Uttarakhand News: सीएम की घोषणा पूरी कराने के लिए निकायों के पास पैसे नहीं
मुख्यमंत्री की घोषणा पूरी कराने के संदर्भ में 12 अप्रैल को शासनादेश जारी कर दिया। इस पर अमल ढाई माह बाद भी नहीं हुआ है। नगर निकाय अस्थायी पर्यावरण मित्रों को अब भी 275 रुपये भुगतान कर रहे हैं। ऐसे मेंहजारों कर्मचारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
गणेश पांडे, हल्द्वानी : गल्ली-मोहल्लों से लेकर सड़कों व शहरों की साफ-सफाई का जिम्मा संभाल रहे पर्यावरण मित्रों को सम्मानजनक मानदेय देने में निकाय फेल साबित हो रहे हैं। प्रदेश के मुखिया ने पर्यावरण मित्रों के काम को 500 रुपये प्रतिदिन मानदेय के लायक समझा। इसकी घोषणा भी की।
वित्त विभाग की सहमति के बाद प्रभारी सचिव विनोद कुमार सुमन ने मुख्यमंत्री की घोषणा पूरी कराने के संदर्भ में 12 अप्रैल को शासनादेश जारी कर दिया। इस पर अमल ढाई माह बाद भी नहीं हुआ है। सीएम की घोषणा पर अमल कराने में फेल साबित हुए नगर निकाय अस्थायी पर्यावरण मित्रों को अब भी 275 रुपये प्रतिदिन की दर से भुगतान कर रहे हैं। ऐसे में मानदेय बढ़ाने के लिए वर्षों से आंदोलित हजारों कर्मचारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।
शासन ने निकायों पर डाली जिम्मेदारी
प्रभारी सचिव सुमन ने शहरी विकास निदेशक को भेजे अपने आदेश में कहा है कि सीएम की घोषणा के संदर्भ में वित्त विभाग की सहमति के बाद पर्यावरण मित्रों का मानदेय 500 रुपये प्रतिदिन करने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में आने वाला व्यय-भार संबंधित निकाय अपने संसाधनों से वहन करेंगे। सरकार किसी तरह की अतिरिक्त वित्तीय सहायता नहीं देगी। निकाय तंगहाली का बहाना बना बच रहे हैं।
आय बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं
निकायों के खर्च बढ़ रहे, लेकिन आय बढ़ाने की तरफ अधिकारियों का ध्यान नहीं हैं। हल्द्वानी नगर निगम की बात करें तो भवन व स्वच्छता कर, दुकान किराया, ट्रेड लाइसेंस, तहबाजारी, होर्डिंग ही निगम की आय का साधन हैं। इनसे सालाना छह करोड़ भी नहीं आ पाता।
विधिवत निगरानी न होने से 30 प्रतिशत से अधिक लोग टैक्स ही नहीं चुका रहे। भौतिक सूचना प्रणाली सर्वे में इसका खुलासा हुआ है। बोर्ड बैठकों में पार्षद भी इस मामले को उठा चुके हैं। अधिकारी स्टाफ की कमी व दूसरे बहाने बनाकर रुचि नहीं दिखाते।
हल्द्वानी के मेयर डा. जोगेंद्र रौतेला ने बताया कि पर्यावरण मित्रों को बढ़ा मानदेय देने के बाद निगम को सालाना 12.60 करोड़ की जरूरत होगी। निगम की कुल आय ही छह करोड़ है। शासन से राज्य वित्त आयोग का बजट बढ़ाने की मांग की गई है।
क्या बोले पीड़ित
मैं पिछले 14 साल से काम कर रही हूं। चुनाव से पहले सीएम पुष्कर धामी ने मानदेय बढ़ाने की घोषणा की। जीओ भी जारी हुआ लेकिन अमल नहीं हुआ तो क्या फायदा। -ममता
तीन से पांच वर्षों से काम कर रहे हैं। बढ़ती महंगाई में 275 रुपये रोज में परिवार चलाना संभव नहीं है। नगर निगम व सरकार हजारों पर्यावरण मित्रों के साथ छलावा कर रहे। -अमन कुमार
मानदेय बढ़ाने के लिए वर्षों से आवाज उठा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने घोषणा व शासन ने आदेश जारी कर वाहवाही जरूर बटोर ली, लेकिन कर्मचारियों को कुछ भी नहीं मिला। -आदर्श
पिछले 11 साल से कार्यरत हूं। अभी 8250 मानदेय तक पहुंच पाए हैं। अधिकारी निगम की आय बढ़ाने का प्रयास करें। अपनी नाकामी का खामियाजा हमें क्यों मिले। -अरुण कुमार