एप्पल और फेसबुक के मालिक की बिगड़ी बनाने वाले नीम करौली बाबा
उत्तराखंड के कैंचीधाम वाले संत महात्मा नीम करौली महराज की आज पुण्यतिथि है। बाबा के चमत्कार उनसे जुडी कथाएं और भक्तों की फेहरिश्त सात समुदंर पार तक है।
नैनीताल, जेएनएन : उत्तराखंड के कैंचीधाम वाले संत महात्मा नीम करौली महराज की आज पुण्यतिथि है। बाबा के चमत्कार, उनसे जुडी कथाएं और भक्तों की फेहरिश्त सात समुदंर पार तक है। बाबा के भक्तों में एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग, हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स तक का नाम शामिल है।
कहते हैं कि यहां पहुंचकर सच्चे मन से माथा टेकने वालों की बिगड़ी बन जाया करती है। 15 जून काे बाबा की जयंती पर आयोजित होने वाले महोत्सव का विशेष प्रसाद ग्रहण करने के लिए देश-दुनिया भर से हजारों-लाखों भक्त पहुंचते हैं। तो पुण्यतिथि पर भी बाबा के दर पर आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद अच्छी खासी होती है। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण जयंती पर न तो आयोजन हुए न ही श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश दिया गया। हालांकि अब श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खुल चुका है, गाइडलाइन का पालन करते हुए श्रद्धालुओं को प्रवेश भी दिया जा रहा है।
एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स पहुंचे थे कैंची
एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स 1974 से 1976 के बीच भारत भ्रमण पर निकले। उनके लिए भारत की यात्रा एडवेंचर नहीं थी। उन्हें अपने लिए गुरु की तलाश थी और वे यहां आध्यात्मिक यात्रा पर आए थे। स्टीव पहले हरिद्वार पहुंचे। यहां कुछ दिन रुकने के बाद कैंचीधाम आश्रम आ गए। हालांकि जब वे नीम करौली बाबा के आश्रम में आए तब उन्हें पता चला कि बाबा समाधि ले चुके हैं। कहा जाता है कि एप्पल के लोगों का आइडिया स्टीव को बाबा के आश्रम से ही मिला। कथित तौर नीम करौली बाबा को सेब पसंद थे और वह बड़े ही चाव से सेब खाया करते थे, इसी वजह से स्टीव ने अपनी कंपनी के लोगों के लिए कटे हुए एप्पल को चुना। हालांकि यह बात प्रमाणिक तौर पर नहीं कही जा सकती है।
बाबा ने बदली फेसबुक के मालिक की जिंदगी
27 सितंबर 2015 को जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फेसबुक के मुख्यालय में थे और बातों का दौर चल रहा था इसी दौरान जुकरबर्ग ने पीएम को भारत भ्रमण की बात बताई। उन्होंने कहा कि जब वे इस संशय में थे कि फेसबुक को बेचा जाए या नहीं, तब एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स ने इन्हें भारत के एक मंदिर में जाने की सलाह दी थी। जुकरबर्ग ने बताया था कि वे एक महीना भारत में रहे। इस दौरान उस मंदिर में भी गए थे। जुकरबर्ग आए तो एक दिन के लिए थे, लेकिन मौसम खराब हो जाने के कारण वह यहाँ दो दिन रुके थे। मार्क जुकरबर्ग ने बताया कि उस समय मैं बहुत निराश था। फेसबुक बेचने तक का मन बना चुका था। जुकरबर्ग मानते हैं कि भारत में मिली अध्यात्मिक शांति के बाद उन्हें फेसबुक को नए मुकाम पर ले जाने की ऊर्जा मिली।
बाबा का सिर्फ फोटो देख कर सम्माेहित हो गईं जूलिया
अपनी फिल्म ‘ईट, प्रे, लव’ की शूटिंग के लिए भारत आईं जूलिया रॉबर्ट ने 2009 में हिंदू धर्म अपना लिया था। ऑस्कर विजेता हॉलीवुड की इस अदाकारा ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि वह नीम करौली बाबा की तस्वीर से इतना प्रभावित हुई थीं कि उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाने का फैसला कर डाला। जूलिया इन दिनों हिन्दू धर्म का पालन कर रही हैं। वो अपने पति और तीनों बच्चों के साथ मंदिरों में प्रार्थना करने भी जाती हैं। जूलिया भारत में घर खरीदकर बसना चाहती हैं। घर खरीदने के अलावा जूलिया की एक तमन्ना और है वह है हिन्दुस्तान की जुबान हिन्दी सीखने की। जूलिया चाहती हैं कि वह हिन्दी बोलने में पारंगत हो जायें। वह मानती हैं कि अभी उनकी हिन्दी बहुत ज्यादा खराब है और वह नमस्ते जैसे अभिवादन के एक दो शब्द ही बोल पातीं हैं। लेकिन वह हिन्दी जरूर सीखेंगी। मिरेकल आफ लव नाम से बाबा पर पुस्तक लिखने वाले रिचर्ड एलपर्ट ने जिसमें बाबा के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन है।
बाबा नीम करौली बनने तक का सफर
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के गांव अकबरपुर में जन्मे लक्ष्मी नारायण शर्मा उत्तर प्रदेश के ही एक गांव नीम करौली में कठिन तप करके स्वयं ही नीम करौली बन गए। उनकी अलौकिक शक्तियां पूरे देश में, यहां तक की विश्व में इतनी अधिक चर्चा में आई कि उनका नाम किसी से अनसुना नहीं रहा। बाबा जन्म से ही संत थे। जहां भी जाते यज्ञ व भंडारा कराते। यज्ञ देवताओं के लिए व भंडारा सामान्य मनुष्यों के लिए। उन्होंने तमाम हनुमान मंदिर स्थापित कराए। निर्वाण से पूर्व दो आश्रम भी बनवाए। पहला आश्रम कैंची (नैनीताल) तो दूसरा वृंदावन (मथुरा) में। बाबा ने महासमाधि के लिए वृंदावन को चुना। नौ सितंबर 1973 को नीम करौली महाराज ने कैंची से आगरा के लिए प्रस्थान किया। यह उनकी कैंची की अंतिम यात्रा थी। वह इसका संकेत भी दे गए। 10 सितंबर को आगरा से वृंदावन रवाना हुए, जहां 11 सितंबर को महासमाधि ली।
मान सिंह रहे हैं बाबा के सारथी
बाबा नीम करौली महाराज के अनन्य अनुयायियों में से एक हैं सरदार मान सिंह नागपाल। उन्हें बाबा का सारथी भी कहा जाता था। मान सिंह 78 बसंत पार कर चुके हैं, मगर कैंची धाम के मेले में पहुंच बाबा का ध्यान लगाने जरूर पहुंचते हैं। राजेंद्र नगर गली नंबर चार हल्द्वानी निवासी सरदार मान सिंह टैक्सी चालक रहे। वर्ष 1969 की बात है जब वह हल्द्वानी से अल्मोड़ा के लिए टैक्सी चलाते थे।
एक बार अल्मोड़ा से सवारियां लेकर हल्द्वानी लौट रहे थे। देखा कि हाईवे पर कैंची के समीप भीड़ लगी पड़ी है। वाहन रोका, उतरे और देखा कि लोग बाबा नीम करौली के चरण छू रहे। वह बाबा के आभामंडल से इतने प्रभावित हुए कि अपनी सवारियां दूसरे वाहन से गंतव्य को भेजी। खुद बाबा के पास जाकर बैठ गए। बाबा के पूछने पर बताया कि वह टैक्सी चालक है। तब उन्होंने कहा, चलो हमें वृंदावन आश्रम जाना है। तब से बाबा अक्सर सरदार मान सिंह की कार में ही इधर उधर आते- जाते थे।