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बटरफ्लाई डेस्टिनेशन बनेगा नैना देवी बर्ड कंजरवेशन रिजर्व, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

नैना देवी बर्ड कंजरवेशन रिजर्व क्षेत्र जल्द बटरफ्लाई डेस्टिनेशन के रूप में भी पहचान बनाएगा। पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी इस क्षेत्र को बटरफ्लाई टूरिज्म की दृष्टि से समृद्ध बताते हुए बटरफ्लाई गार्डन के साथ ही अन्य सुविधाएं विकसित कर इसे कारोबार से जोडऩे का दावा किया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 21 Sep 2021 08:59 AM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 05:59 PM (IST)
बटरफ्लाई डेस्टिनेशन बनेगा नैना देवी बर्ड कंजरवेशन रिजर्व, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

नरेश कुमार, नैनीताल : नैना देवी बर्ड कंजरवेशन रिजर्व क्षेत्र जल्द बटरफ्लाई डेस्टिनेशन के रूप में भी पहचान बनाएगा। पर्यावरण विशेषज्ञों ने भी इस क्षेत्र को बटरफ्लाई टूरिज्म की दृष्टि से समृद्ध बताते हुए बटरफ्लाई गार्डन के साथ ही अन्य सुविधाएं विकसित कर इसे कारोबार से जोडऩे का दावा किया है।

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नैनीताल से लगा किलबरी से पंगोट-कुंजखड़क तक का क्षेत्र जैव विविधता के लिए खासी पहचान रखता है। 2015 में 111.91 वर्ग किमी के क्षेत्र को प्रदेश की चौथा संरक्षण आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था। हर वर्ष हजारों की संख्या में देश ही नहीं विदेशों से भी पर्यटक पक्षियों को कैमरे में कैद करने आते हैं। अब स्थानीय कारोबारी और रामनगर की कल्पतरू व त्यार फाउंडेशन नेचर टूरिज्म का दायरा बढ़ाने की योजना बना रही है।

विशेषज्ञ गौरव खुल्बे ने बताया कि नैना देवी बर्ड कंजरवेशन रिजर्व फोटोग्राफर महज पक्षियों के लिए पहुंचते हैं, मगर बटरफ्लाई टूरिज्म शुरू होने के बाद पर्यटकों को नेचर टूरिज्म में और अधिक अवसर मिलेंगे, जिससे क्षेत्र में रोजगार के अवसर में भी बढ़ोतरी होगी।

बटरफ्लाई गार्डन होगा विकसित

आयोजन संस्था के सदस्य मनीष कुमार ने बताया कि पंगोट और आसपास के क्षेत्र में तितलियों की कई प्रजातियां हैं। बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के साथ मिलकर क्षेत्र का सर्वे कर प्रजातियों की संख्या और अन्य जानकारी जुटाई जाएगी। तितलियां जिन प्लांट पर अंडे देती है, उन्हें होस्ट और जिनको भोजन के रूप में प्रयोग करती है, उनको नेक्टर प्लांट कहा जाता है, इन सभी पौधों का क्षेत्र में छोटे-छोटे बटरफ्लाई गार्डन बनाकर रोपण किया जाएगा। अगले वर्ष अप्रैल के बाद पंगोट क्षेत्र में तितली त्यार आयोजित किया जाएगा।

70 फीसदी तक आ गई प्रजातियों में कमी

प्रसिद्ध फोटोग्राफर पद्मश्री अनूप साह ने बताया कि 60 के दशक में ज्योलीकोट और सातताल क्षेत्र तितलियों की अनेक प्रजातियों के लिए पहचान रखता था। इंग्लैंड से कई विशेषज्ञ यहां अध्यययन के लिए आते थे, मगर जलवायु परिवर्तन और काश्तकारों के फसलों पर रसायनों के छिड़काव के कारण तितलियों की प्रजातियों में 70 फीसदी तक कमी आ गई है। क्षेत्र को बटरफ्लाई डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का सीधा लाभ पक्षियों को भी मिलेगा, जो भोजन के लिए तितलियों पर ही निर्भर है।


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