ऊधमसिंह नगर में तैयार होंगे पंगेसियस मछली के बीज
पंगेसियस का बीज बांग्लादेश और आंध्र प्रदेश से आता है। ऐसे में सीजन के वक्त पालन करने पर समय से बीज न मिलने से छोटे आकार में ही उसे बेचने की जरूरत होती है या फिर पंगेसियस का पालन करने में कठिनाई होती है।
बृजेश पांडेय, रुद्रपुर। पंगेसियस मछली पालने वाले किसानों को अब पहले से दोगुनी आय होगी। बीज के लिए लंबा इंतजार भी नहीं करना होगा और जेब भी कम ढीली करनी होगी। मत्स्य पालन कर रोजगार करने वालों के लिए बेहतरीन विकल्प मिलेगा। अब जिले में पंगेसियस का बीज तैयार किया जाएगा। बीज से यहां के लोग पालन कर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
मत्स्य विभाग की ओर से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए तमाम प्रयास चल रहे हैं। सबसे तेजी से बढऩे वाली मछलियों में एक पंगेसियस की जिले में डिमांड सबसे अधिक है। इसलिए यहां के मत्स्य पालक इसका उत्पादन अधिक करते हैं। सबसे बड़ी समस्या इनकों बीज उपलब्धता को लेकर होती है। पंगेसियस का बीज बांग्लादेश और आंध्र प्रदेश से आता है। ऐसे में सीजन के वक्त पालन करने पर समय से बीज न मिलने से छोटे आकार में ही उसे बेचने की जरूरत होती है, या फिर पंगेसियस का पालन करने में कठिनाई होती है। अन्य राज्य से बीज आने पर यहां की अपेक्षा 30 फीसद तक अधिक भुगतान किसानों को करना पड़ता है।
खटीमा में बायो फ्लाक तकनीक से पंगेसियस का पालन करने के साथ ही सात 30 टैंकों में पंगेसियस का बीज भी तैयार किया जाएगा। यहां के तैयार बीज को लेकर किसानों को इसे पालने में आसानी होगी। साथ ही समय पर बीज की उपलब्धता और लागत भी कम आएगी। यह मछली चार से छह माह में एक से डेढ़ किलो तक का होता है।
पंगेसियस की खासियत
पंगेसियस मछली की खासियत है कि इसमें कांटे नहीं होते हैं और यह कम समय से ही विकसित हो जाती है। सात से आठ महीने में ही पंगेसियस मछली तैयार हो जाती है।
विशेषताएं एवं लाभ
वृद्धि दर अधिक है। इसकी मांग घरेलू एवं विदेशी बाजारों में है। साथ ही रोग निरोधक क्षमता अपेक्षाकृत ज्यादा है। कम घुलित आक्सीजन वाले पानी में भी ङ्क्षजदा रहने में सक्षम होने के साथ ही शरीर में कांटे कम है। कृत्रिम भोजन बहुत आसानी से ग्रहण करती है।
सहायक निदेशक मत्स्य संजय छिम्वाल ने बताया कि अब तक पंगेसियस का बीज बांग्लादेश से आता है। यहां किसानों को समय से न मिलने से दिक्कत होती है। अब खटीमा में बायो फ्लॉक तकनीक से मत्स्य पालन किया जा रहा है। इस तकनीक में पंगेसियस आसानी से पाल सकते हैं। इसलिए बच्चे तैयार करने के लिए उपयुक्त है।