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अब जंगल बचाने को वन पंचायतों में जड़ी बूटी की खेती, चलाई जाएगी 'लिव विद लेपर्ड' की मुहिम

जंगलात बचाने को डीएफओ महातिम सिंह यादव ने अभिनव प्रयोग शुरू किया है। इसके तहत वन पंचायतों को वानिकी प्रशिक्षण देकर आसपास के ग्रामीणों को जड़ी बूटी उत्पादन के लिए प्रेरित किया जाएगा। ग्रामीणों की आर्थिकी सुधार के बहाने वनों को आग से बचाने को कदम बढ़ाए जाएंगे।

By Prashant MishraEdited By: Published: Fri, 26 Feb 2021 09:05 AM (IST)Updated: Sat, 27 Feb 2021 10:09 PM (IST)
अब जंगल बचाने को वन पंचायतों में जड़ी बूटी की खेती, चलाई जाएगी 'लिव विद लेपर्ड' की मुहिम
अब 'लिव विद लेपर्ड' मुहिम चला संवेदनशील गांवों में लोगों को जागरूक किया जाएगा।

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : लपटों से जंगलात बचाने को अब वन पंचायतों को वानिकी से जोड़ा जाएगा। सरपंचों को वन क्षेत्रों का प्रबंधन, सृजन, सदुपयोग व संरक्षण की विज्ञानी विधाओं का ज्ञान दिया जाएगा। खास बात कि वन पंचायतों की आबोहवा का अध्ययन कर जड़ी बूटी जोन विकसित किए जाएंगे। इससे ताकि संबंधित जंगलात स्थानीय ग्रामीणों को आजीविका का हिस्सा बनेंगे। ऐसे में लोगों वनों को आग से बचाने की चिंता भी रहेगी। वहीं, अत्याधुनिक भौगोलिक सूचना विज्ञान (जीआइएस) तकनीक से लपटों से लड़ने की तैयारी है।

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वनाग्नि के लिहाज से अतिसंवेदनशील बन चुके जनपद के जंगलात बचाने को डीएफओ महातिम सिंह यादव ने अभिनव प्रयोग शुरू किया है। इसके तहत वन पंचायतों को वानिकी प्रशिक्षण देकर आसपास के ग्रामीणों को जड़ी बूटी उत्पादन के लिए प्रेरित किया जाएगा। वन विभाग चयनित वन पंचायतों की मिट्टी आदि की जांच करा पता लगाएगा कि अमुक जंगलात में किस प्रजाति की जड़ी बूटी का बेहतर उत्पादन किया जा सकता है। फिर वहां पौधे लगा या बीज बोकर ग्रामीणों की आर्थिकी सुधार के बहाने वनों को आग से बचाने को कदम बढ़ाए जाएंगे।

सरपंचों से खरीदेंगे बीज

डीएफओ महातिम ने एक और पहल की है। अब तक विभाग अपने सरकारी पौधालयों के लिए रानीखेत वन अनुसंधान केंद्र या बाजार से बीज खरीदता आ रहा। मगर अब बहुपयोगी बांज, काफल, मेहल, फल्याट, उतीश आदि के बीज वन पंचायतों से भी खरीदे जाएंगे। ताकि आय बढ़ा कर उन्हें वनाग्नि से निपटने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

अब 'लिव विद लेपर्ड' मुहिम

जिले में गुलदार मानव टकराव भी चरम पर है। ऐसे में अब 'लिव विद लेपर्ड' मुहिम चला संवेदनशील गांवों में लोगों को जागरूक किया जाएगा। साथ ही टकराव टालने को सुरक्षित तौर तरीके अपना गुलदार के साथ जीने के गुर बताए जाएंगे।

70 हजार हेक्टेयर में फैली हैं वन पंचायतें

जिले में 2100 वन पंचायत हैं जो 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं। यह क्षेत्रफल आरक्षित वन के बराबर ही है। इसीलिए विभाग वन पंचायतों को संवार सरपंचों को साथ ले आग से लडऩे की कार्ययोजना बना रहा।

डीएफओ महातिम सिंह यादव ने बताया कि जिले में पहली बार यह अभिनव प्रयोग किया जा रहा। जड़ी बूटी उत्पादन के लिए सरपंचों से प्रस्ताव मांगे जा रहे हैं। ग्रामीणों की आजीविका बढ़ाने को बांस व वन औषधीय पौधे लगाए जाएंगे। वन पंचायतों में बहुपयोगी स्थानीय वनस्पति प्रजाति के पौधालय भी विकसित किए जाएंगे। शुक्रवार को इसी सिलसिले में कार्यशाला होनी है। विभाग में स्टाफ का बहुत अभाव है। ऐसे में वन पंचायतें व ग्रामीणों के सहयोग बिना वनाग्नि से नहीं लड़ा जा सकता।

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