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राग-फाग व उल्लास के रंगों में रंगने लगी बैठकी होली, समिति से जुड़े लोग घर-घर जाकर करने लगे बैठकी होली का गायन

पौष का महीना आते ही कुमाऊंनी परिवारों के लोग घरों गांव के सार्वजनिक स्थानों देवालयों में बैठकी होली पर्व की शुरूआत होती है। हर घर में महिला पुरुष और बच्चे उल्लास उमंग और पारंपरिक गीतों की मधुर ध्वनि के साथ बैठकी होली का गायन करते है।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 04:29 PM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 04:29 PM (IST)
इस बार होली महोत्सव में प्रदेश के मुख्यमंत्री को आमंत्रित किया जाएगा।

जागरण संवाददाता, लोहाघाट (चम्‍पावत) : कुमाऊंनी बैठकी और खड़ी होली की एक ऐसी परंपरा है जो आज प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी काफी लोकप्रिय हो चुकी है। पौष का महीना आते ही कुमाऊंनी परिवारों के लोग घरों, गांव के सार्वजनिक स्थानों, देवालयों में  बैठकी होली पर्व की शुरूआत होती है। हर घर में महिला, पुरुष और बच्चे उल्लास उमंग और पारंपरिक गीतों की मधुर ध्वनि के साथ बैठकी होली का गायन करते है। यही वजह है कि इस पर्व को उत्तराखंड के बाहर भी पसंद किया जा रहा है। खड़ी होली के आयोजन देश विदेश गए कुमाऊंनी लोग इस पर्व में शामिल होने के लिए घर पहुंचते हैं। कुमाऊंनी वेशभूषा पहनकर महिला और पुरुष समूहों में पारंपरिक गीतों पर थिरकते हैं। बच्चों  बुजुर्ग और नौजवान  हर कोई उमंग और उल्लास में डूबा रहता है। अन्य समाज के लोग भी कुमाऊंनी होली में शामिल होते हैं। यह पर्व संस्कृति प्रेम का शानदार उदाहरण है। 

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पौषमास के पहले रविवार से शुरू हो जाती है बैठकी होली 

बैठकी और खड़ी होली मनाने की परंपरा पौष मास के पहले रविवार से शुरूआत होती है। इसमें होल्यार प्रत्येक माह के रविवार के साथ ही त्यौहार के दिन एक दूसरे के आवास में बैठकी होली मनाते हैं। इसमें ईश्वर को समर्पित पारंपरिक गीतों का गायन किया जाता है।  वसंत पंचमी के आते ही होल्यारों का उत्साह और अधिक बढ़ जाता है। इसके बाद महाशिवरात्रि से खड़ी होली शुरू होती है।  जिसमें महिलाएं व पुरुष समूहों में कदमताल करते हुए होली के गीतों पर झूमते हैं। 

रंगों से नहीं रागों से बनाई जाती बैठकी होली 

बैठकी होली अपने आप में एक ऐसी अनोखी होली है। जिसे रंगों से नहीं रागों से मनाया जाता है। इस होली में पारंपरिक गीतों की मुख्य भूमिका है और वाद्य यंत्रों की जुगलबंदी इस उल्लास को और खास बनाती है। होल्यार  ढोल, मंजीरे, हारमोनियम, चिमटे, ढपली, जोड़ी  की मधुर ध्वनि संगीत में जान डालती हैं।

राम सेवा समिति अध्‍यक्ष जीवन सिंह मेहता ने बताया कि काली कुमाऊं की खड़ी होली आज से नहीं बहुत पुरानी परंपरा है। क्षेत्र में कई स्थानों पर बैठकी होली में राग,धमार, पीलू, जंगला, काफी, सहना के माध्यम से बैठकी होली का गायन किया जाता है। एकादशी से दो दिवसीय रंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें क्षेत्र की दर्जनों टीमें खड़ी होली गायन के लिए लोहाघाट रामलीला मैदान पहुंचती  है। इस बार होली महोत्सव में प्रदेश के मुख्यमंत्री को आमंत्रित किया जाएगा।

रंगकर्मी राजेश चौबे ने कहा कि काली कुमाऊं की बैठकी होली व खड़ी होली का अपना अलग अंदाज है। शुरूआत के पहले दिनों में धार्मिक फिर श्रृंगार और यौवन उसके बाद वेदांतिक होली का गायन किया जाता है। ठीक उसी प्रकार से रागों का भी गायन होता है। भगवती जागरण समिति द्वारा पौष मास से गांव बैठकी होली का शुभारंभ हो जाता है। समिति से जुड़े लोग प्रति दिन घरों में टोली बनाकर देर रात तक होली का गायन कर रहे है।

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