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पहाड़ से पलायन करने वाले मोहन से लें सबक, औरों को भी दे रहे रोजगार

वर्तमान समय में जहां पहाड़ पलायन के दंश से ग्रसित है, लोग पहाड़ों को छोड़कर रोजगार की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 27 Oct 2018 02:41 PM (IST)Updated: Sat, 27 Oct 2018 09:15 PM (IST)
पहाड़ से पलायन करने वाले मोहन से लें सबक, औरों को भी दे रहे रोजगार
पहाड़ से पलायन करने वाले मोहन से लें सबक, औरों को भी दे रहे रोजगार

चम्पावत/नैनीताल (जेएनएन) : वर्तमान समय में जहां पहाड़ पलायन के दंश से ग्रसित है, लोग पहाड़ों को छोड़कर रोजगार की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं। वहीं हिमालय विकास समिति के संचालक मोहन सिंह बिष्ट ने न केवल जैविक कृषि, पशुपालन, मौन पालन आदि से स्वरोजगार कर रहे हैं बल्कि अनेक लोगों को स्वरोजगार भी दे चुके हैं। उन्होंने पहाड़ से पलायन करते लोगों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो कि समझते हैं कि अब कृषि में कोई लाभ नहीं है।

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बिजली और शिक्षा के लिए संस्‍था की सराहनीय पहल

चम्‍पावत जिले के चल्थी क्षेत्र में सामाजिक कार्य संस्था एवं अनुसंधान केंद्र तिलोनिया राजस्थान की संस्था का उपकेंद्र हिमालय विकास समिति वर्ष 2002 से सामाजिक कार्य कर रही है। प्रारंभ में संस्था ने क्षेत्र में पानी की समस्या को देखते हुए कठपुतली व नुक्कड़ नाटक के माध्यम से वर्षा जल संरक्षण को लेकर लोगों में जन जागरूकता फैलाने का कार्य किया। संस्था के कार्य को देखते हुए संस्था की मदर ब्रांच ने 2010 में चल्थी में दो नाली भूमि क्रय कर संस्था को दी और भवन निर्माण कराया। जिसके बाद शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए दूरस्थ दुर्गम क्षेत्रों में नौ रात्रि विद्यालय खोले। वर्तमान में संस्था द्वारा दुर्गम क्षेत्र बेलखेत, नैकेना में डिजिटल स्कूल चलाए जा रहे हैं। जहां बच्चों को आधुनिक शिक्षा से जोडऩे के लिए आइपैड व सोलर प्रोजेक्टर से पढ़ाया जा रहा है। इस समय संस्था 40 गांवों में सौर ऊर्जा पर कार्य कर रही है और 1150 से ज्यादा गांव व तोकों को सोलर लाईट से रौशन कर चुकी है जहां विद्युत व्यवस्था नहीं है। संस्था में सभी कार्य को करने के लिए आठ लोग कार्यरत हैं जो सरकार द्वारा नियत न्यूनतम मजदूरी दर पर कार्यरत हैं।

मौन पालन से 24 महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

हिमालय विकास समिति ने नौ गांवों की 24 महिलाओं को और ग्राम छतकोट के एक अनाथ कमल सिंह को मौन पालन की ट्रेनिंग दी और महिलाओं को मौन पालन के लिए दो-दो बॉक्स दिए। इन महिलाओं ने एक वर्ष में तीन कुंटल शहद का उत्पादन किया। जिससे संस्था ने 400 रुपये प्रति किग्रा में खरीदा। बाजार में यह 500 रुपये प्रति किग्रा बिकता है। एक बॉक्स से एक साल में बीस किग्रा शहद का उत्पादन होता है। संस्था के पास इस समय मधुमक्खी के 22 बॉक्स हैं। जिनमें स्वदेशी मधुमक्खी एपिस इंडिका और एपिस सेराना पाली जाती हैं। कमल सिंह संस्था के मौन पालन की देख-रेख करते हैं।

वर्षा जल संरक्षण से की जाती है सिंचाई

परिसर में फल, सब्जी, बगीचे आदि की सिंचाई वर्षा के संरक्षित जल से की जाती है। जिसके लिए परिसर में ही पचास लीटर का भूमिगत टैंक बनाया गया है। जिसमें वर्षा का जल फिल्टर होकर जाता है। यह जल न केवल सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है बल्कि पीने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। सिंचाई के लिए स्पिंकल इरिगेशन सिस्टम का प्रयोग किया जाता है।

कई ब्रिड की हैं देशी मुर्गियां

संस्था में मुर्गी पालन भी किया जाता है। जहां स्वदेशी प्रजाति की कई मुर्गियां पाली हुई हैं। जिनमें अंडा देने वाली बीडी 300, मांस के लिए धनराज कैरी व महेंद्रा कैरी जो डेढ़ माह में ढ़ाई किग्रा की हो जाती है, उडऩे वाली गिनिफॉल जंगली मुर्गी और सबसे खास कड़कनाथ मुर्गी पाली हैं जो पूर्ण स्प से काली होती है। जिसका मांस, खून, हड्डी आदि सब काले होते हैं। इसे ब्लड प्रेशर, सुगर, अर्थाइटिस, बात रोगी भी खा सकते हैं।

छोटे स्थानों पर भी पाली जा सकती हैं कुछ मछलियां

मछली पालन के लिए परिसर में एक चार सौ स्क्वायर फिट का टैंक बनाया गया है। जिसमें सिल्वर कार्ब, ग्रास कार्ब, कॉमन कार्ब मछलियां पाली जा रही हैं जो छोटे स्थानों पर भी आसानी से पाली जा सकती हैं।

गाय, मुर्गी व मछली के खाने की पूर्ति करता है अजोला

परिसर में एक सौ स्क्वायर फिट का एक टैंक बनाया है। अजोला नाईट्रोजन और फास्फोरस को फिक्स करने वाली एक काई है। जिससे गाय का बीस प्रतिशत, मुर्गी का पचास प्रतिशत व मछली का सौ प्रतिशत खाने की पूर्ति हो जाती है।

जैविक खाद से उत्पादित होती हैं पौष्टिक सब्जियां

फल, सब्जी, नर्सरी आदि के उत्पादन के लिए गाय के गोबर, मुर्गी के बीट, वृक्षों के सूखे पत्ते आदि से वर्मी कंपोस्ट खाद बनाई जाती है जिसका प्रयोग खेतों में किया जाता है। खाद तीन माह में बनकर तैयार हो जाती है। परिसर में पारंपरिक तरीके से गोभी, टमाटर, गाजर, बैगन, मिर्च, आलू, प्याज, मूली, पालक आदि का उत्पादन किया जाता है तथा इनके पौधों को ग्रामीणों में निश्शुल्क वितरण भी किया जाता है।

कम जगह में किया आलू का अधिक उत्पादन

संस्था संचालक बिष्ट ने आलू की खेती करने का एक बहुत ही सरल माध्यम बताया जिससे कोई भी व्यक्ति आसानी से अपने घर पर ही कम जगह या जगह न होने पर भी अपने घर की छत आंगन में अधिक आलू का उत्पादन कर सकता है।

विभिन्न प्रकार के फलदार वृक्षों

फलोत्पादन की बात करें तो संस्था ने परिसर में विभिन्न प्रकार की प्रजाति के आम के 32, लीची के नौ, अमरूद के आठ, अनार के चार, जामुन के दो, सहतूत के तीन, खुमानी का एक, पोलम का एक, आडू के पांच, बड़ा नीबू एक, कागजी नीबू के छह, चीकू का एक, आंवला के तीन, तेज पत्ता छहन्, अंगूर काला एक सहित शमी, बेलपत्री, अशोक, आक, ढ़ांग, तुलसी, मनी प्लांट, ब्रह्म कमल, कमल आदि पेड़ लगाए हैं।


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