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    उत्तराखंड पुलिस हेड कांस्टेबल के ग्रेड पे का मामला, डीजीपी को हाई कोर्ट में देना होगा नया प्रत्यावेदन

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 06:40 PM (IST)

    नैनीताल हाई कोर्ट ने उत्तराखंड पुलिस के हेड कांस्टेबल के ग्रेड पे मामले में याचिकाकर्ताओं को डीजीपी के समक्ष नया प्रत्यावेदन दाखिल करने की अनुमति दी है। याचिकाकर्ता 2001 से सेवा में हैं और द्वितीय एसीपी के तहत 4600 ग्रेड पे की मांग कर रहे हैं। कोर्ट ने डीजीपी को छह महीने के भीतर इस मामले पर निर्णय लेने का आदेश दिया है।

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    हाई कोर्ट ने डीजीपी को दिए छह सप्ताह में निर्णय लेने के निर्देश। आर्काइव

    जागरण संवाददाता, नैनीताल। हाई कोर्ट ने उत्तराखंड पुलिस में हेड कांस्टेबल के ग्रेड पे से जुड़े एक मामले में याचिकाकर्ताओं को 4600 ग्रेड वेतन के लिए नया प्रत्यावेदन पुलिस महानिदेशक के समक्ष दाखिल करने की अनुमति दी है, साथ ही पुलिस महानिदेशक को इन प्रत्यावेदनों पर छह माह के भीतर निर्णय लेने को कहा है।

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    2001 में सिपाही के पद पर नियुक्त हेड कांस्टेबल द्वितीय सुनिश्चित करियर प्रोन्नयन (द्वितीय एसीपी) के तहत 4600 का ग्रेड पे चाहते हैं।याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर राज्य सरकार के सात जनवरी 2022 के शासनादेश को चुनौती दी थी। शासनादेश में कहा गया था कि 2001 से सेवा कर रहे कांस्टेबलों को 4600 का ग्रेड पे दिया जाएगा। हालांकि, शासनादेश ने ग्रेड पे के बजाय दो लाख की एकमुश्त राशि का प्रावधान किया था। याचिकाकर्ताओं ने 11 दिसम्बर 2021 से 4600 ग्रेड पे और उसके बकाया की मांग की थी।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वह 2021 में ही द्वितीय एसीपी के तहत 4600 ग्रेड पे के हकदार हो गए थे। राज्य सरकार ने हेड कांस्टेबलों के लिए अगली प्रोन्नति का पद असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर ( एएसआइ) बताया, जिसे 2023 में बनाया गया था। याचिका कर्ताओं का तर्क था कि 2023 में नए पद का सृजन होना, 2021 में ग्रेड पे के लिए याचिकाकर्ताओं की पात्रता को समाप्त नहीं कर सकता है।

    वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं को द्वितीय एसीपी के रूप में 4600 ग्रेड पे की मांग के लिए एक नया अभ्यावेदन दाखिल करने की अनुमति देते हुए, रिट याचिका का निपटारा कर दिया। एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर यह अभ्यावेदन पुलिस महानिदेश को देने को कहा, साथ ही डीजीपी को अभ्यावेदन प्राप्त होने की तारीख से छह महीने के भीतर कानून के अनुसार इस मामले पर विचार करें और एक ''विवेचित आदेश'' पारित करें।

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