Uttarakhand News : हल्द्वानी के सरकारी अस्पतालों में महज तीन रेडियोलॉजिस्ट, निजी में 12 से अधिक
हल्द्वानी में डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय समेत तीन बड़े सरकारी अस्पताल हैं। जहां कुमाऊं भर के मरीजों की उम्मीदें टिकी रहती हैं। जिनमें केवल तीन रेडियालाजिस्ट ही तैनात हैं। जबकि निजी अस्पतालों व डायग्नोस्टिक सेंटरों में 12 से अधिक रेडियोलाजिस्ट कार्यरत हैं।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : हल्द्वानी के सरकारी अस्पताल, जहां सस्ते इलाज के कारण मरीजों का दबाव अधिक रहता है, इसके बावजूद अल्ट्रासाउंड समेत अन्य रेडियो डायग्नोसिस जांच के लिए पर्याप्त रेडियोलाजिस्ट नहीं है। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतने को मजबूर हैं।
आलम यह है कि कुमाऊं के सबसे बड़े शहर हल्द्वानी में डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय समेत तीन बड़े सरकारी अस्पताल हैं। जहां कुमाऊं भर के मरीजों की उम्मीदें टिकी रहती हैं। जिनमें केवल तीन रेडियालाजिस्ट ही तैनात हैं। जबकि निजी अस्पतालों व डायग्नोस्टिक सेंटरों में 12 से अधिक रेडियोलाजिस्ट कार्यरत हैं। इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
एक डायग्नोस्टिक सेंटर में दो-दो रेडियोलाजिस्ट
शहर में डायग्नोस्टिक सेंटरों की संख्या तेजी से बढ़ गई है। डा. सुशीला तिवारी के दो किलोमीटर के दायरे में छह से अधिक डायग्नोस्टि सेंटर खुल चुके हैं। जहां एक-एक डायग्नोस्टिक सेंटर में दो-दो रेडियोलाजिस्ट भी तैनात हैं।
एसटीएच, महिला व बेस की यह है स्थिति
बेस अस्पताल में पिछले कई वर्षों से केवल एक रेडियोलाजिस्ट डा. बिपिन पंत कार्यरत हैं। पिछले महीने वह कई वर्षों बाद छुट्टी पर गए अस्पताल में दिक्कत हो गई थी। बाद में रानीखेत से रेडियोलाजिस्ट की वैकल्पिक व्यवस्था की गई। महिला अस्पताल में स्थायी तैनाती नहीं है।
पहाड़ में तैनात डा. कुमुद पंत को संबद्ध किया गया है। उन्हें एक दिन कोटाबाग अस्पताल जाना पड़ता है। इस अस्पताल में भी अक्सर गर्भवती महिलाओं को भटकना पड़ जाता है। उत्तराखंड का पहला व सबसे बड़ा राजकीय मेडिकल कालेज के डा. सुशीला तिवारी राजकीय चिकित्सालय का हाल सबसे अधिक बुरा है।
जहां पांच साल पहले पर्याप्त स्टाफ की वजह से एमडी दो सीटों की अनुमति मिल चुकी थी। वहीं इस समय सीनियर रेजिडेंट पद पर केवल एक रेडियोलाजिस्ट काम कर रहे हैं। सीटें की अनुमति रद हो चुकी है। पिछले तीन महीने तक यह अस्पताल बिना रेडियोलाजिस्ट का रहा। दुर्भाग्य है कि सीटी स्कैन व एमआरआइ की जांच बाहर की एजेंसी से कराई जाती है। इसमें दो से तीन दिन का समय लग जाता है।
हल्द्वानी में प्रतिदिन जांच करने वाले मरीजों की संख्या
अस्पताल मरीज
एसटीएच 30-40
बेस अस्पताल 30 से 40
महिला अस्पताल 40-50
निजी अस्पताल 200 से 240
क्या कहते हैं जिम्मेदार
आइएमए के प्रदेश अध्यक्ष डा. जेएस खुराना बताते हैं किसरकारी अस्पतालों में रेडियोलाजिस्ट का ज्वाइन न करने का सबसे बड़ा कारण वेतन कम मिलना है। समय पर ग्रोथ नहीं होना है। अत्याधुनिक मशीनों की कमी है। साथ ही स्वरोजगार के साथ ही अच्छी आय हासिल करने का सुख भी है।
सरकारी में एक लाख वेतन, निजी में तीन लाख से अधिक
राजकीय मेडिकल कालेज हल्द्वानी के प्राचार्य प्रो. अरुण जोशी कहते हैं कि निजी सेंटर में रेडियोलाजिस्ट को तीन लाख से अधिक का वेतन मिल जाता है, वहीं सरकारी में एक लाख रुपये तक का वेतन है। वैसे भी इनकी मांग ज्यादा और अभी सीटें कम हैं। इसलिए भी सरकारी में ज्वाइन नहीं करते हैं।