प्रकाश पंत के निधन की खबर माता-पिता को अब तक नहीं, बताने का नहीं कर पा रहा कोई साहस
प्रदेश की राजनीति में धूमकेतु बने प्रदेश के वित्त मंत्री प्रकाश पंत के दुनिया से चले जाने की खबर पर लोग रो रहे थे। लेकिन उनके माता पिता को यह मनहूस खबर नहीं दी गई है।
पिथौरागढ़, जेएनएन : प्रदेश की राजनीति में धूमकेतु बने प्रदेश के वित्त मंत्री प्रकाश पंत के दुनिया से चले जाने की खबर पर लोग रो रहे थे। हर व्यक्ति का गला रुंधा हुआ है। पूरे शहर के हर व्यक्ति के जुबान पर प्रकाश का ही नाम है। बस इस बात से अनजान थे तो प्रकाश पंत के जन्मदाता माता और पिता। दोनों के स्वास्थ्य को देखते हुए यह खबर उन तक नहीं पहुंचे जिसके लिए सारे जतन किए गए हैं। इंतजार था कि प्रकाश पंत के बड़े भाई पहुंचे और यह खबर उन्हीं के माध्यम से माता-पिता को मिले ताकि दोनों को वह बेहतर तरीके से संभाल सकें।
दिवंगत नेता प्रकाश पंत के पिता मोहन चंद्र पंत और माता कमला पंत काफी वृद्ध हैं। दोनों अस्वस्थ भी हैं। इस उम्र में पुत्र के निधन का समाचार सुन कर सदमा सहन नहीं कर पाए तो और दिक्कत होगी। यही देखते हुए यह रणनीति बनाई गई। बड़ा पुत्र बाहर है और छोटा पुत्र प्रकाश पंत के साथ अमेरिका में। घर में माता-पिता और छोटे पुत्र की बहू ही थी। इतने बड़े आघात को माता-पिता को बताने की कोई हिम्मत नहीं जुटा सका। पुत्र वियोग यह खबर फिलहाल उनके कानों तक नहीं पहुंचे इसके सारे जतन किए गए हैं।
नगर के खड़कोट स्थित प्रकाश पंत के आवास से लगभग सौ मीटर दूर चंडाक रोड के पास जीजीआइसी के पास भाजपा के कुछ कार्यकर्ता और नेता सीमित संख्या में जमा रहे, ताकि कोई व्यक्ति इस मनहूस खबर को लेकर उनके आवास तक नहीं पहुंच सके। सभी को यह भय सता रहा था कि यदि खबर उन तक पहुंची और सदमा सहन नहीं कर सके तो कैसे संभाला जाएगा। प्रकाश पंत के बड़े भाई लोनिवि के पूर्व ईई कैलाश पंत और प्रकाश पंत की बड़ी बहन घर से बाहर पहुंचे। बाहर पहुंचने पर बहन व परिजन रोने लगे। इस बीच उन्हें सामान्य होकर घर में जाने को कहा गया ताकि माता-पिता को इसका आभास तक नहीं हो।
प्रदेश के बड़े मंत्री के आवास पर हमेशा चहल पहल बनी रहती थी । गुरु वार को एक अजीब सा माहौल बना है। माता-पिता, बहू और पुत्रियां घर के अंदर हैं। भाई, बहू से लेकर बहनों व उनके परिवार के लोगों को सूचना है परंतु माता-पिता को इसकी भनक नहीं लगे ऐसा व्यवहार किया जा रहा है। मकान के दूसरे हिस्से में जहां पर प्रकाश पंत का कार्यालय था वहां पर भाजपा के जिलाध्यक्ष विरेंद्र वल्दिया, पालिकाध्यक्ष राजेंद्र रावत, सहकारी बैंक अध्यक्ष मनोज सामंत, राकेश देवलाल, ललित पंत, मोहन नगरकोटी, इंद्र सिंह लुंठी सहित कुछ भाजपा नेता बैठे हैं। परिवारजनों को यहां पर बैठने का उद्देश्य आवश्यक बैठक बताया गया है। मकान के आसपास का माहौल ऐसा है कि न तो कोई खुल कर दुख प्रकट कर पा रहा है और नहीं किसी को यहां तक पहुंचने दिया जा रहा था।
पंत का जाना कई परिवारों के लिए सदमा
सौम्य चेहरा, होठों पर मुस्कान और हर दिल अजीज प्रकाश पंत के असमय चले जाने से कई परिवार अनाथ जैसी स्थिति में पहुंंच चुके हैं। ये परिवार प्रकाश पंत की ही कृपा पर पल रहे हैं। उनके इस धरा से चले जाने पर इन परिवारों का भविष्य भी अंधकार की तरफ जाता नजर आ रहा है।
प्रकाश पंत ऐसा शख्स जो लोगों की मदद के लिए हमेशा आगे रहते थे । उनकी कृपा नगर के दर्जनों परिवारों पर रही। कई परिवार ऐसे हैं जो आज भी उनकी कृपा ही रोजी रोटी चला रहे हैं। ऐसे परिवार पूरी तरह सदमे में हैं। वर्ष 1984 के बाद जब प्रकाश पंत गांधी चौक में पंत फार्मेसी चलाते थे तभी से उनकी जनसेवा लोगों के सामने आने लगी थी। राजकीय सेवा त्यागने के बाद कुछ समय भविष्य को लेकर ताना बाना भी बुना। बाद में गांधी चौक में पंत मेडिकल स्टोर खोला। यहीं से उनकी समाज सेवा परवान चढऩे लगी। तब कोई नहीं जानता था कि दवा की दुकान में लोगों को सुई लगाने वाला आने वाले समय में पिथौरागढ़ के राजनैतिक क्षितिज का सितारा बनेगा। जिसे लेकर आज उनके जाने को काई सहज स्वीकार नहीं कर रहा है।
उनके बचपन के मित्र, सहपाठी बताते हैं कि प्रकाश पंत बचपन से ही दूर की सोच रखने वाले थे और पढ़ाई के दौरान भी सौम्य स्वभाव के थे। पढऩे, लिखने वाले माने थे। राजनीति में कदम रखने के बाद उन्होंने पीछे नहीं देखा। भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद वह पिथौरागढ़ की भाजपा के केंद्र बिंदू बन गए। आलम यह हो गया कि जिले की भाजपा में प्रकाश पंत का नाम सबसे पहले आने लगा। वर्ष 1998 में जब कुमाऊं से पंचायतों से विधान परिषद का चुनाव होना था तो कुमाऊं के बड़े-बड़े नाम आए परंतु चयन प्रकाश पंत का किया गया। यही उनकी राजनीतिक सीढ़ी बनी। तब तक उनका कद जिले से बाहर मंडल तक जाना जाने लगा था। भाजपा के अलावा अन्य दलों के पंचायत प्रतिनिधि उनके पक्ष में आ गए। इसका प्रमाण उनकी प्रचंड जीत रही।
राजनीति में सक्रिय रहने के दौरान उनके द्वारा कई लोगों को रोजगार दिया गया कई की नौकरी लगी। प्रत्येक व्यक्ति के साथ अपनापन रखने से उनकी छवि जननेता के रू प में होने लगी। इसी दौरान उनके रहमोकरम पर कई परिवार पलने लगे। उनके जाने के बाद इन परिवारों के सम्मुख संकट पैदा हो गया है।
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