कोरोना जांच के लिए सैंपल देने के बाद रिपोर्ट के लिए हलकान हो रहे मरीज, बदतर है व्यवस्था
कोरोना इलाज को लेकर जितने भी दावे किए जा रहे हैं उसकी हकीकत क्या है यह जानना भी जरूरी है। इलाज के नाम पर बीमार लोग व्यवस्था की मार झेल रहे हैं। जांच के लिए सैंपल देने के बाद रिपोर्ट ही नहीं मिल रही।
हल्द्वानी, गणेश जोशी : कोरोना इलाज को लेकर जितने भी दावे किए जा रहे हैं, उसकी हकीकत क्या है यह जानना भी जरूरी है। इलाज के नाम पर बीमार लोग व्यवस्था की मार झेल रहे हैं। जांच के लिए सैंपल देने के बाद रिपोर्ट ही नहीं मिल रही। रिपोर्ट न मिलने के कारण कई- कई दिन इस असमंजस में निकल जा रहे हैं कि पता नहीं कोरोना है या नहीं। रिपोर्ट आती भी है तो कभी नाम-पता गलत दर्ज हो जाता है, तो कभी कई मिलते-जुलते नामों के कारण गफलत हो जाती है। जनता-जनार्दन की इन समस्याओं से अधिकारियों का भी कोई राब्ता नहीं है। हां सरकार को खुश रखने के लिए सैंपलिंग के आंकड़े खूब बढ़ा चढ़ा कर दिखाए जा रहे हैं। सैंपल लेते ही रजिस्ट्रेशन का मैसेज आ जाता है। ताकि इस बात का डंका पीटा जा सके कि हमारे सूबे और जिले में पर्याप्त जांचें हो रही हैं। वास्तविक सच्चाई क्या है, इसको लेकर जागरण के रिपोर्टर गणेश जोशी ने पड़ताल की है। यह पड़ताल सरकारी दावों की पोल खाेलने के साथ आम लोगों की पीड़ा का बयान भी कर रही है।
केस एक
लामाचौड़ के 43 वर्षीय युवक पॉजिटिव निकला था। मरीज को एसटीएच में भर्ती किया गया। पत्नी व लखनऊ से भी पहुंचे परिजनों ने भी 28 अगस्त को मिनी स्टेडियम में कोरोना सैंपल दिए, लेकिन सात दिन तक रिपोर्ट नहीं मिली। इस बीच युवक की मौत हो गई। उन्हीं परिजनों को अंत्येष्टि करनी थी। एसटीएच से लेकर घाट तक पहुंचे। बाद में उसमें एक व्यक्ति पॉजिटिव निकला। समय पर रिपोर्ट मिली होती तो व्यक्ति घाट नहीं जाता।
केस दो
राज्य आंदोलनकारी विजय भट्ट ने देहरादून से लौटने के बाद 30 अगस्त सैंपल दिए। उन्हें बीमारी के लक्षण भी थे। होटल में क्वारंटाइन थे। उनकी रिपोर्ट के लिए कई बड़े नेताओं व अधिकारियों ने भी फोन किया, लेकिन चार सितंबर को रिपोर्ट आई। जब वह परेशान हो गए। प्रदेश में हल्ला मच गया तो एंटीजन कराने के बाद एसटीएच में भर्ती कराया गया था।
केस तीन
गैस गोदाम रोड निवासी 37 वर्षीय युवक ने 11 सितंबर को फ्लू क्लीनिक में जांच कराई। आज तक रिपोर्ट नहीं मिली। बार-बार कंट्रोल रूम में फोन करने पर उन्हें रिपोर्ट निगेटिव ही होने की बात कहकर टरका दिया जाता है। रिपोर्ट मांगने पर स्पष्ट जवाब नहीं मिलता। वह अपनी जांच रिपोर्ट जानने के लिए भटक रहे हैं। आखिर कौन सुनेगा उनकी?
केस चार
मटरगली के 54 साल का एक व्यक्ति ने 12 सितंबर को कोरोना टेस्ट कराया। वह सिम्टोमैटिक है। रिपोर्ट 19 सितंबर को बताई गई। वह पॉजिटिव निकला। सात दिन तक वह आइसोलेट रहे या इधर-उधर घूमे। इसे देखने वाला कोई नहीं था। इतने दिन तक उनकी मनोस्थिति क्या रही होगी? इसे कौन समझना चाहेगा? अब वह एसटीएच में भर्ती हैं और परिजनों की रिपोर्ट का इंतजार है।
ये है अहम सवाल
आठ महीने में कोरोना जांच रिपोर्ट समय से देने की व्यवस्था क्यों नहीं बनाई गई?
पॉजिटिव रिपोर्ट की कॉपी मरीज को समय पर क्यों नहीं उपलब्ध कराई जाती है?
निगेटिव आने पर लोगों को रिपोर्ट की जानकारी क्यों नहीं दी जाती है?
प्राइवेट लैब की रिपोर्ट पर भी उठ रहे सवाल
ऐसा नहीं कि सरकारी लैब की रिपोर्ट देने में लापरवाही बरती जा रही हो, निजी लैब में भी कई तरह की गड़बडिय़ां उजागर हो रही हैं। अगर सरकारी में पॉजिटिव तो निजी लैब में निगेटिव और निजी लैब में पॉजिटिव तो सरकारी लैब में निगेटिव रिपोर्ट आने की शिकायतें भी आम हैं। वहीं सीएमओ डॉ. भागीरथी जोशी ने बताया कि रिपोर्ट मिलने को लेकर व्यवस्था बनाई गई है। फिर भी कुछ दिक्कतें हैं, लेकिन इसे दुरुस्त करने की तैयारी चल रही है। जल्द ही लोगों को रिपोर्ट समय पर मिल जाएगी।