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माओवादी थिंक टैंक प्रशांत राही को उम्र कैद के बाद खीम सिंह पर था संगठन को जिंदा रखने का जिम्मा

सीपीआइ (माओवादी) के उत्तराखंड जोनल सेक्रेट्री व पहली प्रांत के बुद्धिजीवी कमांडरों में शुमार खीम सिंह बोरा उर्फ खीमा की बुधवार को बरेली से हुई गिरफ्तारी से ठंगठन ध्‍वस्‍त।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 11:13 AM (IST)Updated: Sat, 20 Jul 2019 11:23 AM (IST)
माओवादी थिंक टैंक प्रशांत राही को उम्र कैद के बाद खीम सिंह पर था संगठन को जिंदा रखने का जिम्मा

रानीखेत, दीप सिंह बोरा : उत्तराखंड में करीब दो दशक बाद माओवाद की कमर टूटी है। प्रतिबंधित सीपीआइ (माओवादी) के उत्तराखंड जोनल सेक्रेट्री व पहली प्रांत के बुद्धिजीवी कमांडरों में शुमार खीम सिंह बोरा उर्फ खीमा की बुधवार को बरेली से हुई गिरफ्तारी से पर्वतीय राज्य में 'थ्री यू सेक' (उत्‍तराखंड, उत्‍तर प्रदेश आैर उत्‍तरी बिहार) की बड़ी साजिश नाकाम हुई है। साथ ही पहाड़ से तराई होकर नेपाल तक 'रेड कॉरिडोर' बनाने के मंसूबे पर भी करारी चोट पड़ी है। उत्तराखंड में रेड कॉरिडोर का जिम्मा संभाले खीम सिंह इस बीच चंपारण, दंडकारिणी, झारखंड आदि में लगातार नक्सलियों के संपर्क मेें रहा था। 

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दरअसल, माओवादी संगठन के उत्तराखंड जोनल सेक्रेट्री का जिम्मा संभाले खीम सिंह बोरा (55) पिछले डेढ़ दशक से खाकी व खुफिया के लिए सिरदर्द बना था। खास बात यह कि जून 2004 में हंसपुर खत्ता चोरगलिया (नैनीताल) व सौफुटिया (ऊधमसिंह नगर) के जंगल में जब पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की वर्षगांठ मनाई गई तब शिवराज सिंह (लमगड़ा) व राजेंद्र फुलारा (द्वाराहाट) के साथ सोमेश्वर का खीम सिंह बोरा भी शामिल था। कार्यक्रम के बहाने बिहार की सशस्त्र नक्सली टुकड़ी ने यहां के माओवादियों को हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया। मगर खीम सिंह सुर्खियों में तब आया जब 22 दिसंबर 2007 को 'ऑपरेशन हंसपुर खत्ता' ने माओवादी नेटवर्क को छिन्न-भिन्न कर थिंक टैंक प्रशांत राही समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। तभी से खीम सिंह भूमिगत होकर संगठन के लिए काम करता रहा। उसकी असल पहचान छिपाने के लिए माओवादी संगठन ने उसे नया नाम कृष्णा दे दिया था। 

खीमा का नक्सल कनेक्शन 

माओवादी थिंक टैंक प्रशांत राही व बुद्धिजीवी नेता हेमंत मिश्रा को सात मार्च 2017 में उम्र कैद के बाद खीम सिंह की अगुवाई में पहली व दूसरी पांत के माओवादी नेताओं ने रणनीति बदल दी। चंपारण, झारखंड में नक्सलियों से प्रभावित होकर उसने संगठन को नए सिरे से खड़ा करने के लिए जनमुक्ति छापामार सेना भी तैयार की। पोस्टर युद्ध के बीच धारी (नैनीताल) व नैनीसार सरीखी हिंसक रास्ते भी अपनाए गए।  

होटल कर्मी से शीर्ष माओवादी कमांडर तक 

बरेली में उत्तर प्रदेश एटीएस के हत्थे चढ़ा कृषक परिवार से ताल्लुक रखने वाला खीम सिंह पढ़ाई में अव्वल रहा। सोमेश्वर से 12वीं पास करने के बाद उसने अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज (अब एसएसजे कैंपस) से 1982 में बीएससी की। सूत्रों की मानें तो नौकरी न मिलने पर वॉलीबाल के शौकीन खीम सिंह ने सरोवर नगरी नैनीताल के एक मशहूर होटल में चार वर्ष नौकरी भी की। इसी दौरान वह माओवादी विचारधारा में बह चला। वर्ष 2007 में प्रशांत राही के पुलिस पर हत्थे चढऩे पर वह भी सुर्खियों में आया। राष्टï्रवाद के हिमायती परिवार ने तब खीम सिंह से नाता तोड़ दिया। खुफिया सूत्र दावा कर रहे कि खीम सिंह की गिरफ्तारी से उत्तराखंड में माओवादी जड़ें खोखली हो गई हैं। बचे खुचे भूमिगत सदस्य इतने सशक्त नहीं हैं।

क्या था थ्री यू सेक 

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व उत्तरी बिहार (थ्री यू सेक) में माओवादी गढ़ बनाकर पकड़ मजबूत करने के मंसूबा को ही थ्री यू सेक कहा गया।

कुमाऊं में कुल 12 सब डिवीजन 

शहरफाटक, सोमेश्वर, लमगड़ा, पहाड़पानी (अल्मोड़ा), पिथौरागढ़, चंपावत, चोरगलिया, रामनगर, पीरूमदारा (नैनीताल), रुद्रपुर, दिनेशपुर, हंसपुर खत्ता (ऊधम सिंह नगर)आदि। 

ये था 'रेड कॉरिडोर' का कुचक्र 

सीपीआइ (माओवादी) का दंडकारिणी (एमपी) से नेपाल तक विस्तार था। पीलीभीत, बनबसा व चम्पावत को नेपाल से जोड़ माओवादी उत्तराखंड में पैठ बनाना चाहते थे। पहाड़ के दुर्गम राजस्व इलाकों व वन क्षेत्रों में कैंप जहां पुलिस नहीं पहुंच सकती उन इलाकों को गतिविधियों के लिए माओवादी इस्तेमाल करते आए हैं। 

कब कौन कहां कैसे टूटा

  • वर्ष 2005 : माओवादी कमांडर अनिल चौड़ाकोटी सूखीढांग (चम्पावत) से गिरफ्तार 
  • 22 दिसंबर 07 : 'ऑपरेशन हंसपुर खत्ता' सफल, थिंक टैंक प्रशांत राही समेत कई सक्रिय सदस्य दबोचे
  • 07 फरवरी 2010 : कमांडर शिवराज व फुलारा कानपुर में धरे 
  • 07 मार्च 2017 : थिंक टैंक प्रशांत राही व बुद्धिजीवी विंग के कमांडर हेम मिश्रा को उम्र कैद
  • 25 सितंबर 17 : पहली पांत का कमांडर देवेंद्र कन्याल व महिला कमांडर भगवती भोज चोरगलिया से गिरफ्तार 

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