चिन्ह्रित राज्य आंदोलनकारी नई मुसीबत में, सीबीआई जांच की उठी मांग
सरकारी नौकरियों में दस फीसद क्षैतिज आरक्षण और रामपुर तिराहा कांड के आरोपितों को सजा दिलाने की याचिका खारिज होने के बाद अब चिह्न्त राज्य आंदोलनकारी नई मुसीबत में घिर गए हैं।
नैनीताल, जेएनएन : सरकारी नौकरियों में दस फीसद क्षैतिज आरक्षण और रामपुर तिराहा कांड के आरोपितों को सजा दिलाने की याचिका खारिज होने के बाद अब चिह्न्त राज्य आंदोलनकारी नई मुसीबत में घिर गए हैं। हाई कोर्ट में अब इनके खिलाफ सीबीआइ जांच की मांग उठी है। कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए सरकार से जवाब दाखिल करने के साथ ही याचिकाकर्ता से प्रति शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
देवभूमि वृद्धाश्रम निर्माण एवं विकास समिति ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि तमाम लोगों को अखबार की कटिंग के आधार पर राज्य आंदोलनकारी घोषित कर दिया गया है। राज्य सरकार चिह्निïत ऐसे तमाम आंदोलनकारियों को पेंशन, नौकरी समेत अन्य लाभ दे रही है। याचिका में कहा गया है कि राज्य आंदोलन में सक्रिय तमाम आंदोलनकारियों को आज तक राज्य सरकार ने चिह्निïत राज्य आंदोलनकारी नहीं माना, जबकि तमाम लोग सिर्फ पेपर कटिंग के आधार पर खुद को आंदोलनकारी घोषित होकर सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं, जबकि ऐसे लोगों की अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका नहीं थी। याचिका में सरकारी पैसा लेने वाले आंदोलनकारियों के मामलों की सीबीआई जांच की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद सरकार से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट के फैसले के बाद पेपर कटिंग से राज्य आंदोलनकारी घोषित लोगों में खलबली मचनी तय है। राज्य की पहली निर्वाचित सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही राज्य आंदोलनकारी घोषित होने का सिलसिला शुरू हुआ था। सैकड़ों राज्य आंदोलनकारियों को विभागों में नौकरी दी गई तो हजारों आंदोलनकारी पेंशन ले रहे हैं। जिन लोगों की अलग राज्य आंदोलन में कोई भूमिका नहीं थी, उन्होंने सत्ता में पहुंच के माध्यम से खुद को राज्य आंदोलनकारी का सरकारी प्रमाण पत्र हासिल कर लिया।
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