Move to Jagran APP

Operation Meghdoot: ऐन वक्त पर कुंवर की जगह हर्बोला को भेजा गया था दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य ऑपरेशन पर

Operation Meghdoot ऑपरेशन मेघदूत के शहीद चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर हल्द्वानी पहुंच चुका है। उनके साथ रहे सुबेदार कुंवर सिंह नेगी ने वर्ष 1984 में हुए ऑपरेशन की यादें साझा कीं। नेगी ने बताया कि अभियान में उन्हें जाना था पर आखिरी समय में हर्बोला को भेजा गया।

By Prashant MishraEdited By: Published: Wed, 17 Aug 2022 02:43 PM (IST)Updated: Wed, 17 Aug 2022 02:43 PM (IST)
Operation Meghdoot: ऐन वक्त पर कुंवर की जगह हर्बोला को भेजा गया था दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य ऑपरेशन पर
Operation Meghdoot क्वार्टर मास्टर गोविंद बल्लभ जोशी ने कुंवर सिंह नेगी के स्थान पर लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला को भेज दिया।

हल्द्वानी, प्रमोद पांडे। Martyr Chandrashekhar Harbola पाकिस्तान के सियाचिन ग्लेशियर को अपने नक्शे में दर्शाने के बाद वहां भारतीय उपस्थिति दर्ज कराने व दुश्मनों पर बरसने के लिए कुमाऊं रेजिमेंट की 19 कुमाऊं बटालियन के मेघदूतों ने चार दिन तक पैदल चढ़ाई की थी। पाकिस्तान के रडार को धोखा देने के लिए उन्होंने हेलीकाप्टर के बजाय चढ़ाई का निर्णय लिया था।

loksabha election banner

लांसनायक कुंवर सिंह के स्थान पर गए चंद्रशेखर

अभियान में शामिल रहे तत्कालीन लांसनायक कुंवर सिंह नेगी ने बताया कि जटिल पहाड़ी पर पोस्ट बनाने के लिए बटालियन की ब्रेवो कंपनी को टास्क मिला था, जिसका हिस्सा वह भी थे।

लेकिन ऐन वक्त जरूरत के साजो-सामान का लेखा-जोखा रखने के लिए क्वार्टर मास्टर गोविंद बल्लभ जोशी ने उनके स्थान पर लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला को भेज दिया। नेगी सूबेदार के पद से सेवानिवृत्ति के बाद इन दिनों हल्द्वानी में रह रहे हैं।

पाक चहता था सियाचिन पर कब्जा

विश्व के सबसे ऊंचे युद्ध स्थल सियाचिन क्षेत्र पर कब्जा करने की पाकिस्तान की मंशा को विफल करने के लिए भारत ने आपरेशन मेघदूत की योजना बनाई थी। इसके सेनानायक लेफ्टिनेंट जनरल प्रेमनाथ हूण थे।

आपरेशन का पहला चरण मार्च 1984 में ग्लेशियर के पूर्वी बेस के लिए पैदल मार्च के साथ शुरू हुआ था।

आपरेशन मेघदूत से पाक को चटाया धूल

कुमाऊं रेजिमेंट की 19 कुमाऊं बटालियन की सभी छह कंपनियां और लद्दाख स्काउट्स की इकाइयां युद्ध सामग्री के साथ जोजिला दर्रे से होते हुए सियाचिन की ओर बढ़ीं।

बटालियन कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल डीके खन्ना की कमान के तहत इकाइयां पाकिस्तानी रडारों की पकड़ से बचने के लिए चार दिन तक पैदल चले थे।

दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य क्षेत्र पर आपरेशन

ध्यान रहे कि सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा सैन्य क्षेत्र है। यहां औसतन -20 डिग्री तापमान रहता है। यहां 13 से 22 हजार फीट तक की ऊंचाई तक सैनिक गश्त करते हैं।

ग्लेशियर की ऊंचाइयों पर भारत के अनुकूल स्थिति स्थापित (नियंत्रण) करने वाली पहली इकाई का नेतृत्व तत्कालीन मेजर पीवी संधू ने किया था। कैप्टन संजय कुलकर्णी की अगुआई वाली इकाई ने बिलाफोंड ला को सुरक्षित किया था।

शेष इकाइयां कंपनी कमांडर मेजर आरएस नेगी की कमान के तहत चार दिन तक चढ़ाई करतीं गईं और साल्टोरो दर्रे की पहाड़ियों को सुरक्षित करने के लिए आगे बढ़ती रहीं।

अप्रैल तक बंकर स्थापित 

13 अप्रैल तक लगभग 300 भारतीय सैनिकों महत्वपूर्ण चोटियों पर खंदकों (बंकर) में स्थापित कर दिया गया। इस तरह भारतीय सेना ने सिया ला, बिलफोंड ला पास के सभी तीन बड़े पर्वत और 1987 तक ग्योंगला ग्लेशियर और पश्चिमी सल्तारो दर्रे सहित सियाचिन के सभी कमांडिंग चोटियों पर अपना नियंत्रण कर लिया।

बर्फीले तूफान से तबाही

अभियान का हिस्सा रहे लांसनायक कुंवर सिंह नेगी के अनुसार बटालियन व कंपनी का हेडक्वार्टर ग्योंगला ग्लेशियर की तलहटी पर था, जहां से सैन्य टुकड़ी को आगे भेजा गया। बीच रास्ते रात बिताने के लिए कैंप लगाया, जहां टोली नायक गढ़वाल निवासी लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर सहित 17 सैनिकों ने बर्फीले तूफान की चपेट में आकर अपना जीवन गंवा दिया। उन्होंने बताया कि दो अन्य सैनिक बर्फीली दरार में गिरकर लापता हो गए थे।

लो फ्लाइंग रेेंज में रडार भी नहीं पकड़ पाता विमान 

भौतिक विज्ञानी व राजकीय स्नातकोत्तर कालेज अगस्त्यमुनि के पूर्व प्राचार्य डा. जनार्दन जोशी ने बताया कि लो फ्लाइंग जोन में विमान भी रडार की पकड़ में नहीं आ पाते हैं।

परवलयाकार (पैराबोलिक) होने से रडार से निकलने वाली रेडियोएक्टिव तरंगें टार्च की रोशनी की तरह हवा में क्षेत्र विशेष को ही पकड़ने में सक्षम होती हैं।

यह भी पढ़ें :

तस्वीरों में देखिए, 38 साल बाद शहीद चंद्रशेखर का घर पहुंचा पार्थिव शरीर, सीएम धामी ने की यह बड़ी घोषणा

बेटियां पूछतीं कब आएंगे पापा, मां हर बार कहती 15 अगस्त पर

Operation Meghdoot के बलिदानी हल्‍द्वानी न‍िवासी चन्‍द्रशेखर हरबोला का 38 साल बाद पार्थिव शरीर सियाचीन में बरामद


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.