जंगलों से गायब हुई चीड़ मुर्गी
चीड़ मुर्गी की आवाज ही उसकी दुश्मन बन गई। यही वजह है कि भीमताल के जंगलों में विशेष प्रकार की यह मुर्गी अब देखने को नही मिलती। 1987 में इस मुर्गी को आखिरी बार जंगल में देखा गया था
भीमताल: चीड़ मुर्गी की आवाज ही उसकी दुश्मन बन गई। यही वजह है कि भीमताल के जंगलों में विशेष प्रकार की यह मुर्गी अब देखने को भी नहीं मिल रही है। बताते हैं कि चीड़ मुर्गी का अंतिम जोड़ा भीमताल में 1986 में जून स्टेट के ठाले की धार के जंगलों में देखी गई थी। तब से किसी को इसका दीदार नहीं हुआ है।
तीन दशक पूर्व तक चीड़ के जंगलों में घोसला बनाकर रहने वाली कैटरेयुस वालिखी यहां चीड़ मुर्गी के नाम से जानी जाती थी। वन्य जीव जानकार विक्रम कंडारी, नीरज रैकुनी, आदि बताते हैं कि यह यहां बहुत अधिक संख्या में पाई जाती थी। करकोटक में भी इसकी उपस्थिति बताई जाती थी। संध्या के समय नर एक विशेष प्रकार की आवाज निकालता है जिस कारण शिकारियों के फंदे में आ जाता है। सूत्रों के अनुसार इन मुर्गियों के कुछ जोडे़ अब केवल नैनीताल के राजभवन के पिछले इलाके मे हैं। आम तौर पर चीड़ मुर्गी पाकिस्तान, अफगानिस्तान , ग्रेट हिमालियन नेशनल पार्क में पाई जाती थी। अब हर जगह इसका अस्तित्व खतरे में है। भारत में यह पक्षी वन्य जीव अधिनियम 1972 के शैडयूल वन में है। यह वह श्रेणी है जिसमें शेर हाथी और गैडा जैसे प्राणियों को रखा गया है।
इनसेट
इंग्लैंड मे ंपालतू हैं चीड़ मुर्गी
चीड़ मुर्गी हमारे देश में तो विलुप्त होने की कगार पर है लेकिन इंग्लैंड के वासियों ने इस मुर्गी को बाहरी देशों से मंगाकर पालतू बनाया है। इतना ही नहीं 1980 के दशक में वर्ल्ड फैजिंट एसोसिऐशन ने इस पक्षी पर शोध कार्य भी किया है।