बेटी के चलने से पहले पिता हो गए शहीद, 1971 के जाबांज कृपाल दत्त के घर पहुंची विजय मशाल
1971 की जंग में दुश्मनों से लड़ते हुए अल्मोड़ा के केनाली गांव निवासी कृपाल दत्त उपाध्याय के बलिदान के बाद उनकी पत्नी सरस्वती देवी ने जज्बे के साथ जिम्मेदारी को निभाई। पति के निधन के दौरान उनका बड़ा बेटा कैलाश तीन साल और बेटी नीमा महज दो महीने की थी।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : स्वर्णिम विजय मशाल शुक्रवार सुबह शहीदों के घर पहुँची तो माहौल भावुक हो गया। 1971 की जंग में दुश्मनों से लड़ते हुए अल्मोड़ा के केनाली गांव निवासी कृपाल दत्त उपाध्याय के बलिदान के बाद उनकी पत्नी सरस्वती देवी ने जज्बे के साथ अपनी जिम्मेदारी को निभाया। पति के निधन के दौरान उनका बड़ा बेटा कैलाश तीन साल और बेटी नीमा महज दो महीने की थी। उस जमाने मे मोबाइल का चलन नहीं था। इसलिए पति के शहीद होने की खबर भी कुछ दिन बाद मिल सकी। वीरांगना सरस्वती देवी अब अपने परिवार के साथ करायल चतुर सिंह में रहती है। बेटी-बेटी दोनों की शादी हो चुकी है।
1971 की जंग के पचास साल पूरे होने पर दिल्ली से स्वर्णिम विजय मशाल निकली है। जो कि युद्ध में शहीद होने वाले जवानों और मेडल विजेताओं के घर ले जाई जा रही है। परिवार को सम्मानित भी किया जा रहा है। वीरांगना सरस्वती देवी ने बताया कि 1980 में सरकार ने उनके परिवार को फुलचौड़ के पास जमीन भी आवंटित की थी। वहीं अब स्वर्णिम मशाल लालकुआं के लिए रवाना हो गई। इस दौरान आर्मी के काफिले को देखते ही लोग जगह-जगह लोग फ़ोटो-वीडियो बनाने के साथ भारत मां के जयकारे लगा रहे थे।
जवान का बेटा किसान
कृपाल दत्त उपाध्याय के बाद विजय मशाल आनंदपुर निवासी दीवान सिंह कुलयाल के घर पहुँची। 1971 के इस योद्धा का पांच साल पहले ही निधन हुआ था। तीनों बेटियों की शादी हो चुकी है। बेटा रणदीप काश्तकारी करता है।