकारी सिस्टम की काहिली और सरकार की अनदेखी के चलते बुरे दौर से गुजर रहे जीबी पंत रैमजे अस्पताल के बहुत जल्द अच्छे दिन आने वाले हैं। स्थानीय विधायक संजीव आर्य ने अस्पताल को निजी हाथों में देने की इच्छा जाहिर की है।
नैनीताल, जेएनएन : सरकारी सिस्टम की काहिली और सरकार की अनदेखी के चलते बुरे दौर से गुजर रहे जीबी पंत रैमजे अस्पताल के बहुत जल्द अच्छे दिन आने वाले हैं। स्थानीय विधायक संजीव आर्य ने अस्पताल को निजी हाथों में देने की इच्छा जाहिर की है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भी इस सुझाव को सराहनीय बताते हुए मंजूरी दे दी है। यदि अस्पताल का संचालन पीपीई मोड पर जाता है तो जल्द इसका कायाकल्प भी होगा। जिससे बीडी पाण्डे जिला अस्पताल पर मरीजो का भार तो कम होगा ही लोगों को भी यहा बेहतर ईलाज मिल पायेगा।
1892 में कुमाऊँ कमिश्नर हेनरी रैमजे की याद में बनाया गया रैमजे अस्पताल का गौरवान्वित इतिहास रहा है। ब्रिटिश काल में इसे गोरों का अस्पताल कहा जाता था। जहां ब्रिटिशकर्मी के कई बड़े अफसर ईलाज के लिए पहुचते थे। आजादी के बाद इसको जीबी पंत अस्पताल नाम दे दिया गया, लेकिन अस्पताल की प्रसिद्धि कम नहीं हुई। नैनीताल की आबोहवा और सुविधाओं से लैस अस्पताल में दूर दराज से लोग ईलाज बीके लिए पहुँचते थे। लेकिन प्रदेश बनने के बाद अस्पताल की हालत दयनीय होती चली गयी।
करोड़ों की लागत से अस्पताल के पुराने भवनों का जीर्णोद्धार तो कराया गया मगर अस्पताल में जरूरत के मुताबिक चिकित्सक तैनात नहीं किये गए। नतीजतन मरीजों को सुविधाएं और बेहतर उपचार नहीं मिल पाने से यहाँ मरीजों की हालत घटने लगी। हालत तो यहाँ तक पहुँच गए कि महीने भर में यहाँ गिने चुने मरीज ही इलाज को पहुँचते है। दूसरी ओर अस्पताल भवन में सीएमओ कार्यालय खोल दिया गया। जिस कारण यह ऐतिहासिक अस्पताल महज सीएमओ कार्यालय बनकर रह गया है। बीते कुछ समय से अस्पताल को बीडी पाण्डे जिला अस्पताल में ही समायोजित कर महज डिस्पेंसरी संचालित की जा रही है। अब विधायक संजीव आर्य ने अस्पताल को पीपीई मोड पर दिए जाने की इच्छा जाहिर कर एक नई उम्मीद जगाई है।
जितना पुराना अस्पताल, भवन भी उतना ही ऐतिहासिक
रैमजे अस्पताल का इतिहास करीब सवा सौ साल से भी पुराना है। इसकी ऐतिहासिक बिल्डिंग आज भी ब्रिटिश हुकूमत की यादें ताजा करती है। सवा सौ सालों के बाद आज भी अस्पताल का यह ऐतिहासिक भवन जस का तस खड़ा है।
अस्पताल में उपचार को पहुचते थे ब्रिटिश अफसर
कमिश्नर रैमजे की स्मृति में बना इस अस्पताल का परिसर करीब 17 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। उस समय करीब सवा दो लाख की लागत से इसे तैयार किया गया था। बताया जाता है कि यह राशि चंदे से जुटाई गई थी। ब्रिटिश काल मे इसे गोरों का अस्पताल कहा जाता था जहाँ ब्रिटिश अफसर दूर दराज से इलाज को पहुचते थे।