Nanda Devi Mahotsav 2021 : नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव शुरू, आज होगा मूर्ति निर्माण
Nanda Devi Mahotsav 2021 नंदा देवी महोत्सव का शनिवार को श्रीगणेश हो गया। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने मां के जयकारे से माहौल भक्तिमय बना दिया। छलिया कलाकारों ने भी मशकबीन की तान व ढोल दमाऊ की थाप पर लोकनृत्य कर कुमाऊंनी लोक संस्कृति झलक पेश की।
जागरण संवाददाता, नैनीताल : Nanda Devi Mahotsav 2021 : आस्था व श्रद्धा का प्रतीक नंदा देवी महोत्सव का शनिवार को श्रीगणेश हो गया। इस मौके पर श्रद्धालुओं ने मां के जयकारे से माहौल भक्तिमय बना दिया। छलिया कलाकारों ने भी मशकबीन की तान व ढोल दमाऊ की थाप पर लोकनृत्य कर कुमाऊंनी लोक संस्कृति झलक पेश की। अब रविवार शाम को मां नंदा-सुनंदा की मूर्ति का निर्माण शुरू होगा। इसके लिए वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रद्धालुओं का दल कदली वृक्ष लेने शनिवार शाम को ज्योलीकोट सडिय़ाताल के टपकेश्वर महादेव मंदिर पहुंच गया।
शनिवार को श्रीराम सेवक सभागार में मुख्य अतिथि डीआइजी नीलेश आनंद भरणे, पूर्व विधायक सरिता आर्य, पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल समेत आयोजक संस्था के पदाधिकारियों ने दीप जलाकर महोत्सव का शुभारंभ किया। पुरोहित आचार्य भगवती प्रसाद जोशी ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा अर्चना व अन्य धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराए।
बाल कलाकारों ने गणेश व नंदा स्तुति व कोटाबाग से पहुंची शिक्षिका अर्चना भट्ट ने भजन प्रस्तुत किया। आयोजक सभा के महासचिव जगदीश बवाड़ी ने बताया कि सडिय़ाताल में पूजा-अर्चना के बाद रविवार को कदली वृक्ष लेकर भक्तों का दल नैनीताल आएगा, जिसकी तल्लीताल वैष्णो देवी मंदिर में पूजा-अर्चना होगी। इसके बाद उसे सूखाताल लाया जाएगा, फिर नयना देवी मंदिर में मूर्ति निर्माण शुरू होगा।
इस अवसर पर एसडीएम प्रतीक जैन, मनोज साह, जगदीश बवाड़ी, नारायण सिंह जंतवाल, मुकेश जोशी मंटू, मनोज जोशी, विमल चौधरी, विमल साह, सरस्वती खेतवाल, किशन नेगी, भुवन बिष्ट हिमांशु जोशी, कमलेश डौढियाल, हेमंत बिष्टï, प्रो. ललित तिवारी, मोहन नेगी, भीम सिंह कार्की, गोधन बिष्ट, कैलाश जोशी, अनिल बिनवाल, संदीप साह, बॉब बजेठा, हीरा सिंह, सोनू साह आदि मौजूद रहे।
महोत्सव में पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश
नंदा देवी महोत्सव के दौरान कदली वृक्ष लाने के साथ ही एक और अनोखी परंपरा रही है। शनिवार को दल के रवाना होने से पहले पर्यावरण प्रेमी यशपाल रावत ने उन्हें पीपल, बांज समेत 21 फलदार पौधे भेंट किए। इन्हें दल के सदस्य सडिय़ाताल क्षेत्र में रोपित करेंगे। आयोजक प्रो. ललित तिवारी ने बताया कि 1988 से यह परंपरा चलती आ रही है, जो पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देती है। उन्होंने बताया कि मूर्ति निर्माण से लेकर झील में विसर्जन करने तक में भी पर्यावरण को सहेजने का विशेष संदेश छिपा रहता है। जल में घुलनशील होने की वजह से ही कदली या केले के तने की मूर्ति बनाई जाती है। मूर्ति निर्माण में केले के वृक्ष का तना, कपड़ा, रूई और प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है। पहले ये मूर्तियां चांदी और कुछ वर्षों बाद थर्माकोल की बनाई जाने लगीं, जो बाद में सभा के पूर्व अध्यक्ष रहे स्वर्गीय गंगा प्रसाद साह की पहल पर बंद कर दिया गया।
कुमाऊंनी टोपी व मां की तस्वीर भेंट कर किया स्वागत
कदली वृक्ष लेने सडिय़ाताल पहुंचे श्रद्धालुओं के दल का जया बिष्टï के नेतृत्व में महिलाओं ने कुमाऊंनी टोपी, मां नंदा-सुनंदा की तस्वीर भेंट कर स्वागत किया। इस दौरान आचार्य भगवती प्रसाद जोशी, मुकेश जोशी मंटू, विमल चौधरी, भीम सिंह कार्की का पुष्पमाला से स्वागत किया गया। गणेश वंदना व नंदा चालीसा भी प्रस्तुत की गई। उत्तराखंड की संस्कृति व परंपरानुसार विजय का प्रतीक लाल झंडा व विश्व शांति का प्रतीक सफेद झंडा भी कदली वृक्ष लेने गए दल को दिया गया।